पराली जालने से हो रहा वायु प्रदूषण पिछले काफी सालों से एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश में जलाई जाने वाली पराली (धान का अवशेष) दिल्ली के प्रदूषण स्तर को भी बुरी तरह प्रभावित कर रही है।
लेकिन इस वायु प्रदूषण के साथ ही पराली का जलना मिट्टी के लिए भी काफी नुकसानदेह साबित होता है। पराली का जलाया जाना मिट्टी प्रदूषण के परिणाम के रूप में भी सामने आता है, जिसका नुकसान ना सिर्फ पर्यावरण को बल्कि खुद किसानों को भी होता है। वजह, मिट्टी की उर्वरा शक्ति पर असर होने से कृषि उत्पाद प्रभावित होती है।
पराली जलाए जाने का मिट्टी पर नकारात्मक असर-
जब पराली यानि धान का अवशेष जलाया जाता है तो मिट्टी में मौजूद कई सुक्ष्म जीव, जो सजीव रूप में मिट्टी में मौजूद होते हैं और खेती में भी सहायक की भूमिका निभाते हैं वे नष्ट हो जाते हैं, इसके साथ ही कई वनस्पतियां भी खत्म हो जाती हैं।
मिट्टी 5 सामग्रियों का मिश्रण होती है- खनिज पदार्थ, मिट्टी के कार्बनिक पदार्थ, जीव-जंतु, गैस और पानी। मिट्टी में इन सामग्रियों का एक खास रूप में संतुलन होता है। मिट्टी में आग लगने जाने पर यह मिश्रण असुंतलित हो जाता है और कई नकारात्मक परिणाम सामने आते हैं।
नमी में कमी- मिट्टी में आग लगने से पानी का दबाव बढ़ता है। उसकी नमी क्षमता कम होने पर मिट्टी ज़्यादा पानी की मांग करती है, जिससे पानी की खपत भी बढ़ती है।
मिट्टी के तापमान में वृद्धि- पराली जलाने से उत्पन्न तापमान का मिट्टी पर बुरा असर पड़ता है। यह गर्मी मिट्टी में 1 सेंटीमीटर तक प्रवेश करती है और तापमान को 33.8 से 42.2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा देती है। तापमान बढ़ने से मिट्टी की उर्वरा क्षमता के लिए महत्वपूर्ण बैक्टीरिया और कवक नष्ट हो जाते हैं।
नकारात्मक प्रभाव डालने वाले सूक्ष्मजीवों में बढ़ोतरी- फसल अवशेषों को जलाने से मिट्टी की जैविक गुणवत्ता में मौजूद अन्य सूक्ष्मजीवों को भी नुकसान होता है। ‘अनुकूल’ कीटों के नुकसान के कारण नकारात्मक प्रभाव डालने वाले कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है।
एक टन पराली के जलने से मिट्टी के 5.5 किलोग्राम नाइट्रोज़न, 2.3 किलोग्राम फॉस्फोरस, 25 किलोग्राम पोटेशियम और 1 किलोग्राम से अधिक सल्फर की हानि होती है। इसके अलावा 50 से 70 प्रतिशत ज़रूरी माइक्रो न्यूट्रीशियन तत्वों का भी नुकसान होता है।
हिसार के एक्टविस्ट अशोक प्रजापति ने इस दिशा में बात करते हुए बताया कि मिट्टी में आग लगाने से आग आसपास के ऑक्सीजन को खत्म करती है, इसी प्रक्रिया में मिट्टी में मौजूद ऑक्सीजन उत्पन्न करने वाले तत्वों का भी नाश हो जाता है।
क्यों जलाई जाती है पराली
1998-99 के आसपास सरकार की तरफ से कृषि वैज्ञानिकों ने गॉंव-गॉंव जाकर कैंप लगाना शुरू किया था, जिसका उद्देश्य किसानों को कृषि तकनीक के प्रति जागरूक करना था। इसमें इस बात पर फोकस किया गया था कि फसल काटने के बाद जल्द-से-जल्द खेत की सफाई कर दें, जिससे दूसरे फसल की पैदावार बढ़ेगी और फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीट भी मर जाएंगे।
लेकिन इसका नकारात्मक असर देखने को मिला। फसलों के अवशेषों को जलाकर खत्म किया जाने लगा। इसके बाद कृषि तकनीक मशीनों की ओर शिफ्ट होने लगी, जिससे पराली (धान के अवशेष) ज़्यादा मात्रा में खेत में बचने लगी।
पराली जलाए जाने के खिलाफ लड़ाई
पर्यावरण एक्टिविस्ट विक्रांत तोंगर ने सबसे पहले इस समस्या के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ी, जिसके बाद NGT (नैशनल ग्रीन ट्रिब्यून) ने 2015-16 में सरकार को आदेश दिया कि किसानों को मशीनों पर सब्सिडी दी जाए, उन्हें जागरूक किया जाये, जिससे वह पराली को जलाने की बजाए उचित निस्तारण कर सकें।
विक्रांत इस बारे में बात करते हुए बताते हैं कि पराली जलाना एन्वारमेंट प्रोटेक्शन एक्ट 1986 का उल्लघंन है। हमने इसके खिलाफ 2012 में NGT (दिल्ली) में यह मुद्दा रखा। हमारा मकसद था कि पराली जलाने पर रोक लगाई जाए। हमारी यह भी मांग थी कि इसके लिए किसानों पर दबाव नहीं डाले जाएं, बल्कि इस दिशा में उन्हें जागरूक किया जाए। हमने पंजाब, हरियाणा, यूपी, राजस्थान इन चार राज्यों को टारगेट किया था और हमारा मूल उद्देश्य दिल्ली में प्रदूषण के स्तर को कंट्रोल करना था।
अंतत: NGT ने 2015-16 में इस दिशा में अपना आदेश दिया। हालांकि इस आदेश में यह भी कहा गया कि जो किसान फसल जलाते हुए पाए जाएं उन पर फाइन लगाए जाएं।
अशोक प्रजापति का कहना है कि आज किसानों के पास खेत के क्षेत्र कम होते हैं। जो ज़मींदार शहरों में बस गए हैं, कई किसान उनके खेतों में ढेके पर काम करते हैं। इससे किसानों का मकसद अधिक-से-अधिक पैदावार करना होता है, जिससे उनकी कमाई बेहतर हो सके। ऐसे में वह जल्दबाज़ी में पराली को जलाने की प्रक्रिया सही समझते हैं, ताकि उनका ज़मीन तुरंत दूसरी फसल के लिए तैयार हो सके।
लेकिन सरकार को इस दिशा में जागरूकता अभियान चलाने के साथ ही किसानों को कई स्तरों पर मदद करने की भी ज़रूरत है। जैसे- अगर खेत को खाली छोड़ना पड़ रहा है तो उस समय के नुकसान का भुगतान करे।