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“क्या जातिगत भेदभाव का कारण हिन्दू धर्म में मौजूद जाति आधारित व्यवस्था है?”

अंबेडकर

अंबेडकर

“हर आदमी जो मिलकर इस सिद्धांत को दोहराता है कि एक देश किसी दूसरे देश पर शासन करने के लिए उपयुक्त नहीं है, उसे यह भी मानना होगा कि एक जाति भी दूसरी जाति पर शासन करने के लिए उपयुक्त नहीं है”- बाबा साहेब अंबेडकर

‘जातियों का विनाश’ बाबा साहब की वह पुस्तक जिसे विश्वभर में सर्वाधिक पढ़ा गया। यही नहीं, इसे मानवतावादी दृष्टिकोण रखने वाले भारत से तारीफ भी मिली और तो और समतामूलक समाज के निर्माण हेतु इस ग्रन्थ को सर्वाधिक कारगर माना गया।  

भारतीय समाज में जाति क्या है? क्या इसका विनाश कर एक बेहतर शोषण मुक्त, समतामूलक समाज के निर्माण हेतु कल्पना की जा सकती है? याद कीजिएगा 1936 में हुए लाहौर के जात-पात तोड़क अधिवेशन सम्बंधित लिखित व्याख्यान को। तब तथाकथित बुद्धिजीवियों द्वारा विचारों पर जताई गई असहमति के आधार पर अधिवेशन को निरस्त कर दिया गया था।

सुखिया सब संसार है खाए अरु सोवै।

दुखिया दास कबीर है जागे अरु रोवै।।

कबीर की यह वाणी बाबा साहेब पर सटीक बैठती है, जिन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी शोषितों और वंचितों के लिए समर्पित कर दी थी। बाबा साहेब देश के उस 85 प्रतिशत वर्ग की आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे थे, जो जाति रूपक बंधनों के कारण अशिक्षा, शोषण, भूख, गरीबी, संसाधनों से वंचित और उपेक्षित थे, क्योंकि हिन्दू समाज की वर्ण व्यवस्था लगातार जाति और लिंग के आधार पर ऊंच-नीच, भेद-भाव, संसाधनों में अधिकार एवं समान अवसरों को खत्म कर शोषित और सामन्ती समाज की स्थापना कर रही थी।

आज़ादी के उन तमाम नायकों को याद कीजिए जो भारत को अंग्रेज़ों से आज़ाद कराने में लगे थे। तब बाबा साहेब के अतिरिक्त ऐसा कोई नायक देश में नहीं था, जो देश की 85 प्रतिशत वर्ग की आज़ादी के लिए खड़ा हो। जो अपने ही देश में देशवासियों द्वारा सैकड़ों वर्षों से शोषित और अत्याचार का शिकार हो रहा था। जिनके साथ जानवरों से भी बदतर सलूक किया जा रहा था।

अंबेडकर ने बेहतर समाज हेतु जाति के विनाश की बात रखी थी

बाबासाहेब अंबेडकर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

आज देश की राजनीति में ऐसा कोई नायक है क्या जो इस शोषणकारी व्यवस्था को खत्म कर सके? क्योंकि भारतीय समाज में इस शोषण और भेदभाव का मुख्य कारण हिन्दू धर्म में जाति आधारित व्यवस्था है, जिसे तथाकथित पवित्र ग्रंथों द्वारा संरक्षण प्राप्त है। यही कारण है कि अंबेडकर ने एक बेहतर समाज के लिए जाति के विनाश की बात रखी थी।

बाबा साहब ने यह भी कहा कि अगर इस व्यवस्था के बचाव में आगे कोई ग्रन्थ भी आए तो उसे भी जला दिया जाना चाहिए। साथ ही कोलम्बिया विश्वविधालय में अपने लेख के प्रकाशन के दौरान उन्होंने कहा कि अगर जातिवादी वर्ण व्यवस्था रखने वाला धर्म भारत के बाहर विश्वभर में भी स्थापित होता है, तो भारत की जातिवादी समस्या सम्पूर्ण विश्व की समस्या बन जाएगी।

 हेडगेवार ने जातियों के विनाश की बात नहीं की

सरसंघचालक हेडगेवार। फोटो साभार- सोशल मीडिया

आरएसएस के सरसंघचालक हेडगेवार ने कभी जातियों के विनाश की बात नहीं की, बल्कि उन्होंने इसकी जगह राजनीतिक रूप से जातियों के बीच सामाजिक समरसता स्थापित करने की बात रखी। जिनकी समरसता के आधार पर ऊंच-नीच का भेद यथावत निहित रहता है। यही संकल्पना जाति को आधार देती है।

जातिगत भेदभाव के विरुद्ध बाबा साहेब का सामाजिक मॉडल बेहतर है, जो देश में वंचितों को सक्षम बनाने पर ज़ोर देता है। जिसके आधार पर ये खुद जातिवादी ढांचे को ध्वस्त कर सके। जबकि आरएसएस समरसता लाने के लिए सभी को साथ में भोजन कराने जैसे प्रयास करता है, जो साफ तौर पर झूठा है।

संघ आज़ादी के पूर्व से लेकर आज तक लगातार समरसता के आधार पर जातिवादी समस्या का हल खोजने हेतु दिखावे करता रहा है। यहां तक कि वह देश में खुद को दलित, आदिवासियों और पिछड़ों का हितैषी साबित करने में लगातार लगा रहा है लेकिन संघ के उच्च अधिकारी अक्सर ऊंची जाती से रहे हैं जो एक सवाल है।

क्या जन जागृति के साथ जन क्रांति भी आ रही है?

जबकि आज भी जातिगत शोषण और दलित उत्पीड़न की घटनाएं चरम पर हैं। बीजेपी शाषित राज्यों में ऐसी घटनाएं अधिक देखने को मिली हैं। आज भीमा कोरेगाँव, उना कांड और रोहित वेमुला आदि जैसे उत्पीड़न के खिलाफ भारी जन संघर्ष खड़ा हुआ है। इस आधार पर हम यह कह सकते हैं कि आज जन जागृति के साथ जन क्रांति भी आ रही है।

संघ की तुलना में भारतीय समाज को बेहतर बनाने हेतु बाबा साहेब द्वारा दी गई जातियों के विनाश की विचारधारा ही कारगर साबित होती है। मैं बार-बार समरसता शब्द इस लिए लिख रहा हूं, क्योंकि संघ ने भारतीय समाज को बेहतर बनाने में वास्तविक रूप से भले कोई प्रयास ना किया हो परन्तु देश में झूठे प्रयासों के आधार पर राजनीतिक पैठ स्थापित करने में बखूबी सफलता पाई है।

बाबा साहब की विचारधारा हर उस व्यक्ति के उत्थान हेतु बनी रहेगी, जो भेद-भाव, जाति-धर्म, असामनता और अशिक्षा के आधार पर शोषित हैं।

नोट: लेख में प्रयोग किए गए तथ्य बाबा साहेब की पुस्तक “जातियों का विनाश” से लिए गए हैं।

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