जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स एक बार फिर दिल्ली की सड़कों पर अपना खून दबे-कुचले आवाम की शिक्षा के लिए बहा रहे हैं। एक बार फिर से भारतीय तानाशाही सत्ता को ललकारते हुए गीत गा रहे हैं,
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ऐ-कातिल में है।
जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी पिछले कई दशकों से हिंदुस्तान में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व मे साम्राज्यवादी सत्ताओं की अंधी श्रम और प्राकृतिक संसाधनों की लूट के खिलाफ विपक्ष की भूमिका निभाती आ रही है। इसी विपक्ष को खत्म करने के लिए विश्व की साम्राज्यवादी सत्ता व दलाल नोकरशाही JNU को मिटाने के लिए सारे साम-दाम-दंड-भेद जैसे हथकंडे अपनाए हुए हैं।
JNU पर सत्ता के चौतरफे हमले
सत्ता के चौतरफे हमले JNU पर जारी हैं। JNU को बदनाम करने के लिए हिंदुत्त्ववादी खेमे द्वारा दिन-रात झूठा प्रचार जारी है। BJP विधायक द्वारा JNU में हज़ारों कंडोम मिलने की झूठी खबर हो या JNU को देशद्रोही, आतंकवादियों का अड्डा साबित करने के लिए सोशल मीडिया से लेकर मेन स्ट्रीम मीडिया में झूठा प्रचार फैलाया जाता है।
JNU स्टूडेंट्स के खिलाफ फासीवादी संगठनों के आईटी सेल द्वारा रोज़ाना झूठे वीडियो जारी किए जाते हैं। JNU स्टूडेंट्स के अंदर डर बैठाने के लिए नज़ीब को इसी नज़रिये से फासीवादी खेमें ने गायब कर दिया, जिसे तलाशने में प्रशासन अब तक फेल है। JNU स्टूडेंट्स पर झूठे मुकदमे भी सत्ता द्वारा प्रायोजित थे।
JNU अपने आप में एक अदभुत जगह है। इस कैंपस में सभी विचारधाराएं मानने वाले स्टूडेंट्स आपको मिल जाएंगे। उन सभी स्टूडेंट्स को अपनी बात कहने का पूरा अधिकार ईमानदारी से यह कैंपस उपलब्ध करवाता है। यदि सबको समानता का अधिकार कहीं देखने को मिलता है, तो वो जगह सिर्फ JNU ही है।
भारत की लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों में यहां के स्टूडेंट्स प्रमुख भूमिका निभाते मिल जाएंगे। इसके साथ ही नौकरशाही में देश-विदेश में JNU के स्टूडेंट्स बेहद खास भूमिका निभा रहे हैं।
JNU ही है जिसमें एक गरीब मज़दूर-किसान, आदिवासी, दलित और मुस्लिम का बच्चा पढ़ सकता है, वह भी किसी जातीय या धार्मिक भेदभाव को झेले बिना। JNU ही है जो शिक्षा के साथ-साथ स्टूडेंट्स को जनतांत्रिक और मानवीय मुद्दों पर परिपक्व बनाती है। यहां का छात्रसंघ चुनाव जितना जनतांत्रिक तरीके से होता है, वैसा देश के किसी भी यूनिवर्सिटी में नहीं होता है।
महिला, दलित, आदिवासी, पहाड़ी, पूर्वोत्तर, समलैंगिक, गे और थर्ड जेंडर सबको एक इंसान की तरह देखने व उनके साथ इंसान जैसा व्यवहार करने के कारण ही समाज के हाशिये पर खड़े आवाम के लिए JNU जन्नत है। इसके विपरीत JNU आमानवीय फासीवादी ताकतों की आंख की किरकिरी बनी हुई है।
इसलिए भारत की वर्तमान फासीवादी सत्ता हो या इससे पहले की काँग्रेसी सत्ता, हर किसी की चाहत यही रही है कि किसी तरह से जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी को खत्म किया जाए। क्यों लंबे समय से JNU के खिलाफ एक सुनियोजित झूठा प्रचार किया जा रहा है?
