नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 सोमवार को लोकसभा और बुधवार को राज्यसभा से पारित होने के बाद राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदन प्राप्त होते ही कानून के शक्ल में तैयार है। इसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हुए अवैध हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई प्रवासियों को नागरिकता देने का प्रस्ताव है।
यह कानून “प्राकृतिककरण द्वारा नागरिकता” के प्रावधान में भी बदलाव करता है। इन सभी 6 धर्मों के लोगों को भारत की नागरिकता प्राप्त करने के लिए अब 11 साल की अवधि को घटाकर 6 साल कर दिया गया है। नागरिकता संशोधन विधेयक का संसद के दोनों सदनों से पारित होकर कानून बन जाना यह संदेश है कि अब हमारा देश धर्म के अनुसार चलेगा।
भारत देश का यह सफर जो धर्मनिर्पेक्षता पर आधारित था, अब सिर्फ धर्म को सबसे बड़ा आधार मानकर चलेगा। संघ द्वारा संचालित सरकार का यह कदम संदेश देता है कि नागरिकता के दावों का आकलन करने में धार्मिक पहचान एक प्रमुख भूमिका निभाएगी।
कोई भी इस बात से इंकार नहीं करता है कि शरणार्थियों के विभिन्न वर्गों को एक देश में प्राथमिकता मिलनी चाहिए लेकिन एक ऐसा कानून जो किसी एक धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता देने से इंकार करे और असम जैसे राज्य के लोगों के साथ नाइंसाफी करे, यह कुछ नहीं बस भारत की नींव पर एक छोटा सा सांप्रदायिक वार है। इस कानून के ज़रिये तरह-तरह की समस्याएं पैदा होंगी।
संघ सरकार के इस कदम से गुवाहाटी में अनिश्चित काल के लिए कर्फ्यू लग गया है। इसने गुवाहाटी को एक युद्ध क्षेत्र में बदल दिया है। असम की बराक घाटी को छोड़कर अन्य भागों में लोगों को डर है कि CAB बांग्लादेश से लाखों हिंदुओं को राज्य में जगह देगा, जिसके कारण आने वाले समय में स्वदेशी समुदायों का वजूद खतरे में पड़ सकता है। इससे उनकी भाषा, संस्कृति और परंपरा पर भी खतरे के संकेत दिखाई पड़ रहे हैं।
वर्तमान सरकार द्वारा असम के लोगों की आवाज़ दबाने की कोशिश
यहां तक कि असम के स्वदेशी लोगों को अल्पसंख्यक बनाने में भी इसी का हाथ होगा। हालांकि CAB में 2014 के कट-ऑफ तारीख का भी प्रावधान है लेकिन प्रदर्शनकारियों का कहना है कि असम पहले ही 1951 से 1971 तक अप्रवासियों का खामियाज़ा भुगत चूका है, जबकि अन्य राज्यों के साथ ऐसा कभी नहीं हुआ है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि उन्हें केंद्र पर भरोसा नहीं है और CAB असम समझौते को रद्द कर देगा।
असम में होने वाले विरोध प्रदर्शन ने सरकार को इंटरनेट सेवाओं को बंद करने के लिए मजबूर कर दिया है। वर्तमान सरकार के असफल फैसलों के कारण असम की जनता आज सड़कों पर है। लोगों को देशभर से जुड़ने से रोकने के लिए असम और त्रिपुरा के कुछ चुनिंदा ज़िलों में ही इंटरनेट बंद किया गया है। वर्तमान सरकार द्वारा आम लोगों की आवाज़ को दबाने के लिए इस रणनीति का कई बार इस्तेमाल किया गया है।
CAB असंवैधानिक है या नहीं, इस पर बहुत लोग विवाद करते रहेंगे। ज्ञानी किस्म के लोग यह तर्क देते रहेंगे कि क्या यह “उचित वर्गीकरण” के प्रावधानों के अनुसार है? या क्या यह “संवैधानिक नैतिकता” का अनुपालन करता है?
यह तर्क हमारे निर्णय लेने की क्षमता के लिए आवश्यक है लेकिन हमें इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि अंतिम अधिनिर्णय किसी स्व-स्पष्ट आदर्शवादी विचार या कानून के अंदर कुछ सम्मोहक तर्क द्वारा नहीं होगा। अंग्रेज़ी में मज़ाक में कहा जाता है, “In Law There Is Only One Certainty: There Is A Case For And A Case Against.”
“नागरिकता संशोधन कानून 2019” को विधायिका द्वारा रोक दिया जाना चाहिए था। अब न्यायपालिका को संविधान की रक्षा के लिए फिर से उठना होगा और एक गणतंत्र के असली विचारों की रक्षा करनी होगी।