वर्तमान समय में जो आंदोलन हो रहे हैं, उससे स्पष्ट हो गया कि भारत के लोग क्या सोचते हैं, उनकी प्राथमिकताएं क्या हैं। इसके साथ ही यह भी स्पष्ट हो गया कि हिन्दुस्तान के लोग धर्मनिरपेक्ष थे, हैं और रहेंगे। इसे धार्मिक स्तर पर बांटा नहीं जा सकता है।
जिस तरह तमाम आंदोलनों में सभी वर्ग समुदाय के लोग भाग ले रहे हैं, वह सराहनीय है। यह उसी तहज़ीब का हिस्सा है, जो हम सदियों से सुनते आ रहे थे कि यह भारत सबका है। लोगों ने फिर से संविधान की प्रस्तावना को पढ़ा और समझा है। लोगों के हाथों में गाँधी, अंबेडकर की तस्वीरें और संविधान की प्रतियां हैं। यह एक तरह की जीत है, फासीवादी सोच पर। जिस तरह से इस आंदोलनों में विशेष कर मुस्लिम युवाओं ने संविधान को समझा और उसे फिर से पढ़ा है, यह भी सरहनीय है।
अब मुस्लिम समुदाय को यह तय करना होगा कि उनकी प्राथमिकताएं क्या हैं?
उन्हें फिर से एक बार खुद के समुदायों में आत्ममंथन करना होगा कि उनकी स्थिति हर क्षेत्र में खराब क्यों हो गई है? मदरसों के शिक्षकों और प्रशासनिक पदाधिकारी को तय करना होगा कि उनके मदरसों में विज्ञान और संविधान के कितने शिक्षक हैं और अगर नहीं हैं तो क्यों नहीं हैं।
यहां मैं यह स्पष्ट कर देता हूं कि मैं किसी मदरसे की आलोचना नहीं कर रहा हूं, बस यह बता रहा हूं कि आपको मंथन करना होगा, एक समुदाय के तौर पर।
मुस्लिम समुदायों की आलोचना के ज़िम्मेदार खुद हम मुस्लिम भी हैं
यह बात सच है कि तमाम सरकारों में आपकी अवहेलना हुई है परन्तु इसके ज़िम्मेदार हम भी हैं। हमें धार्मिक गुरुओं के कहने पर फैसला लेना है या उन वैज्ञानिक सोच और शिक्षकों की सोच पर जो हमें एक बेहतर भविष्य देने को आतुर हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों के मुसलमानों के हालात और भी दयनीय हैं, चाहे वह जो भी क्षेत्र हो, अभी भी उन क्षेत्रों में नाबालिक बच्चों की शादियां हो रही हैं। शिक्षा का स्तर सबसे बुरे हाल में है, लड़कियों की हालत तो और भी खराब है, उन्हें तो अच्छे पढ़े-लिखे मुस्लमान भी उच्च शिक्षा दिलाने से परहेज़ करते हैं, यहां तक कि उनके लिए पर्याप्त मदरसे तक नहीं हैं।
मदरसे द्वारा अपने यहां के पाठ्यक्रमों की समीक्षा के लिए यह सही वक्त है, उन्हें वह हर किताब अपने पाठ्यक्रम में शामिल करनी होगी, जिससे उनके बच्चे की सोच वैज्ञानिक और संवैधानिक हो।
संवैधानिक से मेरा आश्रय संविधान के विस्तारित ज्ञान से है। आपको अपना नेता किसे चुनना है, यह आपका निजी फैसला होगा परन्तु यह फैसला लेने से पहले यह तय करें कि उनके भाषण और वादे कैसे हैं, धार्मिक या सामजिक? आप लच्छेदार भाषण देने वाले धार्मिक गुरुओं और नेताओं से बचे।
धार्मिक गुरुओं की तकरीरों की समीक्षा ज़रूरी
अपने यहां होने वाले धार्मिक जलसों में आने वाले धार्मिक गुरुओं पर भी नज़र रखें कि वे अपनी तकरीरों में कहीं नफरत तो नहीं बांट रहे हैं। अगर ऐसा होता है तो उनके तकरीरों पर तालियां बजाने और हौसला बढ़ाने की बजाय उनसे बचे, उन्हें बुलाना बंद करें।
अपने और अपने बच्चों के सोशल मीडिया को देखें कि वह क्या देख रहे हैं और फैला रहे हैं। आपको अपने इतिहास को देखना है, या वर्तमान और भविष्य को यह आपको तय करना है। आपको अपने जुलूसों में भीड़ ज़्यादा दिखानी है या स्कूलों और अच्छे संस्थानों में, यह सब आपको तय करना है।
यह आपको सोचना होगा होगा कि आपकी संख्या स्कूलों, उच्च संस्थानों और ऊंचे पदों पर कितनी है और यह भी आपको ही तय करना होगा कि देश के तमाम IIT, IIIT, NIT, IIM, AIIMS, NIFT, IIMC और प्रमुख विश्वविद्यालयों में आपके कितने लड़के-लड़कियां हैं।
अभी जितने आंदोलनों में आप आगे लड़की देख रहे हैं, आपको भी यह तय कर लेना होगा कि हर क्षेत्रों के उच्च संस्थानों में आप अपनी लड़कियों को भेजेंगे। उल्माओं का यह फर्ज़ बनता है कि आप आवामों को पंत में बांटने की बजाय उन्हें बेहतर शिक्षा के लिए प्रेरित करें।
अपने जकात के पैसों को कहा लगाना है, यह भी तय करें। बड़ी-बड़ी मदरसों की इमारतें नहीं वहां जाकर उन मदरसों के हालत और क्वालिटी चेक करें।