क्या आपने कभी सोचा है कि आपकी एक जीन्स या टी-शर्ट बनने में कितना लीटर पानी खर्च हो जाता है? तो इस लेख में जानते हैं कि कैसे हमारे कपड़े धरती को नुकसान पहुंचा रहे हैं?
अपनी फेवरेट जींस और टी-शर्ट का पेयर उठाइए और अंदाज़ा लगाइए कि इसमें कितना लीटर पानी खर्च हुआ होगा? यूनाइटेड नेशन्स एनवायरमेंटल प्रोग्राम के मुताबिक,
एक नॉर्मल जींस और टी-शर्ट का पेयर बनाने में 12900 लीटर से ज़्यादा पानी खर्च होता है। अगर एक व्यक्ति एक दिन में 5 लीटर पानी पी रहा है, तो जींस-टीशर्ट बनाने की प्रक्रिया में उतना पानी खर्च हो गया, जितना हम 7 साल में रोज़ाना पीएंगे।
अमेरिकन लेखक स्टीफन लेह्य की किताब ‘Your Water Footprint: The Shocking Facts About How Much Water We Use to Make Everyday Products’ के मुताबिक, इस 7500 लीटर पानी में जींस के उत्पादन और मैन्युफेक्चरिंग में खर्च होने वाला पानी भी शामिल है लेकिन आप जो जींस को धोने में पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं, वह इसमें शामिल नहीं है। इस किताब के मुताबिक, एक अमेरिकी का रोज़ाना का औसतन वॉटर फुट प्रिंट 8000 लीटर्स है।
स्टीफन लेह्य के मुताबिक,
एक लीटर का भार 1 किलोग्राम के बराबर होता है, 8000 लीटर 8000 किलोग्राम हो गया, तो इस तरह से आप चार कार के वज़न के बराबर पानी अपने साथ लेकर चल रहे हैं।
जींस बनाने में पानी क्यों बहुत अधिक खर्च होता है?
जींस बनाने में पानी खर्च होने का सबसे बड़ा कारण कॉटन की खेती है। आंकड़ों के मुताबिक,
- एक किलोग्राम कॉटन की खेती में औसतन 10,000 लीटर पानी खर्च हो जाता है।
- अगर पारम्परिक खेती की बजाय इरिगेशन मेथड से कॉटन की खेती की बात की जाए, तब भी एक किलोग्राम कॉटन में 8000 लीटर पानी खर्च होता है।
- दुनियाभर में कॉटन की सर्वाधिक खेती के मामले में भारत शीर्ष देशों में आता है।
- अगर भारत की इस मामले में बात की जाए तो यहां कॉटन की अधिकतर खेती थोड़े सूखे क्षेत्र में होती है।
- भारत में भूजल स्तर लगातार गिर रहा है, तो ऐसे में इसके विकल्प पर भी विचार करने की ज़रूरत है।
अब कुछ लोग सवाल उठाएंगे कि कई लोग पॉलिस्टर की जींस और टी-शर्ट पहनते हैं तो?
ग्रीनपीस और वर्ल्ड रिसोर्सेज़ इंस्टीट्यूट के मुताबिक,
कॉटन के उत्पादन की बजाय पॉलिस्टर बनाने में 2-3 गुना अधिक कार्बन उत्सर्जन होता है। कॉटन तो मिट्टी में घुल जाता है लेकिन पॉलिस्टर नहीं घुलता क्योंकि यह प्लास्टिक का एक रूप है।
अब सवाल यह है कि जींस बनाने के कारण विकासशील देशों के वॉटर रिसोर्सेज़ पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?
ज़्यादातर कपड़े बांग्लादेश, तुर्की, कज़ाकिस्तान, कंबोडिया जैसे देशों में बनते हैं और इस मामले में सबसे सटीक उदाहरण है कज़ाकिस्तान की अराल सी लेक। आज यह लेक तकरीबन-तकरीबन सूख चुकी है लेकिन 50 साल पहले यही लेक दुनिया की चार सबसे बड़ी झीलों में शामिल थी। लेक सूखने का सबसे बड़ा कारण है, कॉटन की खेती के लिए पानी का बहुत अधिक दोहन।
इसे कम करने के क्या उपाय हैं?
मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आप कपड़े खरीदना बंद कर दीजिए लेकिन इतना तो कर ही सकते हैं कि एक साल में जो 12 जोड़ी कपड़े खरीदे जा रहे हैं वो कम कर दीजिए। मैं यह नहीं कह रहा कि आप हॉट पैंट्स नहीं पहन सकते, आप पहनिए लेकिन लंबी अवधि के लिए।
ABC न्यूज़ के मुताबिक, अगर आप एक जोड़ी कपड़े 9 महीने ज़्यादा पहन लेते हैं, तो इससे कार्बन फुटप्रिंट 30% तक कम हो जाता है। इस इंडस्ट्री को अधिक सस्टेनेबल बनाने के लिए जनता, अभिनेताओं, मैनुफेक्चरर्स और सरकार सभी को इसमें अपना सहयोग देना होगा।
अगर हर कोई इस साल एक नए कपड़े की बजाय एक रीसायकल कपड़ा खरीदता है, तो इससे तकरीबन 2.7 किलोग्राम कार्बन डायऑक्साइड का उत्सर्जन बच सकता है। अगर व्यक्तिगत तौर पर लोग इस पर काम करें, तो हम सभी एक बड़ा बदलाव कर सकते हैं।
उपभोक्ता या ग्राहक इसके लिए लाइफ स्टाइल में ये बदलाव कर सकते हैं-
-अगर आपको कपड़ों का इस्तेमाल नहीं करना है तो उसे डोनेट कर दीजिए। इस मामले में गूंज संस्था काफी अच्छा काम कर रही है।
-अगर कपड़ा (जींस या टी-शर्ट) कहीं से थोड़ा-बहुत फट जाता है, तो उसे फेंकिए नहीं, बल्कि उसमें रफू करा लीजिए या अगर कपड़ा ज़्यादा फट गया है, तो उसका डोरमेट या बैग बना लीजिए। इससे गैर-इस्तेमाल वाले कपड़े रीसायकल हो सकेंगे और लैंडफिल साइट्स में जाने से बचेंगे।
-उतना ही सामान खरीदिए जितने की ज़रूरत हो। कई ऐसे देश हैं जहां 40% खरीदे गए कपड़ों का कभी इस्तेमाल नहीं होता है।
-स्मार्ट लॉन्ड्री मैनेजर बनिए, एक बार में अधिक-से-अधिक कपड़े धुलें, ताकि प्रदूषण कम हो सके।