सिर्फ जामिया ही बचा था, अब वह भी आग के हवाले है। JNU, BHU, DU, AMU, AU की बारी पहले ही आ चुकी थी। अब देखो, बारी किसकी आए। दोष व्यवस्था और स्टूडेंट्स दोनों का है। हम ऐसी व्यवस्था नहीं दे पाए, जो स्टू़ेंट्स में विश्वास पैदा कर सके।
सिर्फ जामिया नहीं जल रहा है आज, अगर आज कोई जल रहा है, तो वह है देश की आत्मा व देश का वह भाग्य विधाता, जो देश के पुनरुत्थान में अग्रसर है।
गॉंधी के देश में हिंसा
जामिया से उठती लपटें स्तब्ध करती हैं। बात तर्कपूर्ण है कि कुलपति की अनुमति के बिना पुलिस ने विश्वविद्यालय में दस्तक कैसे दे दी। विरोध का जो रास्ता अख्तियार किया गया है, वह स्वीकार्योग्य नहीं है। गॉंधी के देश में हिंसा की कोई जगह नहीं हो सकती है, चाहे वह हिंसा स्टू़ेंट्स द्वारा फैलाई गई हो या पुलिस द्वारा। स्टूडेंट्स के फटे सिर रूह को हिलाकर रख देते हैं।
राजनीति करने वाले लोग पुनः अपने-अपने हथियारों के साथ मैदान में उतर चुके हैं और इस बार पुनः स्टूडेंट्स राजनीति का हथियार बनकर रह गए हैं। स्टूडेंट्स की चीखों व लाशों के ऊपर राजनैतिक पार्टियों की प्रेस कॉंफ्रेंस होगी, रैलियां होगी, दोषारोपण के नए हथकंडे अपनाए जाएंगे।
राज्य केंद्र को दोष देगा, तो केंद्र राज्य को और बीच में जो झूलता दिखाई देगा, वह है जामिया। हां जामिया, आपका और हमारा जामिया, वह जामिया जहां से हम इंसानियत का पैगाम पढ़कर निकलते हैं।
वह जामिया, जहां हम देश की तरक्की की नींव रखते हैं। आज से तुम भी देशद्रोही कहे जाओगे, JNU की तरह। अब तक गालियां JNU खा रहा था, अब वो गालियां तुम्हारे हिस्से भी आएंगी।
जामिया, अब तुम भी अपनी अस्मिता खो चुके हो। लोग तुमको जी भरकर गालियां देगें। तुम्हारा इतिहास कितना भी स्वर्णिम रहा हो पर लोग सब भुला देंगे।
जामिया सुन रहे हो ना तुम,
जामिया, तुम झुकना नहीं। आंदोलन का रास्ता शांतिपूर्ण रूप से अख्तियार कीजिए। जामिया तो अदब और तहज़ीब की धरा है, वहां हिंसा का क्या वजूद। तुमने तो प्यार और मोहब्बत से ना जाने कितनो को झुकाया है। जामिया तुम अब हार नहीं मान सकते। जामिया, तुम खुद को बचा लो, हम JNU, AMU खो चुके हैं, अब जामिया नहीं खोना चाहते हैं।
जामिया सुन रहे हो ना तुम, आज तुमको सुनना होगा।