नागरिकता कानून के खिलाफ देशभर में हो रहे विरोध प्रदर्शन के बीच अलग-अलग शहरों में सरकार द्वारा इंटरनेट की सेवाएं बंद की जा रही हैं। पिछले कुछ वक्त से जिस तरीके से उत्तर प्रदेश के प्रमुख जगहों पर इंटरनेट की सेवाएं बंद की जा रही हैं, वह बेहद शर्मनाक है।
व्यक्तिगत तौर पर यदि मैं अपनी बात करूं तो इंटरनेट बंद होने की वजह से ऑफिस से लेकर घर तक मुझे कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। मैं बैंकिंग सेक्टर में जॉब करती हूं, जहां बगैर इंटरनेट के कुछ भी संभव नहीं है। मेरे ऑफिस में सर्वर ना आने के कारण लोगों को जमा और निकासी के लिए घंटों खड़े होकर बगैर काम कराए ही घर लौटना पड़ा।
शॉपिंग के दौरान नहीं कर पाई ऑनलाइन पेमेन्ट
इस दौरान कुछ खरीददारी करने जब मैं बाज़ार गई, तब वहां भी इंटरनेट सेवा ठप्प होने के कारण ऑनलाइन पेमेन्ट कर ही नहीं पाई। सरकार ने एक साज़िश के तहत इंटरनेट बंद करने का काम किया है मगर इससे आम लोगों को काफी परेशानियां हो रही हैं।
सरकार के लिए इंटरनेट बंद करना यानी प्रदर्शनकारियों को रोकने की रणनीति मगर हम आम लोगों के लिए जद्दोजहद करने के समान है। प्रदर्शन के कारण तमाम स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए गए। कई बच्चों के दूसरे शहरों में पेपर और इंटरव्यू रहे होंगे लेकिन खराब माहौल होने की वजह से लोग एक शहर से दूसरे शहर नहीं जा सके। इस वजह से कई बच्चों का भविष्य खराब हुआ जिसका भुगतान शायद ही कोई कर सके।
सरकार द्वारा इंटरनेट सेवाओं को बंद किए जाने से ना सिर्फ उतने ही दिन परेशानी होती है, बल्कि इसका असर कई दिनों तक देखा जाता है। उदाहरण के तौर पर इंटरनेट बंद होने के कारण कल यानी 27 दिसंबर को मेरे ऑफिस में करीब 140 लोग लाइन में खड़े होकर निराश घर लौट गए। ऐसे में जब वे अगले दिन फिर आएंगे तो ज़ाहिर तौर पर हम कर्मचारियों पर हर रोज़ से अधिक काम होगा। क्या सरकार इसकी ज़िम्मेदारी लेगी?
कल की बात करूं तो मैं सुबह से लेकर शाम तक अपने व्हाट्सएप्प के मैसेजेज़ देख ही नहीं पाई। जब शाम के बाद इंटरनेट सेवाओं को चालू किया गया तब मैंने देखा कि मेरे रिश्तेदारों से लेकर कई जानकार लोगों ने ज़रूरी मैसेजेज़ भेजे थे, जो मैं पढ़ ही नहीं पाई।
NRC और CAA के खिलाफ जिस तरीके से देशभर में आंदोलन हो रहे हैं, ऐसा लगता नहीं है कि कुछ ही दिनों में सब शांत हो जाएगा। ऐसे में इंटरनेट बंद कर देना वाकई में समझ से परे है। इंटरनेट आज की तारीख में अभिव्यक्ति की आज़ादी का सबसे सशक्त माध्यम है जिसे सरकार खत्म कर देना चाहती है और यह एक सोची-समझी साज़िश के तौर पर किया जा रहा है।