भारत में खासतौर पर जब किसी की उम्र 45-50 या उससे पार चली जाती है, तो लोग ऐसा मान लेते हैं कि अब इनका यौन संबंधों के प्रति कोई झुकाव नहीं है। अब ऐसे लोगों को तीर्थ पर निकल जाना चाहिए, ऊपर वाले का नाम लेना चाहिए।
जो व्यक्ति खुद भी इस उम्र के दौर से गुज़र रहा होता है, सबका सुन-सुन कर खुद भी यह मान लेता है मगर सच्चाई इससे बिलकुल परे है।
तो क्या है सच्चाई?
यौन संबंधों में आनंद के लिए ना तो उम्र मायने रखती है, ना जेंडर और ना ही समाज का कोई तबका। मिड ऐज में भी सेक्सुअल डिज़ायर यानि यौन इच्छा होती है और किसी संबंध में 20 साल रहने के बाद भी यौनिक हिंसा होती है। हमारे यहां अभी भी इन विषयों पर ना बोला जाता है, ना इसे बोलने लायक समझा जाता है।
कुछ सामुदायिक रेडियो इन विषयों पर खासतौर पर यौनिकता को लेकर कार्यक्रम बना रहे हैं। उनके इस सफर में यौन अधिकार और जेंडर जैसे मुद्दे पर लंबे समय से काम कर रहे तारशी और क्रिया ने साथ दिया है। साथ ही इन विषयों से जुड़े “कही-अनकही बातें” नाम से IVR आधारित ऑडियो के माध्यम से जानकारी भी देते हैं और सच्ची कहानी लोगों तक पहुंचाने के लिए सामुदायिक रेडियो इनका साथ दे रहा है।
इसी के तहत, कानपूर देहात में स्थित “वक्त की आवाज़” सामुदायिक रेडियो अपने गाँव में तीन-चार महीनों से इसी विषय पर शोध करके लोगों की राय लेकर कार्यक्रम ब्रॉडकास्ट कर रहा है। ग्रामीण स्तर पर जब आप इन विषयों को उठाते हैं तो यौनिकता, आनंद, अनुमति (कंसेंट) किसी की समझ में नहीं आती है। इन सब बातों पर समुदाय की बात लिखना आसान है लेकिन उस समुदाय की बात को रेडियो के लिए रिकॉर्ड करना उतना ही मुश्किल होता है।
कैसे इन चुनौतियों का सामना किया-
“वक्त की आवाज़” की स्टेशन प्रमुख राधा शुक्ला ने इस विषय पर बात करते हुए बताया कि निश्चित रूप से महिलाएं पति-पत्नी के रिश्ते को लेकर आपस में चर्चा करती तो हैं पर आनन्द या चरम सुख पर कभी नहीं बात करती। कोई समस्या लगती है तो ही मुंह खोलती हैं। अगर किसी महिला ने हंसी में भी बोल भी दिया कि मज़ा आता है, अच्छा लगता है, तो उसका मज़ाक बनाया जाता है कि बद्तमीज़ है, इसे शर्म नहीं है, देखो कैसी बाते करती है। इसके विपरीत, अगर उसे किसी भी तरह की दूसरी समस्या है, तो वह बताती भी है और लोग सुनकर दया दिखाते हैं।
अब समस्या है लोगों में भरोसा लाना कि ये बातें हम अपने तक ही रखेंगे और इसमें कोई शर्म, डर या झिझक नहीं है। बहुत समय लगता है उनके साथ विश्वास का रिश्ता बनाने में। लिखना, रिकॉर्ड करना, फिर उन्हें सुनाना। रिश्ते मज़बूत बनाने के लिए उनसे लगातार मिलते रहना बहुत ही ज़रूरी है, तभी हम यौनिकता से जुड़े कुछ भ्रम तोड़ पाएंगे और यौनिक अधिकार को भी बढ़ावा दे पाएंगे।
हम अपने मूल विषय पर एक बार फिर से जाते हैं। यौनिकता जो सीधे सेक्स से भी जुड़ा है, वहां आनंद (pleasure) का क्या मतलब है? आप मुझे थोड़ा बेवकूफ समझ सकते हैं कि लो भाई, सेक्स में आनंद नहीं आएगा तो कहां आएगा? मगर क्या हर बार सेक्स में आनंद आता है? क्या हर उम्र में मज़ा आता है? क्या हर के पास आनंद उठाने की वजह है?
यौनिकता में आनंद से क्या मतलब है?
