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ग़ज़ल

हर दिन होली और हर रात दिवाली है
जब बिहारी की महबूबा होती नेपाली है

ग़र यकीं ना आये तो इश्क़ करके देखो
फिर समझ जाओगे क्या होती कंगाली है

जिसकी खातिर लड़ता रहा वो ज़माने से
आज उसी ने कह दिया उसे तू मवाली है

जरूर इज्ज़त करता होगा वो उसकी
जो ज़लील होने के बाद भी ज़बां संभाली है

जीने की वज़ह ही बनती है मर जाने की
मोहब्बत में होती हर बात निराली है

:- आलोक कौशिक

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