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आर्थिक रूप से कमज़ोर लोग प्रदूषण से खुद को बचाने में असमर्थ हैं: UNDP रिपोर्ट

आज के समय में क्लाइमेट चेंज को असमानता के पहलू से जोड़कर देखना बहुत ज़रूरी है। हम इस गंभीर पहलू को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते हैं। यह बात यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (UNDP) की रिपोर्ट में भी शामिल की गई है। यह संगठन गरीबी उन्‍मूलन और असमानता तथा बहिष्‍करण में कमी के लक्ष्‍य हासिल करने में मदद करता है।

आज UN द्वारा दिल्ली के UN ऑफिस में आयोजित की गई Roundtable on intersections of inequality में इस गंभीर मुद्दे के साथ ही असमानता के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई, जिसमें अपने-अपने क्षेत्र के विभिन्न एक्सपर्ट्स ने UNDP 2019 की रिपोर्ट को केंद्र में रखते हुए अपनी बात रखी।
यह राउंडटेबल इस रिपोर्ट पर चर्चा के लिए ही आयोजित किया गया था।

जलवायु और असमानता से जूझ रहा है विश्व

UNDP इंडिया की रेसिडेंट प्रतिनिधि शोको नोडा  ने जलवायु और असमानता पर बात करते हुए बताया कि किस तरह यह अमीरों और गरीबों को अलग-अलग रूप में प्रभावित कर रहा है।

उन्होंने अपनी बात रखने के लिए दिवाली के बाद बढ़े प्रदूषण का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि दिवाली के बाद प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ चुका था। इस प्रदूषण में कई लोग ऐसे थे, जिनके पास उस प्रदूषण से बचने के लिए मास्क नहीं थे।

उन्होंने इस बारे में आगे कहा,

समाज का एक बड़ा तबका प्रदूषण के दुष्परिणामों को भी नहीं समझ रहा है और अगर वह तबका इन परिणामों को समझ भी जाए तो भी उससे बचने के लिए उनके पास कोई साधन नहीं हैं, उनके पास पैसे नहीं हैं कि वे इस प्रदूषण से बचने के लिए ज़रूरी सामग्रियों को खरीद सकें। यहां प्रदूषण और असमानता को हम देखते हैं।

उन्होंने इस दिशा में आगे बात करते हुए कहा कि वायु प्रदूषण से बचने के लिए आर्थिक रूप से संपन्न तबका एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल कर रहा है। लेकिन इससे ज़्यादा बिजली की खपत हो रही, जो जलवायु के लिए खतरा है।

इस तरह से वह तबका खुद को प्रदूषण से बचाने के लिए दूसरे रूप में जलवायु परिवर्तन को प्रभावित कर रहा है और यह एयर प्यूरिफायर समाज के एक तबके के लिए खरीदना संभव भी नहीं होता है।

जलवायु परिवर्तन की दिशा में जल्द ही एक्शन लेने की दिशा में बात करते हुए शोको नोडा ने कहा,

हम 21वीं शताब्दी में रह रहे हैं और SGDs के लिए हम सिर्फ 10 साल पीछे हैं। अब आराम से बैठने का समय नहीं है, हमें इस असमानता को रोकने के लिए तुरंत काम करना होगा।

 

UNDP रिपोर्ट में ट्रांस समुदाय पर विस्तार से बात ना होने पर जताई चिंता

नॉर्थ बंगाल की लोक अदालत में अपॉइंट होने वाली पहली ट्रांस महिला जोयिता मोंडल ने इस दिशा में चिंता जताते हुए कहा कि जेंडर के संदर्भ में केवल महिलाओं और पुरुषों की ही बात होती है। थर्ड जेंडर पर कोई बात ही नहीं होती है।

जनगणना में 4 लाख 90 हज़ार ट्रांस लोगों की गणना हुई लेकिन आज भी इस जनसंख्या के कई लोगों को अपने मूलभूत अधिकारों के लिए लड़ना पड़ रहा है। इस समुदाय और यूएन की रिपोर्ट पर बात करते हुए जोयिता बताती हैं कि भले ही हमारी जनसंख्या को चिन्हित कर लिया है लेकिन हमारी शिक्षा पर कोई बात नहीं होती है।