इस विषय पर यौन अधिकार और जेंडर जैसे विषयों पर लंबे समय से काम कर रही गुंजन बताती हैं कि बहुत समय तक और आज भी यौनिकता को असल में आनंद के साथ जोड़ा ही नहीं गया। वैसे भी यौनिकता पर चर्चा एक छोटा या मामूली मामला समझा जाता रहा है, तो फिर उसमें आनंद की जगह कहां रहेगी?
यौनिकता की चर्चा कुछ मिली-जुली रही। सेक्स का लब्ज़ सुनते ही लोगों में एक खलबली सी मच जाती है कि यह “अपर मिडिल क्लास” की महिलाएं अब हमारी औरतें और बच्चों को सेक्स की बातें, गन्दी बातें बताने वाली हैं, इन सब बातों में रखा ही क्या है?
लेकिन इस क्षेत्र में काम करने वाले लोग कुछ देर से ही सही मगर यह समझ चुके हैं कि यदि हम किसी भी किस्म के व्यवहार में बदलाव की उम्मीद रखते हैं तो उसमें सिर्फ बीमारी, दर्द तकलीफ और घरेलु हिंसा की बात करने से, किसी के भी व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आ रहा है ना आने वाला है।
जब हम विभिन्न समूहों के साथ चर्चा करते हैं तो हर किसी के लिए सेक्सुअलिटी की क्या जगह है, क्या मतलब है, कुछ देर बाद ही सही प्यार, नज़दीकी, मज़ा, आनंद जैसे शब्द ज़रूर देखते हैं। यौनिकता केवल सेक्स नहीं और बहुत से मुद्दों का मिश्रण है और यह सिर्फ एक किस्म के लोगों पर नहीं हर किसी पर लागू होता है।
यदि कोई भी बदलाव लाना हो तो हमें पहले उस सोच पर कम करना होता है, जो कि आप सेक्स या सेक्सुअलिटी के प्रति रखते हैं। वह सोच ऐसी कैसे बनी, उस पर क्या कुछ असर हुए हैं, क्या अनुभव था, इसके अलावा और भी पहलू हैं जो कि आपकी सेक्सुअलिटी की तरफ नज़रिया बनाने में योगदान करते हैं।
यदि हम सेक्स और सेक्सुअलिटी में कभी भी कोई भी बदलाव चाहते हैं तो हमें पहले खुश और स्वस्थ रिश्तों पर चर्चा करनी होती है कि लोग सुने, लोग उसमें दिलचस्पी लें। उन्हें इस चर्चा से कुछ मिले तभी लोग थोड़े सीरियस होते हैं। सिर्फ तब ही हम सहमति, पार्टनरशिप, नज़दीकी, विश्वास, हिंसा जैसे गंभीर मुद्दों पर बात कर सकते हैं, बदलाव ला सकते हैं, आनंद की चर्चा को बिंदु बनाते हुए।
क्या सेक्स उम्र से जुड़ा मामला है?
इस सवाल पर गुंजन ने भारतीय समाज का एक परिदृश्य दिखाया है, जिससे हम और आप सब वाकिफ हैं। उनका कहना है कि कुछ मामला तो शरीर का है ही और कुछ दिल, मन और कुछ समाज का है। अब बढ़ती उम्र से हमारा क्या मतलब है? पहले यह तय करना होगा, 30, 40, 50, 60….? आप खुद ही देख सकते हैं कि हर नंबर पर आप सोचते हैं।
यार यह भी कोई उम्र है, बिलकुल हो सकता है सेक्स
गुंजन आगे बताती हैं कि असल में देखा जाए तो सेक्स करना, जवानी से जोड़ दिया गया है कि बच्चा बड़ा हो गया है, तो यह सब ख्याल आना भी गलत है। ऐसा ही बताया जा रहा है और साथ में यह भी कि जब 2 बच्चे हो जाए तो बस अब समय आ गया है सेक्स को कम करने का। भले ही आप 20-30 की उम्र में हों।
साथ ही एक बड़ा दोष परिवार में रही महिलाओं पर आता है कि महिलाएं सेक्स नहीं चाहतीं, नहीं करतीं, आना-कानी करती हैं, खासतौर पर शादी के बाद या फिर कुछ उम्र के बाद। दूसरी तरफ, बेचारा मर्द सेक्स की उम्मीद लेकर बैठा रहता है। मर्द तो मर्द है, उसे तो सेक्स चाहिए तो कहां जायेगा वो, तो अब क्या हो। आप देखिये एक पूरा दृश्य तैयार हो रहा है, कुछ दोषारोपण का, ज़बरदस्ती का, हक और सत्ता जमाने का।
उम्र का सेक्स से नहीं स्वास्थ्य से संबंध है
उम्र का इस पूरे मंच पर सिर्फ स्वास्थ से संबंधित रोल है कि आप किसी बीमारी से हैं, BP, डायबिटीज़, टेंशन या कोई हार्मोनल बदलाव, या शरीर में कोई तब्दीली। बड़ी बात उम्र की नहीं, सेक्स की ओर नज़रिए की है। रिश्ते में मज़े के साथ-साथ, एक दोस्त-यारी, नज़दीकी की है, स्वस्थ रिश्ते की है।
साथ ही यह भी कोई दो राय नहीं कि हर किसी का सेक्स की ओर नज़रिया और मान्यता अलग है। कोई एक मापदंड नहीं है। आनंद के मायने आपके लिए कुछ और दूसरे के लिए कुछ और हो सकते हैं।
जहां एक तरफ मर्दों से सुनने को मिलता है, “अब वो वाली बात नहीं रही” तो दूसरी ओर “औरत संतुष्ट नहीं हो रही”। साथ ही यह चर्चा भी ज़रूरी है कि क्या कुछ सालों बाद नज़दीकी, अपनापन सेक्स करने की जगह ले लेता है?