इसको जानने के लिए JNU व उसकी क्रांतिकारी विरासत को जानना ज़रूरी है, जिसका आधार ही अन्याय के खिलाफ और न्याय के लिए एक लोक युद्ध है।
मुखरता का परिचायक है JNU
देश के अंदर हज़ारो सालों से अन्याय के खिलाफ मेहनतकश आवाम मज़बूती से संघर्ष करता आ रहा है। इस संघर्ष को अलग-अलग समय पर अलग-अलग प्रगतिशील शिक्षण संस्थानों के अध्यापक और छात्र सही दिशा देते रहे हैं।
इन शिक्षण संस्थानों के स्टूडेंट्स ने मेहनतकश आवाम के संघर्षों को नेतृत्व प्रदान किया है। आज़ादी के आंदोलन में लाहौर का नैशनल कॉलेज जिसके छात्र-अध्यापक आज़ादी की लड़ाई को एक नई दिशा और नेतृत्व दे रहे थे। इस कॉलेज के माहौल में ही भगत सिंह, सुखदेव व उनके साथी क्रांतिकारी बने। जिन्होंने भारत की आज़ादी ही नहीं, बल्कि विश्व के मेहनतकश आवाम की आज़ादी का नक्शा पेश किया।
ऐसे ही जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी जिसने आज़ादी के बाद विश्व की साम्राज्यवादी ताकतों व उनकी दलाल भारतीय नौकरशाही और भारतीय सत्ता के खिलाफ हर मौके पर आवाज़ बुलंद की है।
देश की सत्ता ने जब भी किसानों पर अत्याचार किया है, किसानों के पक्ष में JNU से आवाज़ आई है। देश की सत्ता ने जब भी मज़दूरों पर गोलियां चलवाई, JNU से विरोध की लहर उठी। सामन्तो ने जब भी जातीय आधार पर दलितों को मारा चाहे वो बिहार हो, उतर प्रदेश, मध्यप्रदेश, हिमाचल या हरियाणा। दलितों के पक्ष में भी JNU हमेशा खड़ा मिला।
फासीवाद के खिलाफ आवाज़ उठाने की ज़रूरत है
आज सत्ता में विराजमान फासीवादी पार्टी BJP जिसका आधार ही साम्प्रदायिक राजनीति है, उसने अलग-अलग समय पर जातीय व धार्मिक दंगे करवाए हैं। मुम्बई, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और गुजरात जहां अल्पसंख्यकों का कत्लेआम किया गया। इस कत्लेआम के खिलाफ बोलने वाली ताकत अगर कोई थी तो JNU. बलात्कार के खिलाफ व महिला सुरक्षा के लिए लड़ने वाले स्टूडेंट्स भी JNU से ही हैं।
हमने जब छात्र राजनीति में ABCD सीखने के लिए कदम रखा था, तब देश और विश्व की प्रत्येक घटनाओं पर प्रगतिशील आंदोलन का क्या स्टैंड रहे, इसके लिए देश का प्रगतिशील आंदोलन दो संस्थानों की तरफ आशा भरी निगाहों से देखता था। पहला JNU और दूसरा हिंदी समाचार पत्र जनसत्ता। इन दोनों की दिशा से देश का प्रगतिशील आंदोलन सही और गलत को परख कर अपनी दिशा तय कर लेता था।
2014 में देश के अंदर लोकतंत्र के रास्ते फासीवादी विचारधारा देश की सत्ता पर काबिज़ हो गई। उनके सत्ता में बैठते ही भारत का क्रांतिकारी समाचार पत्र जनसत्ता फासीवादी सत्ता के सामने नतमस्तक हो गया लेकिन JNU ने पहले से भी ज़्यादा उत्साह के साथ फासीवादी सत्ता के खिलाफ आवाज़ को बुलंद किया।
फासीवादी पार्टी के सत्ता में बैठते ही उसके संगठनों ने गाय-गोबर के नाम पर जैसे ही मुस्लिमों को मारने का अभियान चलाया, वैसे ही JNU ने विरोध में हुंकार भरी। प्रगतिशील लेखकों, कलाकारों, नाटककारों, फिल्मकारों और पत्रकारों पर जब हमले हुए, तब भी उनके साथ मज़बूती से JNU के हज़ारों स्टूडेंट्स खड़े रहकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए लड़ते रहे।
सत्ता ने जब-जब फासीवादी एजेंडे व जन-विरोधी नीतियों को लागू करने के लिए कदम बढ़ाए, तब-तब JNU ने मज़बूती से उनका विरोध किया। सता द्वारा आरक्षण को खत्म करने, निजीकरण करने, जल-जंगल-ज़मीन को कॉरपोरेट के हवाले करने के खिलाफ अगर कोई मज़बूती से खड़ा है, तो सिर्फ JNU ओर उसके स्टूडेंट्स ही हैं।
लोकतंत्र का गला घोंटकर जम्मू-कश्मीर के जनतांत्रिक अधिकारों को छिना गया तो JNU ने कश्मीरी आवाम के साथ खड़े होकर यह संदेश दिया कि देश के किसी हिस्से के जनतांत्रिक अधिकार छीने जाएंगे तो हम इसका विरोध करेंगे।
आज देश के मेहनतकश आवाम को भी अपने जनतांत्रिक अधिकारों और भविष्य को बचाए रखने के लिए JNU और JNU के स्टूडेंट्स के पक्ष में मज़बूती से आवाज़ बुलंद करने की ज़रूरत है।
जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी की आवो-हवा जिसमें क्रांति और विद्रोह की चिंगारियां तैर रही हैं। इसे जितना दबाने की कोशिश की जाएगी, यह उतने जोश से उठेगी। खुद भी उठेगी और पीड़ित आवाम को भी उठाएगी।
तू कर संग्राम ऐ साथी, घड़ी संकट की आई है। ना फौजों की ना सरहद की, यह जीने की लड़ाई है।