 

जोयिता इस मुद्दे पर बात करते हुए कहती हैं कि बिल आ चुका है लेकिन राईट्स नहीं है। इस पर आप अगर LGBTQ+ समुदाय से ताल्लुक रखने के साथ ही दलित हैं तो यह लड़ाई और मुश्किल हो जाती है। भले ही आज रिपोर्ट मानव विकास के बारे में बात कर रही है लेकिन ट्रांस समुदाय के लिए अभी भी फील्ड में सब ज़ीरो है। उनका कहना है,

हर जगह मेल फीमेल हैं लेकिन हम कहां है?

इस चर्चा में शामिल राजीव गाँधी इंस्टीट्यूट ऑफ कॉन्टेम्पररी स्टडीज़ के सीनियर फेलो सूरज कुमार ने कहा कि जैसे-जैसे आप बड़े होते हैं, वैसे-वैसे आपके साथ भेदभाव बढ़ता जाता है। उन्होंने कहा कि एचडीआर सिर्फ नंबर की बात नहीं है, उन लोगों की बात है जो पीछे छूट गए हैं।

विनातोली ने अपनी बात रखते हुए कहा,

हमें क्वालिटी एजुकेश पर बात और उसपर काम करने की ज़रूरत है। अभी हाल ही में मैंने सोशल मीडिया पर एक बच्ची का वायरल वीडियो देखा, जिसमें वह रोते हुए कह रही है कि उसे स्कूल नहीं जाना है।

HDR सिर्फ नंबर की बात नहीं, पीछे छूट चुके लोगों की बात है

वकील और पोएट विनातोली ने इस चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि हम आज के युवा एजुकेश की महत्ता को अच्छे से समझते हैं। हमें पता है कि एक क्वालिटी लाइफ के लिए एक बेहतर एजुकेशन बेहद ज़रूरी है। तो ऐसे में हमें इस बात पर चिंता होनी चाहिए कि क्यों कोई बच्चा स्कूल से इस कदर डर रहा है, या डर रही है। इसकी वजह यह हो सकती है कि हम एजुकेशन का अच्छा, एक दिलचस्प माहौल बनाने में नाकामयाब हो रहे हैं। हमें इस दिशा में काम करने की ज़रूरत है।

उन्होंने भारत की अलग-अलग समस्याओं पर भी बात की। उन्होंने कहा कि अलग-अलग राज्यों की अलग-अलग समस्याए हैं। सिक्किम की समस्या अलग है, महाराष्ट्र की अलग। हमें इन स्टेट्स की अलग-अलग समस्याओं को समझते हुए उनको अलग-अलग तरह से अड्रेस करने की ज़रूरत है। सभी राज्य किन समस्याओं का सामना कर रहे हैं उनपर बात होनी चाहिए। उन्होंने कहा HDR रिपोर्ट में इस मसले को शामिल करना ज़रूरी है।

यह कहना गलत नहीं होगा कि रिपोर्ट में भेदभाव के कई मुद्दे सामने आए हैं और इस साल यह रिपोर्ट यह साबित कर रही है कि भेदभाव सिर्फ इनकम से नहीं नापा जा सकता है। जेंडर से लेकर पर्यावरण तक कई बातें हुईं जिन्होंने कई सारे इंटरसेक्शंस को सामने लाया।

जलवायु परिवर्तन का महिलाओं और वंचित वर्गों पर प्रभाव

इस क्रम में रचिता जो की एक पॉलिटिकल कार्टूनिस्ट हैं, ने HDR 2019 की रिपोर्ट पर बात रखते हुए जलवायु परिवर्तन और महिलाओं पर होने वाले प्रभाव पर फोकस किया।

उन्होंने अपनी बात रखते हुए कहा कि हमें इस बात को समझना और स्वीकार करना होगा कि जलवायु परिवर्तन महिलाओं को बड़े स्तर पर प्रभावित कर रहा है। जलवायु शरणार्थियों में ज़्यादातर महिलाएं शामिल होंगी।