क्या “कभी-कभी” काफी है? कौन तय करेगा, कितना कभी-कभी? यदि पुरुष से अब “हो नहीं पा रहा” और महिला तैयार नहीं तो क्या हो? और यदि यही बात पलट जाती है, तो क्या?
ज़रूरत यह है कि सेक्स को उम्र के चश्मे से नहीं, बल्कि समाज सेक्स को कैसे कंट्रोल करता है इस चश्मे से लगाकर देखने की। यौनिकता में आनंद की कोई एक परिभाषा नहीं है, बल्कि इसके कई पहलू हैं। इसके सभी पहलू को समझना ज़रूरी है।
तारशी एनजीओ, जो यौनिकता के मुद्दों पर एक सकारात्मक एवं अधिकार आधारित नज़रिए के साथ काम करती है, का कहना है,
यौनिकता में आनंद के बारे में बात तो की जाती है लेकिन एक ऐसे विचार के रूप में जो बीमारी, दर्द और दुर्व्यवहार का ख्याल रखने के बाद ज़हन में लाया जा सकता है। यह महत्वपूर्ण है कि आनंद को सेक्स करने के एक सामान्य कारण और एक कारक के रूप में स्वीकार किया जाए, जो उनकी यौन पसंद को प्रभावित करता है और आनंद केवल सेक्स से ही संबंधित नहीं है।
यह संस्था इस बारे में आगे बताते हुए कहती है,
यौनिकता व्यापक है और इसमें कई विषय शामिल हैं, जैसे हम कैसा महसूस करते हैं, क्या पहनना पसंद है, या फिर हमें अपने यौन जीवन के बारे में क्या पसंद है। इसी तरह, आनंद का मतलब किसी ऐसे व्यक्ति के साथ शाम का आनंद लेना भी है, जिन्हें आप पसंद करते हैं, या कुछ प्रकार के कपड़े पहनने का आनंद लेते हैं। दुर्भाग्य से, आनंद के विषय का उल्लेख असहजता या शर्म की भावनाओं को उभार सकता है और चर्चा के लिए अनुपयुक्त माना जा सकता है।
यौन सुख की धारणा के लिए ये प्रतिक्रियाएं अधिक संवाद और विषय के लिए एक खुले दृष्टिकोण की आवश्यकता को इंगित करती हैं, जो आनंद के अनुभव के आसपास के अपराध और शर्म को दूर करने में मदद कर सकते हैं। खुला संवाद मौजूदा यौन वरियताओं की समझ को बढ़ावा देता है और लोगों के लिए सेक्स और यौनिकता पर चर्चा करने के लिए एक सहज वातावरण बनाता है।
क्या सिर्फ पुरुषों को ही सेक्स में आनंद आता है?
