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ज़िम्मेदारी के बोझ से मासूमों पर प्रहार “बाल विवाह”

आधुनिकता के साथ कदम मिलाते हुए एक तरफ देश जहां तरक्की करते हुए चांद तक जा पहुंचा है। जहां एक तरफ युवाओं को आगे लाने एवं सजग बनाने हेतु सरकार तेज़ी से कार्यरत है। वहीं समाज में फैली कुछ कुरीतियां देश के कुछ हिस्सों में बच्चों से उनका बचपन छीनने का कार्य कर रही हैं। अभी कुछ दिनों पहले ही महिला एवं बाल कल्याण मंत्री स्मृति ईरानी ने राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में बाल विवाह से जुड़े पांच वर्षों का आंकड़ा प्रस्तुत किया, जिसके अनुसार ऐसे मामलों की सर्वाधिक संख्या वर्ष 2017 में थी, जब 395 ऐसे विवाह हुए इन्ही कुरीतियों में एक बाल विवाह भी है। जिसके मुख्य कारण निम्न तबकों में शिक्षा का अभाव, समाज में फैली रूढ़िवादी सोच, अंधविश्वास तथा निम्न आर्थिक स्थिति और गरीबी है। बाल विवाह समाज में फैला एक ऐसा अभिशाप है जिसकी वजह से 18 वर्ष से कम उम्र के उन सभी बच्चों पर जो इसका शिकार होते हैं, उनके मानसिक तथा शारीरिक विकास को बुरी तरह प्रभावित करता है। बाल विकास के कारण कम उम्र में गर्भधारण से माता एवं शिशुओं में कुपोषण, शिशु- माता मृत्यु की संभावना अधिक तथा कम उम्र में पारिवारिक ज़िम्मेदारियाँ आने से मानसिक तनाव, गरीबी जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। स्वयं को संभालना सीखने की उम्र में शिशुओं और परिवार की जिम्मेदारियों के चलते शिक्षा, स्वास्थ्य, एवं बचपन तीनों ना जाने कहाँ गुम से हो जाते हैं। दुःख की बात तो यह है कि ऐसा स्वयं उन बच्चों के माँ बाप करते हैं, जिनके साथ यह बीत चुका होता है। सबकुछ जानते हुए अपने बच्चों को उसी प्रकार कष्ट देना वो अपना धर्म मानने लगते हैं। अपनी बेटियों को बोझ मान कर माँ बाप उन्हें विदा करना अपना फर्ज समझते हैं। मैंने सुना है कि कुछ जगहों पर ऐसी भी मान्यता होती है कि माहवारी के पहले कन्यादान शुभ होता है। जिस वजह से 14 वर्ष से भी कम उम्र में वे इस पुण्य को प्राप्त करने हेतु अपनी बेटी को बलि का बकरा बना देते हैं। कई जगहों पर कम उम्र की लड़कियों को उनसे 10 साल बड़े लड़कों के साथ ब्याह दिया जाता है,उसके पीछे उनका कारण भी केवल गरीबी के चलते किसी तरह बेटी विदा करना होता है। बाल विवाह केवल लड़कियों के लिए अभिशाप है ऐसा कहना गलत होगा। क्योंकि लड़के भी पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते मानसिक तनाव में आ जाते हैं। कम उम्र में ही पति और पिता बनने के बाद उनसे बालपन त्याग वयस्क बनने की उम्मीद की जाती है, जो की उन्हें अंदर से खोखला कर सकता है। जल्दी विवाह बच्चों को शिक्षा से वंचित कर रूढ़िवादिता की ऒर धकेलता है। प्रथा के नाम पर इन कुरीतियों के कारण लोग अपने ही बच्चों के जीवन से खिलवाड़ कर रहे होते हैं इस बात का उन्हें ज़रा भी आभास नहीं होता। देश को आगे बढ़ाने तथा युवाओं को सजग बनाने हेतु यह आवश्यक है कि इस प्रथा का अंत किया जाय। हालांकि वर्तमान में बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 द्वारा बाल विवाह को सख्ती से प्रतिबंधित करने का प्रयास 2007 से किया गया है। जिसके तहत 18 वर्ष की उम्र के पश्चात 2 वर्षों के भीतर यदि व्यस्क चाहे तो अपने बाल विवाह को अवैध घोषित कर सकता है। किन्तु यह कानून मुस्लिमों पर लागू नहीं होता जो की इसकी बड़ी कमी है। इसके अलावा यह कानून इस कुरीति को जड़ से मिटाने में कारगर नहीं है जिस वजह से हमें इसके लिए कुछ अन्य कदम उठाने चाहिए। बाल विवाह रोंकने हेतु अन्य उपाय जो किये जाने चाहिए:- बाल विवाह को समाज में जागरूकता फैलाकर ऐसे क्षेत्रों जहाँ यह फैला हुआ है के लोगों को इसके दुष्परिणामों से अवगत कराना, शिक्षा के प्रसार द्वारा वहां के बच्चों में कुछ करने की चाह जगाना, माता-पिता को उनके बच्चों के प्रति सजग बनाकर इसे रोका जा सकता है। इसके बाद भी ऐसा कुछ ना हो इसके लिए कानूनों को सख्त करना चाहिए। जिसमें बाल विवाह की सुचना मिलने पर दोनों पक्षों पर जुर्माना, तथा कानूनी कार्यवाही के प्रावधान होने चाहिए। इसके अलावा विवाह certificate आवश्यक करके जिसमें 18 वर्ष से पूर्व को certificate से वंचित कर तथा 18 वर्ष से पूर्व हुए विवाह को अमान्य घोषित कर लोगों में ऐसा करने के दुष्परिणामों के चलते लोगों में डर पैदा किया जा सकता है। ताकि वे स्वयं ऐसा करने से बचें।

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