झारखंड का जादूगोड़ा, जिसे आधुनिक भारत का हिरोशिमा भी कहा जाता है। यहां बच्चे पैदा होते समय लोग खुश नहीं होते, बल्कि डरे हुए होते हैं कि कहीं उनका बच्चा मरा हुआ या विकलांग ना पैदा हो। वजह, यहां यूरेनियम की खादानें लोगों के जीवन को बर्बाद कर रही हैं और सरकार इस समस्या को धड़ल्ले से नज़रअंदाज़ कर रही हैं।
इस दिशा में जागरूकता लाने और दुनियाभर को इस स्थिति से अवगत कराने के लिए फोटो जर्नलिस्ट आशीष बिरूली ने बेहतरीन काम किया है और लगातार इस दिशा में काम कर रहे हैं।
Youth Ki Awaaz Summit 2019 में आशीष ने अपने इसी सफर की कहानी युवाओं के साथ साझा की। इनके द्वारा खींची गई कई तस्वीरें विश्व के कई फिल्म फेस्टिवल में सराही जा चुकी हैं।
जादूगोड़ा की भयावह स्थिति
आशीष ने बताया कि झारखंड के जादूगोड़ा जैसे इलाकों में जागरूकता की भारी कमी है। सरकारें आदिवासी समाज को बेवकूफ समझ रही हैं। वहां रह रहे लोग डरते हैं कि उनके बच्चे विकलांग या मरे हुए पैदा ना हों।
आगे बताते हुए आशीष ने कहा,
50 सालों में आज तक एक भी अवेयरनेस कैंप नहीं लगाया गया है। इसका नुकसान मैंने स्वयं झेला है, मेरे दादा यूरेनियम माइन में काम करते थे। जागरूकता नहीं होने के कारण रेडिएशन से वह फेफड़े के कैंसर के शिकार हो गए और उनकी मौत हो गई।
आशीष ने अपनी दादी के कैंसर की बात बताते हुए कहा,
मेरे दादा के साथ ही मेरी दादी को भी कैंसर हो गया। दरअसल, दादा जी यूरेनियम माइन में मिलने वाले यूनिफॉर्म घर पहन कर आते थे। उस यूनिफॉर्म के साथ जानलेवा रेडियेशन घर तक भी आ जाते थे, जिसकी वजह से मेरी दादी भी उसकी शिकार हो गईं। उन्हें भी कैंसर ने जकड़ लिया।
यही कहानी जादूगोड़ा के कई आदिवासी परिवारों की है, जो फेफड़े के कैंसर और हेयर लॉस जैसी बीमारियों से शिकार हो रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक मनुष्य की आबादी से 100 किलोमीटर के दायरे में यूरेनियम माइनिंग प्रतिबंधित है लेकिन जादूगोड़ा में माइनिंग का सिलसिला अनवरत जारी है।
उन्होंने बताया,
मेरे घर के 500 मीटर की दूरी पर रेडियोएक्टिव का कचरा फेंका जाता है। कई ऐसे भी घर हैं, जिनसे महज़ 100 मीटर की दूरी पर यह रेडियोएक्टिव कचरा फेंका जाता है। इनकी मात्रा 1000 टनों से भी अधिक रहती है।
जादूगोड़ा में रेडियोएक्टिव कचरा फेंके जाने के कुल 3 सेंटर हैं, जो करीब तीन से चार फुटबॉल मैदानों के बराबर हैं। इसके अलावा एक और सेंटर बनाने की योजना है।
फोटो के ज़रिए कैसे हुआ जादूगोड़ा की समस्या को लोगों तक पहुंचाने का सफर
बाहर से जादूगोड़ा की कहानी को तस्वीरों में कैद करने आए फोटोजर्नलिस्ट से आशीष ने स्टोरी टेलिंग की कला सीखी और खुद इस दिशा में अपने फोटो के ज़रिए जागरूकता में जुड़ गए। इसके बाद उनकी तस्वीरों को पहली बार विश्वस्तर पर इंटरनैशनल यूरेनियम फिल्म फेस्टिवल ब्राज़ील में प्रदर्शित किया गया। आज जादूगोड़ा की गंभीर समस्या को लेकर आशीष जैसे सामाजिक कार्यकर्ता अपनी आवाज़ उठा रहे हैं।