“सिर्फ पुरुषों को ही यौनिकता में और खासतौर पर सेक्स करने में आनंद आता है और वही इसके लिए पहल करते हैं”, यह कितना सही है, इसके जवाब पर तारशी का कहना है,
“जेंडर और सत्ता लोगों के आनंद अनुभव करने के तरीके को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ समुदायों और संस्कृतियों में, पुरुषों को महिलाओं से अलग आनंद और यौनिकता व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। पुरुषों के पास यौन सुख को तय करने और प्राप्त करने की सत्ता है, जबकि महिलाओं से निष्क्रिय रहने की उम्मीद की जाती है और वे यह व्यक्त नहीं कर सकती कि उन्हें क्या अच्छा लगता है।
यह इस विचार को जन्म दे सकता है कि पुरुषों के अन्दर सेक्स करने की इच्छा अधिक होती है और यह महिलाओं की तुलना में अधिक सेक्स ‘चाहते हैं’ लेकिन आनंद एक व्यक्तिगत भावना है।
यौन सुख का अनुभव करने के लिए कोई नियम नहीं हैं। हर कोई अलग तरह से आनंद का अनुभव करता है और यह उनके जीवन के विभिन्न पड़ावों पर भी भिन्न होता है। सभी लोगों की चिंताओं और अनुभवों को संबोधित करना महत्वपूर्ण है, ना कि केवल कुछ जेंडर या कुछ आयु वर्ग के लोगों को प्राथमिकता देना।
सभी व्यक्तियों को यौन सुख का अनुभव करने का अधिकार है और इसे ज़ाहिर करने का भी, उसी तरीके से जैसे वे सहज महसूस करते हैं, जब तक कि वे दूसरे के अधिकारों का उल्लंघन ना करें।
आनंद से जुड़ी बातें तय करना, सुरक्षित और अधिक आनंददायक यौन निर्णयों पर समझौते तक पहुंचने की प्रक्रिया है और यह एक यौन गतिविधि में सभी भागीदारों द्वारा किया जाना है। आनंद और सुरक्षा के लिए बातचीत करने और अपनी इच्छाओं को स्वीकार करने के लिए सहजता महत्वपूर्ण है।
ऊपर लिखे गए विशेषज्ञों के बातचीत को पढ़कर अब आप इतना तो समझ ही गए होंगे कि यौनिकता जितना अधिकार का विषय है, उतना ही आनंद का और उतना ही कंसेंट का, बराबरी का और भागीदारी का। सामुदायिक रेडियो के लिए इस कहानी को रिकॉर्ड किया गया था, व्यक्ति का नाम और परिचय गोपनीय रखा गया है,
“24 साल शादी को हो गए 2 बच्चे हैं, कुछ दिन भुलाए नहीं भूल पाते हैं। जब शादी हुई थी तब तो घर में माँ थी पर ईश्वर को शायद यह मंज़ूर ना था और शादी के महज़ 17 साल हो पाए थे कि माँ हमारे बीच से जा चुकी थीं। अब तो हम दो और हमारे दोनों बच्चे, जब माँ थीं तब तो पत्नी को भी बहाना मिल जाता था, जब भी उसका मन नहीं होता था साथ लेटने का, तो वो मेरी माँ के पास चारपाई डाल कर सो जाती थी।
मुझे लगता था अब माँ के सामने जाकर क्या कहूंगा, इसलिए हम भी नहीं जाते थे और उस ज़माने में कंडोम का कोई खास ज्ञान ना था, इसलिए उस तरफ ध्यान नहीं जाता था। उसे जब लगता था कि इस समय संबंध बनाना उचित नहीं है, वो माँ का ही सहारा लेती थी।
माँ के ना रहने पर हमारा मन हुआ और उसके लाख मना करने के बाद भी, हमने उसे थप्पड़ों से मारने के बाद संबंध बनाया। बस एक महीना बीता और मासिक धर्म ना हुआ। जब उसने हमें बताया तो हमारा तो पसीना छूट गया कि बेटे की उम्र 17 साल की है, लोग क्या सोचेंगे।
बस इसी डर के कारण हमने गाँव की एक दाई से उसका गर्भपात करवा दिया। वहां से वापस आने पर पत्नी को खून आने लगा जो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। अब तो एक ही रास्ता बचा तुरंत गाड़ी की और कानपुर ले गया, जहां पर उसका इलाज होने लगा और कुछ समय बाद महिला डॉक्टर आई और उसने मुझे अलग कमरे में बुलाया और बोली क्या तुम्हें अपनी पत्नी की ज़िन्दगी नहीं प्यारी, शर्म नहीं आई तुम्हें, जो इस तरह से गर्भपात करवा दिया। तुम्हें परिवार नियोजन के तरीके ना पता थे? अरे कुछ नहीं कर सकते हो तो कंडोम ही प्रयोग कर लेते।
मेरे पास कोई उत्तर ना था, बस सुन रहा था। फिर डॉक्टर ने कहा कि आज तो यह बच जायेगी पर भविष्य में ऐसा किया तो इसकी मौत के ज़िम्मेदार खुद होगे। बस उसी दिन से मैंने ठान लिया अब संबंध सुरक्षित ही होंगे, अब कंडोम लेने के लिए गाँव में ही आशा बहू है, जो कि मेरी रिश्ते में भाभी लगती हैं, उसने कह देता हूं और मिल जाते हैं।”