पिछले कुछ दिनों में अपने भीतर अजीब सी बेचैनी, खालीपन, गुस्से से लड़ाई चल रही है। साथ ही साथ ज़हन में डर सा बैठ गया है। व्यक्तिगत रूप से काफी बातों ने ट्रिगर भी किया। समाज किस ओर बढ़ रहा है? हम उसे कहां ले जा रहे हैं? क्या बनते जा रहे हैं? किस तरह की सोच बनती जा रही है हमारी?
फिर चाहे वह अपने विशेषाधिकार को लेकर हो या ताकत को लेकर? न्याय को लेकर या अपनी ही अज्ञानता पर? लोग धड़ल्ले से अपने विचार और ज्ञान की बरसात कर रहे हैं।
शिकार पर निकला जानवर जिस पर भूख इस हद तक हावी हो चुकी हो कि वह और कुछ सोच ही नहीं पाता। ठीक उसी प्रकार का बर्ताव हम इंसान एक-दूसरे के साथ कर रहे हैं। कुछ आप और हम जैसी वेशभूषा ओढ़े, कुछ वर्दी पहने।
हमारे युवा भी विचारधारा की जंग में ज़बरदस्त बट चुके हैं। कुछ बोलकर, कुछ रोष दिखाए, कुछ ज़ुर्म-हिफाजती में और कुछ पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए। यह आखिरी तबका वह है, जो चिंताजनक है। यदि आप ज़ुर्म के खिलाफ या न्याय के पक्ष में लड़ाई नहीं लड़ना चाहते हैं, आपको यह आवश्यक नहीं महसूस होता है, तो आपको विरोध करने की आवश्यकता नहीं है लेकिन तोते की भांति बड़बड़ाना या सच्चाई को समझने का प्रयास भी ना करना भी गलत है।
आज हमारी फील्ड टीम एकत्रित हुई। बड़ा मज़ा आया। बातें करी, खेल खेलें। वहीं, दिन के दौरान हमारे बीच कुछ कठिन बातचीत भी हुई। मर्दानगी और विशेषाधिकार पर हमने बात की। रेप, हत्या और एनकाउंटर जैसे मुद्दों पर भी अपने विचार एक दूसरे के सामने रखे।
कुछ बातचीत का रुझान तुरंत निष्कर्ष निकालने या अपनी प्रतिक्रियाओं का ऐलान करने की तरफ रहा। वहीं, दूसरी ओर कुछ ऐसे भी पल आए जहां कमरे में चुप्पी इतनी थी कि सभी सुन्न और स्तब्ध रह गए।
दोनों ही अपनी जगह ज़रूरी हैं। चाहे शब्दों से विचारों को व्यक्त करना हो या चुप्पी साधे हुए उन विचारों को खुद का हिस्सा बनाना, दोनों ही जीवन में बढ़ने के लिए अतिमहत्वपूर्ण हैं।
बोलना व अपनी बात रख पाना सभी समस्याओं का समाधान निकालने की ओर शुरुआती बिंदु है। उन बातों को सुन पाना भी मगर ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी हमारे युवा, खासकर महिलाएं ऐसे मंच और मौकों के लिए संघर्ष करते हैं, जहां वे एक-दूसरे से बोल या सुन पाएं।
पिछले दो सालों से हम ‘Varitra Foundation’ के माध्यम से ऐसे ही मंच का निर्माण करने का प्रयास कर रहे हैं। किसी दिन हम शायद ऐसा कर पाएं मगर अभी के लिए हमारा यह छोटा सा वारित्रा परिवार हमें जज़्बे से भर देता है। अभी भी कुछ नौजवान हैं, जो भटके नहीं हैं। अभी भी कुछ हैं, जिनमे नींद से जागने की हिम्मत बाकी हैं ।