प्यारे देश वासियों,
आप सभी स्वस्थ और खुश होंगे ऐसी कामना करता हूं लेकिन अफसोस आप ना स्वस्थ हैं और ना खुश हैं, क्योकि भारत बीमार लोगों का घर बनता जा रहा है। बीमार आदमी खुश रह ही नहीं सकता है।
ज़्यादा मुनाफा कमाने के लिए किसान से लेकर उद्योगपति तक सब प्रकृति से इतनी छेड़छाड़ करते हैं, जिससे हम बीमारी के घर मे तब्दील होते जा रहे हैं। वे सब बीमारी ठीक होतीं, उससे पहले ही बहुमत देश की आवाम को मानसिक बीमारी ने घेर लिया।
खतरनाक है यह बीमारी
यह मानसिक बीमारी बहुत ही खतरनाक है, जिसका समय पर इलाज ना हो तो मौत व्यक्ति की ही नहीं, मानवता की भी मुमकिन है। इस मानसिक बीमारी के कारण
- अब आपकी आंखों को खून देखना अच्छा लगने लगा है।
- आप उस भीड़ का हिस्सा बनते जा रहे हो। जिसकी मानवता मर चुकी है।
अब आप गुस्सा होते हुए मना करोगे कि हमको ये बीमारी है ही नहीं और हम मानसिक तौर पर स्वस्थ हैं। लेकिन आप बीमार हो। आपकी बीमारी के लक्षण खुले मैदान में दिख रही है।
फिर भी आप नहीं मान रहे हैं कि आप बीमार हो तो मैं आपका ध्यान हैदराबाद पुलिस द्वारा बलात्कार के आरोप में पकड़े गए 4 आरोपियों के कत्ल की तरफ दिलाना चाहता हूं, जिसको हैदराबाद पुलिस मुठभेड़ बता रही है।
न्यायालय भी हम और जज भी हम हैं
बलात्कार एक जघन्य अपराध है, जिसमें सख्त सज़ा होनी चाहिए। इस केस में भी आरोपियों को सख्त सज़ा होनी चाहिए थी लेकिन ये सज़ा न्यायालय के द्वारा वैध कानूनी तरीके से होती तो ज़्यादा न्यायसंगत होता। परंतु पुलिस ने इससे पहले ही इन 4 आरोपियों का कत्ल करके न्यायालय को सन्देश दे दिया कि अब न्यायालय भी हम और जज भी हम हैं।
पुलिस द्वारा ये कत्ल बलात्कार के आरोप में पकड़े गए आरोपियों का नहीं किया गया था, बल्कि कत्ल किया गया था, आपके पूर्वजों के उस संघर्ष का जिसकी बदौलत हम बर्बर समाज से लोकतांत्रिक प्रणाली में आये थे। कत्ल किया गया भारतीय कानून व्यवस्था का, कत्ल किया गया है हमारी आने वाली नस्लों के भविष्य का।
पुलिस का काम है
- लोकतांत्रिक प्रणाली में अपराध होने से रोकना और
- अपराध होने के बाद अपराधी को पकड़कर न्यायालय के सामने पेश करना।
- दोषी को सज़ा दिलाने के लिए मज़बूती से पुख्ता सबूत ढूंढना और
- सबूतों को न्यायाधीश के सामने पेश करना, ताकि कोर्ट में बैठा न्यायाधीश सबूतों के आधार पर अपराधी को उसके अपराध के अनुसार सज़ा दे सके।
पुलिस अपने इस कार्य में विफल रही
दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि अब तक पुलिस अपने इस कार्य में विफल रही है। सबूतों के अभाव में अपराधी छूटते रहे हैं। अपराधी और पुलिस की मिलीभगत भी जगज़ाहिर है। इसके विपरीत पुलिस ने निर्दोष लोगों को चोरी से लेकर कत्ल, बलात्कार, आंतकवाद के झूठे केसों में फंसाया है। सबसे ज़्यादा भ्रष्टाचार भी पुलिस में ही है, यह भी हम सबको मालूम है।
- आज आपको अपनी न्याय प्रणाली पर विश्वास नहीं है।
- आप जंगली जानवरों की तरह अपराधी को भीड़ के हवाले करने की मांग कर रहे हैं।
- आप उसको अपने दांतों से फाड़ देना चाहते हैं।
- आप भीड़ के बर्बर कानून पर विश्वास करने लगे हैं।
उस बर्बर कानून पर विश्वास जिस कानून में बहुमत मेहनतकश जनता का ही उत्पीड़न होता है। इस उत्पीड़न के खिलाफ लड़ते हुए हमारे पूर्वजों ने हमको यह न्याय प्रणाली दी। इसमें बहुत सी खामियां हो सकती है। इन खामियों को दूर करने का काम भी हम सबका है लेकिन हम सत्ता के झूठे प्रचार में आकर इसको खत्म करके बर्बरता की तरफ लौटना चाहते हैं।
आने वाली नस्लों को गुलामी की तरफ धकेल रहे हैं
हम अपने हाथों से अपनी और आने वाली नस्लों को गुलामी की तरफ धकेल रहे हैं। हैदराबाद पुलिस द्वारा किया गया यह कत्ल भारतीय कानून व्यवस्था को उस बर्बर समाज की तरफ ले जाने की कोशिश का हिस्सा है, जिस कोशिश में देश की साम्प्रदायिक फासीवादी विचारधारा लगी हुई है।
बर्बर समाज में राजा ही संविधान है, राजा का आदेश ही कानून है, राजा का फैसला अंतिम है। जहां ना कोई मानवाधिकार है और ना किसी को आज़ादी है। इस राजशाही से लड़कर तो हमारे पूर्वज हमको अंधेरे से उजाले में लेकर आए थे लेकिन हम आज फिर उसी बर्बर समाज में लौटना चाहते हैं, तो यह मानसिक बीमारी नहीं तो और क्या है? लेकिन आप हैं कि इस कत्लेआम पर खुशियां मना रहे हैं।
आप अपनी न्याय प्रणाली जो पहले के बर्बर समाज से बहुत बेहतर है, उसपर विश्वास करने की बजाए पुलिस पर विश्वास कर रहे हैं। उस पुलिस पर जो
- सत्ता के इशारे पर काम करती है।
- जो चौक पर खड़ी होकर 10 रुपये में बिक जाती है।
- जो पुलिस ऑटो वालों को किराया ना देती हो और रेहड़ी-पटड़ी वालों, भिखारियों और सेक्स वर्कर्स से हफ्ता लेती हो।
- जिसका इतिहास काले धब्बो का इतिहास है।
- जिसने अनगिनत निर्दोष लोगों का कत्लेआम किया है।
- जिसने लाखो निर्दोष लोगों को जेल में सड़ाया है।
आप उस पर विश्वास कर रहे हो। आप उसको जज बना रहे हो। इससे ज़्यादा मानसिक बीमारी क्या होगी?
