Youth Ki Awaaz सम्मिट के पहले दिन आरजे जस्सी के साथ पैनल डिस्कशन में ऐसी शख्सियतें शामिल हुईं जिन्होंने महिलाओं और पर्सन विथ डिसेबिलिटी के यात्रा करने की नई परिभाषा दी है। आइए आपको रूबरू कराते हैं इनकी कहानियों से।
मालिनी गौरीशंकर
पहले मिलिए बेंगलुरु से राजधानी दिल्ली आईं मालिनी गौरीशंकर से जिन्होंने F5 Escapes की शुरुआत की है। इस महिला एंटरप्रेन्योर ने साल 2013 में एक ट्रैवल कंपनी की स्थापना की जो महिलाओं को अकेले यात्रा करने की सुविधाएं मुहैया कराती है। इन 7 सालों में इस कंपनी ने अब तक 230 से अधिक यात्राएं मुहैया कराई हैं।
आज भी भारत में महिलाओं को अकेले यात्रा करना एक विषमता मानी जाती है। उनकी निर्भरता पर सवाल उठाए जाते हैं। ऐसे में मालिनी गौरीशंकर की यह अनूठी पहल महिलाओं को स्वतंत्र रूप से घूमने के अधिकार को बल प्रदान करता है। पेशे से मालिनी खुद एक ट्रैवलर रही हैं।
Youth Ki Awaaz सम्मिट 2019 में बात करने हुए वह कहती हैं कि इस कंपनी की शुरुआत का विचार निर्भया रेप केस के बाद आया। मुझे अंदर से इस सवाल ने झकझोर कर रख दिया कि आज भी भारत में महिलाओं का यात्रा करना कितना सुरक्षित है? इसलिए मैंने ट्रैवल इंडस्ट्री को चुना।
नेहा अरोड़ा
इसी पैनल डिस्कशन में नेहा अरोड़ा ने अपनी बात रखी। इन्होंने भी ट्रैवल के क्षेत्र में शानदार काम किया है। नेहा ने ‘Planet Abeld’ नामक कंपनी की स्थापना की। उनकी यह कंपनी पर्सन विथ डिसेबिलिटी को सुविधाजनक और आरामदेह यात्राएं मुहैया कराती हैं।
नेहा ने बताया कि मैं एक ऐसे परिवार से संबंध रखती हूं, जहां मेरे माता-पिता शारीरिक तौर पर अक्षम हैं। मेरे पिता नेत्रहीन हैं और माता व्हील चेयर के सहारे चलती हैं। एक ऐसा समय आया जब मेरे माता-पिता ने बाहर यात्रा करना बंद कर दिया। तब मैंने सोचा मुझे इस दिशा में कुछ करना है।
उन्होंने कहा, “मैंने कई लोगों से बातचीत की जो बाहर यात्रा करने में बिल्कुल असमर्थ थे और इसी तरह के बुरे अनुभवों से गुज़र रहे थे। कुल 3 सालों के शोध के बाद मैंने इस कंपनी की नींव रखी फिर हमारी कंपनी विश्व की पहली ऐसी कंपनी बन गई जो एक यूनिवर्सल डिज़ाइन को फॉलो करती थी। मतलब कि हम किसी भी प्रकार के शारीरिक तौर पर अक्षम व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं करते थे। इसी तरह से हमारी ट्रैवल कंपनी विकलांगता के कारण उत्पन्न हुए बैरियर को तोड़ने में सफल रही।”
स्नेहल वानखेड़े
अब बारी थी सबसे युवा स्पीकर स्नेहल वानखेड़े की जो अकेले ही हिंदुस्तान के कई जगहों की यात्रा कर चुकी हैं। उनकी बातें उन्हें और भी खास इसलिए बनाती हैं, क्योंकि आज भी देश के औसत इलाकों में शाम के बाद लड़कियों को घर से बाहर नहीं निकलने दिया जाता है, अकेले यात्रा करना तो दूर की बात है।
आगे और यात्रा पर विस्तार से बताते हुए स्नेहल कहती हैं, “मुझे मेरे देश के बारे में जानना था। अब यह सब मैं किताब या न्यूज़पेपर के ज़रिये नहीं कर सकती थी। सोलो ट्रैवल ने मुझे आज़ाद होने का मतलब बताया है।”
एक मज़ेदार किस्सा सुनाते हुए वह आगे कहती हैं कि मुझे लद्दाख ट्रिप के दौरान एक अंकल मिले जिन्होंने मुझसे पूछा, “बेटा मैं आपकी तस्वीर ले लूं?” मैंने कहा, “हां, क्यों नहीं।” बाद में उस अंकल ने मुझे बताया कि मैं अपनी बेटी पर बहुत रोक-टोक लगाता हूं, क्योंकि मैं डरता था। आज से मैं ध्यान रखूंगा कि मेरी बेटी भी बेरोकटोक घूम सके।
पैनल के अंत में सब इन तीन बातों पर सहमत हुए-
- ऐसी स्थिति ही ना बने, जब लोग अकेली लड़की जैसे शब्दों का इस्तेमाल करें। इसके लिए ज़मीनी स्तर से हमें हमारी मानसिकता सही रखनी चाहिए।
- जिन कठिनाइयों पर पैनल में चर्चा की गई, उनसे पीछा छुड़ाकर नहीं बल्कि डटकर लड़ने की आवश्यकता है।
- यात्रा के दौरान अच्छे अनुभवों को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने की ज़रूरत है ताकि हर उस अकेली लड़की पर लोग भरोसा कर सके, जो यात्रा कर दुनिया घूमना चाहतीं हैं।