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मौत

मैंने अपनी मौत लिखी,
कोरे कागज पर घेरा दिया,
अपने जिस्म पर कोड़े बरसाए,
बहाया खून आंखो से,
परत दर परत उतारी छाल अपनी
गरम लोहे का सरिया मूंह में दबाए
बोलता रहा सच ,
पर, ना ही मैं पहला हूं ना ही आखिरी
गांव के किसान की कस्सी,
शहर के मजदूर का हथौडा,
फुटफाथ के भिखारी का गुस्सा
मिलकर तराना -ए -बिस्मिल गांएगे,
फौजी का बेरोजगार बेटा,
पकोड़े बेचते इंजनियर,
सत्ता से भिड़ते छात्र
बारुद चुनेगें ।
बहुत आंएगे मुट्ठी तानें
वो लकडियां इकट्ठी करेगें,
फिर मेरे जैसा सरफिरा चिंगारी देगा,
और जलेगी चित्ता निक्कमी हकूमतों की।

—मोहित कुमार

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