कहते हैं कलम में बड़ी ताकत होती है और जब आक्रोश और दर्द से भरे शब्द मिलकर शोर मचाते हैं, तो बड़ी से बड़ी इमारतें हिल जाती हैं मगर रेप एक ऐसा मसला है जहां सबकी ज़ुबान बंद हो जाती है।
हमारे देश में रेप की घटनाओं के बाद आम लोगों के ज़हन में न्याय व्यवस्था दुरुस्त होने की उम्मीद दिखती है मगर आगे चलकर सब खोखले मालूम पड़ते हैं। निर्भया से लेकर हैदराबाद की वेटनरी डॉक्टर की घटना तक कुछ भी तो नहीं बदला।
यह कहना भी गलत नहीं होगा कि ऐसी वारदातें और बढ़ी ही हैं, क्योंकि कोई ठोस कदम ना लिए जाने की वजह से लोगों की हिम्मत बढ़ती ही जा रही है। अब शायद ऐसे कुबुद्धि वाले लोगों को अपराध करने के पहले भय भी नहीं लगता होगा।
हर बार जब भी हमारे समाज में रेप की कोई बड़ी घटना घटित हुई है, तो उसे राजनीतिक रूप ज़रूर दिया गया है। हमने अकसर ऐसी घटनाओं को राजनीतिक रूप लेने के साथ-साथ जाति का मसला बनते भी देखा है।
मौजूदा सत्ताधारी दल के खिलाफ बोलने पर भक्तों की टोली सक्रिय हो जाती है। ये वो भक्त होते हैं जो पहले से ही तय कर लेते हैं कि किस एजेंडे के तहत इन्हें काम करना है।
बहरहाल, हमें अपने बच्चों पर जल्दी घर लौटने की बंदिशें ना लादकर उन्हें बचपन से ही गुड टच और बैड टच के बारे में बताने की ज़रूरत है। आज देश का माहौल काफी बिगड़ चुका है, जहां औसत लोगों को अपनी बच्चियों को अकेले बाहर भेजने में डर लगता है।
एक बेटी की माँ होने के नाते मैं देश की तमाम माओं से यही कहना चाहूंगी कि अपनी सुरक्षा के साथ-साथ अपनी बेटियों की भी सुरक्षा खुद करिए, क्योंकि सरकार हमारे लिए कुछ नहीं कर सकती है।
एक तरफ मैं जब अपने आस-पास की औरतो को तरक्की करते हुए देखती हूं, तो फक्र महसूस होता है कि देश बदल रहा है मगर दूसरी तरफ हैदराबाद जैसी घटना सामने आने पर दिल दहल जाता है।
आरोपी को फांसी देना इतना कठिन फैसला क्यों है? क्यों सर धड़ से अलग कर देने में इतनी तारीखें लग जाती हैं? मुहे पता है कोई ना कोई भक्त आकर शायद मुझे भला-बुरा कह दे मगर मैं एक औरत हूं और मुझे डर लगता है जब मैं अकेली टैक्सी में कही जाती हूं और कैब ड्राइवर अलग रास्ता लेता है।
मुझे डर लगता है जब अचानक दरवाज़े पर कोई आकर पानी मांगता है। एक माँ होने के नाते हैदराबाद की घटना मुझे परेशान करती है। मुझे डर लगता है जब मेरी बेटी मेरी नज़रों से दो पल भी दूर होती है। इस डर में जीने की जगह मैं अपने देश से सख्त कानून की गुज़ारिश करती हूं।