चलिए, याद करें ये केस
रेयान इंटरनेशनल स्कूल
आपको याद होगा रेयान इंटरनेशनल स्कूल, गुड़गांव का वह केस जिसमें एक बच्चे का कत्ल हो जाता है। हमारी पुलिस कत्ल के इल्ज़ाम में स्कूल बस के परिचालक को गिरफ्तार करती है।
पुलिस दावा करती है कि उसके पास CCTV फुटेज के साथ-साथ और भी पुख्ता सबूत हैं। परिचालक को यातनाएं दी जाती हैं। यातनाएं देकर उससे कत्ल का कबूलनामा भी करवा लिया जाता है लेकिन मासूम बच्चे के पिता को विश्वास नहीं होता और उसके नेतृत्व में आंदोलन होता है। जांच CBI के सपुर्द की जाती है। CBI जांच में परिचालक निर्दोष और कातिल एक दूसरा बच्चा निकलता है। उस समय भी बहुमत जनता परिचालक को “फांसी हो, फांसी हो” चिल्ला रही थी।
वह परिचालक इतना पीटा गया था कि आज भी सीधा खड़ा नहीं हो सकता है।
हिमाचल गैंग रेप
ऐसे ही हिमाचल में एक छात्रा का गैंग रेप होता है। गैंग रेप करने वाले अमीर घरों से थे। पुलिस उनको बचाने के लिये उन अमीर घरों के लड़कों से मिलीभगत करके एक खेल खेलती है। लड़कों के घर में काम करने वाले नेपाली व्यक्ति को रुपये का लालच देकर बलात्कार का आरोपी बनाया जाता है।
पुलिस उसको गिरफ्तार करती है उसके बाद थाने में उसकी हत्या की जाती है। पुलिस मीडिया को बयान देती है कि आत्म-गिलानी में आरोपी ने आत्महत्या कर ली है लेकिन हिमाचल के लोगों को इस पर विश्वास नहीं होता है और वे आंदोलन करते हैं। आंदोलन के बाद जांच होती है। जांच में सच्चाई सामने आती है। आज पुलिस के अफसर और बलात्कारी जेल में है।
आदिवासियों का कत्ल
ऐसे ही 2012 में भारतीय फोर्स द्वारा 17 आदिवासियों की हत्या की जाती है। फोर्स दावा करती है कि 17 माओवादी मुठभेड़ में मारे गए। पूर्व जज की निगरानी में जांच होती है, तो सच्चाई सामने आता है कि ये मुठभेड़ झूठी थी। उन 17 ग्रामीणों की हत्या की गई थी।
फोर्स आदिवासी लड़की को घर से उठाती है। उसके साथ सामूहिक रेप करती है। उसके बाद 11 गोलियां मारकर उसकी हत्या कर देती है। हत्या को मुठभेड़ में तब्दील करने के लिए उस आदिवासी लड़की को नक्सलियों वाली वर्दी पहनाई जाती है। एक बन्दूक पास में रखी जाती है। मीडिया का फोटो सेशन होता है। लेकिन कमाल ये था कि उस लड़की के शरीर में 11 गोली के 11 सुराग थे लेकिन उस वर्दी में 1 सुराग भी नही था।
भोपाल जेल मुठभेड़ और हाशिमपुरा नरसंहार
भोपाल जेल मुठभेड़ तो आप सबको याद होगा, जिसमें कैदी लकड़ी की चाबी से जेल के ताले को खोलकर, एक जेल गार्ड को मारकर और 20 फुट ऊंची दीवार फांद कर भाग जाते हैं। जिनको पुलिस सुबह-सुबह मुठभेड़ में मार देती है।
हाशिमपुरा का पुलिस जनसंहार भी इस मौके पर याद कर लेना चाहिए। 42 मुस्लिम निर्दोष लोगों को ट्रक में भरकर बस्ती से उठाया गया और मुरादनगर गंग नहर पर ले जाकर सबको लाइन में खड़ा करके गोलियों से छलनी करके नहर में बहा दिया।
कुछ साल पहले पुलिसवालों को सज़ा हुई। जनता ने तो उस कत्लेआम पर बहुत खुशी मनाई थी क्योंकि पुलिस ने बयान जारी करके बोला था कि ये सब दुर्दांत आंतकवादी थे।
न्याय प्रणाली ने हमेशा सच दर्शाया