वहीं डिजिटल इम्पावरमेंट फाउंडेशन की तरफ से आई अनुलेखा नंदी ने इस रिपोर्ट के टेक्नॉलोजी सेक्टर और आधिकार पर बात की। उन्होंने कहा,

जब हम लोग ग्रामीण इलाकों में काम करते हुए तकनीक की पहुंच को देखते हैं तो वहां असमानता का एक बड़ा स्तर दिखाई देता है। ग्रामीण स्तर पर काम करते हुए हमने देखा कि सिर्फ 15-16 प्रतिशत लोगों के पास तकनीक की पहुंच होती है। बात जब जाति और जेंडर की करते हैं तो यह प्रतिशत और घट जाता है।

अपनी बात रखते हुए उन्होंने सवाल पूछे,

स्टेट ऑफ ऐक्सेस टू टेक्नोलॉजी का मतलब क्या है? क्या यह सोशल स्पेस, जेंडर स्पेस, आर्थिक स्पेस प्रदान करता है या कर रहा है? इसका जवाब है नहीं। हम देखते हैं कि ज़्यादातर सामग्रियां अंग्रेज़ी में हैं, यह महिलाओं या वंचित समुदायों की आर्थिक सहायता में भी काफी निम्न स्तर पर सहायक होता है। HDR में इस ब्रिज को पार करने के लिए बात ज़रूरी है।

Youth Ki Awaaz के संस्थापक अंशुल तिवारी ने असमानता के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करने की महत्ता पर बात करते हुए कहा कि कई समुदाय असमानता और पक्षपात पर खुलकर बोल रहे हैं मगर उनकी बातों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है। इन आवाज़ों को नज़रअंदाज़ किए बिना उनकी समस्याओं का समाधान ढूंढना ज़रूरी है। 

जलवायु परिवर्तन की दिशा में हम सभी को मिलकर काम करने की ज़रूरत

अंशुल ने एक और गंभीर मुद्दे पर अपनी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि भारत सरकार आज जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को गंभीरता से नहीं ले रही है। नीति निर्माता इस मुद्दे को आज भी नज़रअंदाज़ कर रहे हैं। इसके लिए व्यक्तिगत रूप में हम सभी को अपनी आवाज़ उठाने की ज़रूरत है। 

अभी पूरा विश्व कार्बन उत्सर्जन को लेकर चिंतित है और उन्होंने इस दिशा में अपनी योजना तैयार की है। लेकिन जब बात भारत की करें तो भारत के पास कोई सही प्लान ही नहीं है अभी तक इस दिशा में।

हमें अलग-अलग सुमदायों के युवाओं के साथ, संसद को रिप्रेजेंड कर रहें युवाओं के साथ, नीति निर्माताओं के साथ मिलकर काम करना होगा।

दलित एक्टिविस्ट पॉल दिवाकर ने कहा कि अधिकारों पर बात करने के संदर्भ में हमें आदिवासियों और दलितों की भी बात करनी होगी। सच्चाई तो यह है कि दलितों तक सरकारी योजनाएं भी नहीं पहुंचती हैं।

HDR 2019 रिपोर्ट में डिसेबिलिटी के मुद्दे को किया गया नज़रअंदाज़

वहीं Nipman Foundation के संस्थापक निपुण मल्होत्रा ने HDR 2019 रिपोर्ट में डिसेबिलिटी के मुद्दे को नज़रअंदाज़ किए जाने पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि डिसेबिलिटी को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया गया है। भारत में डिसेबिलिटी एक गंभीर समस्या है। मुझे उम्मीद है कि भविष्य में, डिसेबिलिटी को गंभीरता से तवज्जो दी जाएगी।

इस तरह के कई मुद्दों और मानकों पर राउंड टेबल पर चर्चा की गई। मानव विकास केवल भेदभाव या आमदनी के वितरण से संबंधित नहीं है। हमारी पहचान, हमारे अधिकार और यह पर्यावरण भी हमारे संपूर्ण विकास के लिए बहुत ज़रूरी है।

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