कुछ दिन पहले ही जब लोकसभा चुनाव हुए थे, तब ही समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आज़म खान ने जया प्रदा पर एक बेहद आपत्तिजनक बयान दिया था। उन्होंने रामपुर में सभा को यह कहते हुए सम्बोधित किया,
रामपुर वालों, उत्तर प्रदेश वालों, हिंदुस्तान वालों उसकी असलियत समझने में आपको 17 बरस लग गए, मैं 17 दिन में पहचान गया कि इनके नीचे का जो अंडरवियर है, वह खाकी रंग का है।
इस बयान के बाद उनकी भर्त्सना हुई थी। हालांकि वे लोकसभा चुनाव रामपुर से जीत गए थे। खैर यह अलग विषय है परन्तु उनका यह बयान बेहद निंदनीय था।
सोच आज भी स्त्री के अंतर्वस्त्रों तक ही सीमित है
उस समय भी मैंने आजम खान को एक संदेश भेजा था तथा एक कैम्पेन चलाया था #SendUnderwearToAzam जो कि काफी सफल रहा। उस कैम्पेन के माध्यम से मैंने उन्हें चेताया था कि तुम्हारी सोच आज भी स्त्री के अंतर्वस्त्रों तक ही सीमित है।
उनको स्त्री की उड़ान नहीं दिखती, उनको स्त्री का वह त्याग नहीं दिखता, जो वह सीमा पर भी दिखा रही हैं। उनको इंदिरा, निर्मला, कल्पना, सिंधु, सायना, ऐश्वर्या, सुषमा स्वराज आदि नहीं दिखतीं, जिन्होंने आधुनिक भारत और विकसित भारत बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
आखिर क्यों तुम यह स्वीकार नहीं कर पा रहे हो कि नारी अब अबला नहीं रही? आखिर क्यों तुम्हें स्त्री से भय है? क्यों यह स्वीकार नहीं करते कि जिन अल्फाज़ों का तुम प्रयोग करते हो, वे अल्फाज़ तुम्हारी बहू बेटियां भी सुनकर तुमको दुत्कारती होंगी।
राहुल गाँधी भी आज़म खान के नक्श-ए-कदम पर
आज आज़म खान के पदचिन्हों पर चल रहे हैं काँग्रेसी नेता राहुल गाँधी। राहुल गाँधी ने अभी हाल ही में असम में एक रैली में कहा
असम को आरएसएस के चड्डी वाले नही चलाएंगे।
वर्ष 2017 में गुजरात दौरे के समय भी राहुल गाँधी ने ऐसा बेतुका बयान आरएसएस को लेकर दिया था, जिसमे उन्होंने कहा था,
क्या आपने कभी संघ की शाखाओं में शॉर्ट्स पहने महिलाओं को देखा है?
इस बयान को लेकर संघ विचारक मनमोहन वैद्य ने अपना मत स्पष्ट करते हुए कहा था कि राहुल गाँधी जी को जानकारी नहीं है कि महिलाओं के मध्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक संगठन राष्ट्र सेविका समिति के नाम से कार्य करता है, जो कि भारतीय संस्कृति के लिए कार्य करती हैं।
खैर मेरी समझ के परे है कि आखिर इन नेताओं का स्तर इतना क्यों गिरता जा रहा है। इनकी सोच सिर्फ अंतःवस्त्र तक ही सीमित होकर रह गई है। आखिर इनको विशेष दिलचस्पी चड्डी में ही क्यों है?
दोयम दर्जे की राजनीति
राजनीति को जिस दोयम दर्जे पर ये राजनेता ले जा रहे हैं, उससे भविष्य की राजनीति एक भयावह सुनामी की ओर जा रही है। यह वह सुनामी है, जिसमें भारत के स्वर्णिम भविष्य का स्वप्न खाक हो जाने का पूरा सामर्थ्य है।
ऐसे दोयम दर्जे के नेताओ का सिरे से नकारा जाना अत्यंत आवश्यक है। जो खुले मंचों से चड्डी जानने की दिलचस्पी रखते हैं। वे मंचो के इतर कैसा वीभत्स रूप रखते होंगे यह आंकलन आसानी से लगाया जा सकता है।
वैचारिक मतभेद का रूप यह नहीं हो सकता कि आप राजनीति का स्तर यहां तक ले आएं कि आप अंतःवस्त्र में झांकने लगे।
ऐसे लोगों का विरोध उनके परिवार से ही किया जाना चाहिए। प्रियंका गाँधी व सोनिया गाँधी जो कि उनके दल की ही सुप्रसिद्ध हस्ताक्षर ही नहीं वरन उनके परिवार की अंग भी है और एक महिला भी, उनको राहुल गाँधी के शब्दों को सिरे से खारिज करते हुए देश व समाज से माफी मांगने हेतु कहना चाहिए, अन्यथा यह समझना चाहिए कि उनकी भी मूक सहमति ही है।
युवाओं को संभालनी होगी कमान
राजनीति का भी एक स्तर व गरिमा रखते हुए उसका पालन हम सभी को करना चाहिए। उसका पालन ना करने वालों के लिए भी एक लकीर हमे ही खींचनी होगी, अन्यथा ये मानसिक तौर पर अस्वस्थ लोग अन्यत्र भी यहां गंदगी फैलाने से बाज़ नहीं आएंगे।
राजनीति को पवित्रता की ओर ले जाने की ज़िम्मेदारी अब युवा वर्ग को आगे आकर उठानी चाहिए। उनकी ज़िम्मेदारी है कि वे ऐसे दुष्ट लोगों का विकल्प बनें, जो मानसिक रूप से पूर्णतया अपंग हो चुके हैं।
इनके विरुद्ध अपनी आवाज़ बुलंद करिये। सत्यता और ईमानदारी का स्वर कभी ना कभी लोगों को सुनाई अवश्य देता है।
हे युवा कर्णधारों, भारत देश को बचाने की ज़िम्मेदारी अब तुम्हारे कंधे पर ही है, उठो और भारत निर्माण में जुट जाओ।