इन सभी मामलों में बहुमत जनता ने पुलिस का समर्थन किया लेकिन भारतीय कानून न्याय प्रणाली के हस्तक्षेप से जांच हुई। जांच के बाद सच्चाई सामने आई। इसके साथ ही सामने आया पुलिस का क्रूर चेहरा, जो अपनी ताकत का इस्तमाल दलित, आदिवासी, मुस्लिम, महिला और किसान के खिलाफ सत्ता के इशारे पर करता रहा है और वर्तमान में भी कर रहा है।
पुलिस सत्ता के प्रति वफादार होती है लेकिन न्याय प्रणाली, न्याय व्यवस्था के प्रति वफादार होती है।
इस पूरे खेल के पीछे भारतीय सत्ता है, जिसके इशारे पर यह सब हो रहा है। हैदराबाद कत्ल तो एक फिल्म का ट्रेलर है लेकिन जैसे ही कोर्ट बन्द हो जाएंगे। मानसिक बीमार जनता की मांग पर कोर्ट थानों में लगने लगेगी और थानेदार कोर्ट का जज होगा।
जो भी इनकी सत्ता के खिलाफ, इनकी लूट के खिलाफ आवाज़ उठाएगा, उसपर कोई भी आरोप लगाकर मुठभेड़ में मार दिया जाएगा। जो लड़की इनके बिस्तर तक जाने के लिए मना करेगी उसके परिवार को या तो जेल में डाल दिया जाएगा या गोली से उड़ा दिया जाएगा।
वर्तमान में न्यायालय के होते हुए इन्होंने जब इतना आंतक मचाया हुआ है। सोचो जब थानों में कोर्ट लगेगी तब आपको किसी भी फैसले पर अपील करने की अनुमति नहीं होगी। पुलिस को किसी कोर्ट का डर नहीं होगा, तब उस समय क्या मंज़र होगा?
आपकी रूह कांप जाएगी सच्चाई जानकर, सच डरावना है लेकिन आपको विश्वास नहीं होगा, क्योकि आपने न्याय पालिका की छत्र-छाया में खुली सांस जो ली है लेकिन कभी कश्मीर की आवाम से पूछना, कभी असम, नागालैंड, मणिपुर, मिज़ोरम की आवाम या छत्तीसगढ़ के आदिवासी से पूछना जहां फोर्स को विशेष अधिकार मिले हुए हैं।
वहां कितना तांडव हुआ है, वे आपको अच्छे से बता सकते हैं। बस आपके कलेजे में सुनने की ताकत हो।
चरवाहे से नाराज़ भेड़ों ने कसाई को चुन लिया
देश की जनता का एक बड़ा हिस्सा इस कत्ल को जायज़ सिर्फ इसलिए ठहरा रहा है क्योंकि वे देर से मिले न्याय से नाराज़ हैं। खूंखार अपराधियों के छूटने से नाराज़ हैं। वे जल्दी फैसला चाहते हैं लेकिन इसके पीछे के कारणों को जाने बिना न्याय पालिका को दोष देना गलत होगा।
- सबसे पहले तो देश मे कोर्ट और जजों की भारी कमी है।
- दूसरा कारण न्याय में देरी और अपराधियो के छूटने के लिए बहुत हद तक पुलिस ही ज़िम्मेदार होती है जो कोर्ट में सबूत पेश नहीं करती है।
पुलिस चार्ज शीट पेश करने में ही महीनों गुज़ार देती है और ये सब अपराधियो से मिलीभगत के कारण ही सम्भव होता है।
- देश के अंदर वर्गीय सत्ता है। जिसका नेतृत्व पूंजीवादी और सवर्णवादी तबका कर रहा है। पुलिस सत्ता का अभिन्न अंग है इसलिए पुलिस भी वर्गीय है। इसी वर्गीय आचरण के कारण पुलिस निरंकुश और तानाशाही प्रवृत्ति की है।
- न्याय पालिका भी वर्गीय है। इसमें कोई दोराहे नहीं लेकिन सत्ता से कुछ स्वतंत्र होने के कारण न्याय पालिका निरंकुश नहीं है।
न्याय पालिका में और ज़्यादा सुधार करके जो कमियां हैं, वे दूर की जा सकती है। न्याय पालिका पर विश्वास किया जा सकता है।
अगर आपको अपना और अपनी आने वाली नस्लों का भविष्य बचाना है, तो इन हत्याओं का विरोध कीजिये। पुलिस को जज बनने से रोकिए। भीड़ के न्याय को नकारिये। अगर इसको नहीं रोका गया, तो क्या पता कब आपके अपनो को भीड़ कुचल दे।