लोकसभा और राज्यसभा में नागरिकता संसोधन बिल पारित होने के बाद अब यह कानून भी बन गया है। इसके विरोध में देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। इन विरोधों की वजह इस कानून में धर्म के आधार पर प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करने की बात की गई है, जो कि संविधान विशेषज्ञों के अनुसार संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।
इस कानून के प्रावधान के मुताबिक पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले मुसलमानों को भारत की नागरिकता नहीं दी जाएगी। कॉंग्रेस समेत कई पार्टियां इसी आधार पर कानून का विरोध कर रही हैं।
देश के पूर्वोत्तर राज्यों में इस कानून का विरोध किया जा रहा है और उनकी चिंता है कि पिछले कुछ दशकों में बांग्लादेश से बड़ी तादाद में आए हिन्दुओं को नागरिकता प्रदान की जा सकती है।
पूर्वोत्तर क्षेत्र के संगठनों का कहना है कि नागरिकता कानून 2019 से इस क्षेत्र के मूल निवासियों की पहचान को खतरा पैदा होगा साथ ही उनकी रोज़ी-रोटी पर संकट मंडराएगा।
मुझे इस कानून के पारित होने पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि करीब 3 साल पहले ही मुझे इस विधेयक के केन्द्र बिन्दुओं की जानकारी थी और इसके प्रति मेरा रोष उसी समय व्यक्त हो चुका था।
इस विधेयक का कानून बनना सही है या गलत
शरणार्थियों की समस्या विश्वभर में व्याप्त है। प्रवासी अपना मूल स्थान दो वजहों से छोड़ते हैं।
पहली वजह- उनके मूल स्थान पर उनको मूलभूत अधिकारों की भी प्राप्ति नहीं हो रही है और उनका उस स्थान पर ज़्यादा समय रहने का मतलब है नरक में रहना।
ऐसे शरणार्थियों में म्यांमार के रोहिंग्या, मिडिल ईस्ट, उत्तर कोरिया, कांगो, दक्षिणी सूडान व वेनेज़ुएला के नागरिक आते हैं। लड़ाई, ज़ुल्म और भुखमरी की वजह से जब लोगों की ज़िंदगी खतरे में आ जाती है, तो वे कहां जाते हैं?
ऐसे ज़्यादातर शरणार्थी अपने पड़ोसी देश में ही जाते हैं। उससे आगे जाने की इच्छा उनकी नहीं होती है। ऐसे शरणार्थियों को शरण देना मानवीय आधार पर हमारा कर्तव्य है। We should remember this that no human being is illegal.
वैश्विक स्तर पर सभी देशों को यह प्रयास करना चाहिए कि किसी भी देश के ऐसे हालात ना होने पाएं कि वहां के नागरिकों को अपना जन्म स्थान ही छोड़ना पड़े। म्यांमार के रोहिंग्या को शरण देना हमारा एक मानवीय कर्तव्य है।
दूसरा कारण: बेहतर रोज़गार या बेहतर ज़िन्दगी की तलाश में लोग प्रवास करते हैं। जैसे भारत के शिक्षित युवा अमेरिका व यूरोप की ओर व अशिक्षित युवा खाड़ी देशों की ओर प्रस्थान करते हैं।
48 देशों में रह रहे भारतीय प्रवासियों की जनसंख्या करीब 2 करोड़ है। विदेश से अपने देश में पैसे भेजने के मामले में भारतीय प्रवासी सबसे आगे हैं। साल 2018 में प्रवासी भारतीयों ने 79 अरब डॉलर भारत में भेजे हैं, विश्व बैंक ने यह जानकारी दी है।
नौकरी, उद्योग, व्यापार सहित अन्य कारणों से अपना देश छोड़कर दूसरे देशों में रहने वाले भारतवासियों की आबादी दुनिया में सबसे ज़्यादा है। अब अगर भारत के लोग ही सबसे ज़्यादा प्रवासी बने हुए हैं, तो भारत में प्रवासियों पर रोक लगाना भी बेवकूफी होगी।
- भारत में 51.54 लाख अंतरराष्ट्रीय प्रवासी हैं।
- भारत में बसे प्रवासियों में 2.07 लाख शरणार्थी भी हैं।
- यह कुल प्रवासियों का चार प्रतिशत है।
- हमारे यहां पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से सर्वाधिक शरणार्थी आए हैं।
- अब अगर इनका धर्म के आधार पर बंटवारा करें तो वह संविधान की दृष्टि से तो गलत है ही बल्कि मानवीय आधार पर भी गलत है।
गृह मंत्री से जब पूछा गया कि उन्होंने इस बिल में अफगानिस्तान, पाकिस्तान व बांग्लादेश के मुसलमानों को क्यों नहीं शामिल किया, तो उन्होंने कहा कि इन देशों के बहुसंख्यक को कोई परेशानी नहीं है। हमारी चिंता केवल इन देशों के अल्पसंख्यकों के लिए है।
Replying on The Citizenship (Amendment) Bill 2019 in Rajya Sabha. https://t.co/MnaONCMrv6
— Amit Shah (@AmitShah) December 11, 2019
उन्होंने बताया,
- 1947 में पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की संख्या 23 फीसदी थी और 2011 में यह कम होकर 3.7 फीसदी हो गई।
- 1947 से 1971 की पूरी यात्रा के दौरान पूर्वी पाकिस्तान में सिर्फ 15 फीसदी अल्पसंख्यक बचे थे, बांग्लादेश बनने के बाद भी यह संख्या घटती रही और 1991 में वहां सिर्फ 10 फीसदी अल्पसंख्यक बचे, जबकि 2011 में वहां सिर्फ 8 फीसदी अल्पसंख्यक बचे।
- भारत के अंदर 1951 में 84 फीसदी हिंदू थे और 2011 में वो घटकर 79 फीसदी हो गएं, जबकि बाकी देशों में वहां के बहुसंख्यकों की संख्या बढ़ी है।
उन्होंने भारत में मुसलमानों की संख्या को भी बताया। अमित शाह ने कहा कि
- 1951 में भारत में मुसलमानों की संख्या 9.8 फीसदी थी और आज मुसलमानों की संख्या 14.23 फीसदी है।
गृह मंत्री के यह आंकड़े 2011 की जनगणना के अनुसार बिलकुल सही थे। उनके कहने का सार यह है कि अन्य देशों के विपरित भारत में अल्पसंख्यकों की जनसंख्या बढ़ी है और बहुसंख्यक की जनसंख्या घटी है।
लेकिन उनका यह तर्क तर्कहीन है, क्योंकि अफगानिस्तान, पाकिस्तान व बांग्लादेश मुस्लिम राष्ट्र हैं, जबकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। धर्म के आधार पर शरणार्थियों का बंटवारा करना हमारे देश का इतिहास नहीं है। सरकार का यह कदम वोट बैंक की राजनीति हो सकती है।
असम में नागरिकता रजिस्टर यानी एनआरसी की फाइनल लिस्ट से जिन 19 लाख लोगों को बाहर किया गया है, उनमें करीब 12 लाख हिंदू बंगाली बताए जा रहे हैं। पहले बीजेपी नेताओं का एनआरसी को पूरी तरह खारिज़ करना और अब नागरिकता कानून 2019 को सदन से पारित करवाने के प्रयास को पार्टी के हिंदू वोट बैंक की राजनीति से ही जोड़कर देखा जा रहा है।