एक समय था, जब पूरे परिवार को वीकेंड का इंतज़ार रहता था। हां, इंतज़ार इसलिए क्योंकि स्कूलवालों की स्कूल से छुट्टी होती थी और जॉब वालों को ऑफिस से राहत मिलती थी। यही वह वीकेंड यानि रविवार हुआ करता था, जब पूरा परिवार एक साथ फिल्म देखने जाते था। परिवार के सभी सदस्य उस हफ्ते रिलीज़ हुई फिल्मों में से अपनी पसंद की फिल्म बताते थे और जिस पर सहमति बन जाती थी, उसे पूरा परिवार एक साथ थिएटर में देखा करता था।
तब फिल्मों में ऐसी मारोमार नहीं हुआ करती थी। हर हफ्ते एक या दो फिल्म ही रिलीज़ हुआ करती थी। उस वक्त हम ग्लोबलाइजे़शन और टेक्नोलॉजी पर हम इतने फिदा नहीं थे। इसलिए हॉलीवुड फिल्मों के व्यूवर्स काफी कम हुआ करते थे।
थिएटर यानी उस समय का सिनेमा हॉल जो एक शहर में बस एक या कहीं-कहीं दो हुआ करते थे, उनमें फिल्म अच्छी लगी हो या ना हो लेकिन परिवार के साथ अच्छी ही लगती थी।
अब फिल्मी माहौल काफी बदल गया है। एक तो फिल्में देखना काफी महंगा हो गया है। कारण है,
- सिनेमा हॉल्स का मल्टीप्लेक्स में तब्दील होना।
- अब हमें सिर्फ फिल्में नहीं देखनी, डॉल्बी साउंड भी चाहिए, आरामदायक कुर्सियां भी चाहिए, 3डी इफेक्ट के चश्में भी चाहिए।
ऐसे में सामान्य सेलरी कमाने वाले एक आम आदमी के लिए हर हफ्ते फिल्म देखना और परिवार को पॉपकॉर्न खिलाना दूर की कौड़ी बन गया है।
वेब सीरीज़ का चलन
ट्रेंड बदला है और वक्त के साथ भारतीय सिनेमा भी। भारतीय सिनेमा में जबसे ज्यादा बदलाव हुआ है इसके डिजीटल होने में। तकनीक के इस दौर में लोगों को थिएटर के अलावा भी फिल्में देखने का विकल्प मिला है। पिछले कुछ सालों से वेब सीरीज़ का चलन शुरू हुआ है।
- वेब सीरीज स्क्रिप्टेड वीडियोज़ की सीरीज़ हैं जो अलग-अलग विषयों पर आधारित होती हैं।
- ये एक एपिसोड का भी हो सकता है।
- ये बस इंटरनेट या वेब प्लेटफॉर्म पर ही प्रसारित होते हैं।
- इसे थिएटर में रिलीज़ नहीं किया जाता।
- ये लैपटॉप, पीसी, मोबाइल आदि पर इन्टरनेट के माध्यम से देखे जा सकते हैं
वेबसीरीज़ का चलन इतना बढ़ गया है कि कहीं ना कहीं इसका कई हद तक असर ना सिर्फ फिल्मों पर बल्कि टीवी शोज़ पर भी दिखने लगा है। मानों फिल्मों के टेस्ट क्रिकेट के दौर में ट्वेंटी-ट्वेंटी क्रिकेट के रूप में वेबसीरिज का जन्म हुआ है।
ऐसे में सात-आठ घंटे की वेबसीरिज़ को एक ही बार में देख लेने वाले फिल्मी दिवानों को थिएटर में फिल्मों के रिलीज़ का इंतजार करना बोरिंग लगने लगा है।
वेब सीरीज़ की ज़रूरत क्यों पड़ी?
तो बात यह है कि इसकी सब से बड़ी ताकत है बोल्ड कॉन्टेंट। इस पर सेंसर बोर्ड का कोई लोचा नहीं। ऐसे में सीन्स पर कोई कांट-छांट नहीं होती। डायरेक्टर को पूरी फ्रीडम होती है कि वह सीन को वैसा ही दिखा सकता है जैसा दिखाना चाहे।
दरअसल, बॉलीवुड के इस रीमेक और सीक्वल्स के दौर में वेब सीरीज़ इंडियन ऑडियंस की उम्मीद की तरह बनकर उभरी है। विश्व में पहली वेब सीरीज़ ‘दी क्वॉटम लिंक’ सीरियल को माना जाता है। इसके बाद ‘दी स्पॉट’ वेब सीरीज़ 1995 में आया।
भारत में वेब सीरीज़ का इतिहास काफी पुराना नहीं है। करीब 8-10 साल पहले ही वेब सीरीज़ की शुरुआत मानी जा सकती है लेकिन कहा जा सकता है कि 2014 से वेब सीरीज़ ट्रेंड में आना शुरू हुआ और दर्शकों का प्यार मिलना शुरू हुआ।
2014 में रिलीज़ हुई वेब सीरीज़ परमानेंट रूममेट्स को दर्शकों ने काफी पसंद किया। वहीं इसके बाद बेक्ड, टीवीएफ पिक्चर्स, मैन्स वर्ल्ड, बैंग बाजा बारात, आएशा, चाइनीज भसड़, टीवीएफ बैचेलर्स, टीवीएफ ट्रिपलिंग, ऑफिशियल चुकियागिरी, सेक्रेड गेम्स, मिर्जापुर और हॉस्टेज जैसी वेब सीरीज़ को लोगों ने खूब सराहा।
वेब सीरीज क्यों हो रही है लोकप्रिय?
हटकर कटेंट। आम भारतीय फिल्मों में तो इन दिनों बस रीमेक या फिल्मों के सीक्वल पर ही ज़ोर दिया जा रहा है। ओरिज़नल कॉन्टेंट तो बेहद कम ही परोसा जा रहा है। ऐसे में वेबसीरिज के नाम पर कुछ अलग कॉन्टेंट पेश करने से भारतीय दर्शक इनकी ओर आकर्षित हुए हैं।
- इनमें एक कहानी को 4-8 ऐपिसोड में दिखाया जाता है और ये ऐपिसोड भी 15 से 45 मिनट के होते हैं, जिसकी वजह से उबाऊ भी नहीं लगते।
- एक और कारण है इसमें ना के बराबर ऐड होते हैं, जिन्हें फौरवर्ड या स्किप करना आसान होता है।
- इसके अलावा आप इन्हें ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों प्रकार से देख सकते हैं।
वेब सीरीज़ को सफल बनाने में एप्स का योगदान
वेब सीरीज़ की शुरुआत यू-ट्यूब से मानी जाती है। दरअसल, शुरू में जितनी भी वेब सीरीज़ बनीं उन्हें यू-ट्यूब के माध्यम से ही दर्शकों को परोसा गया। धीरे- धीरे ट्रेंड चेंज हुआ और फिर सभी अपने स्पेशल एप्स ले आए। ऐसे में अब ऐप्स की मदद से वेब सीरीज़ धूम मचा रही हैं।
वेब सीरीज को बढ़ाने में अमेजन, नेटफ्लिक्स, जी 5, इरोज, टीवीएफ, ऑल्ट बालाजी जैसे एप्स का काफी बड़ा हाथ है। इनकी ओर से ऐसी कई वेब सीरीज़ आई हैं जिन्होंने धूम मचा दी। पहले जहां ये ऐप्स अपनी सुविधाएं मुफ्त में दे रहे थे, तो अब इसके लिए सब्सक्रिप्शन लिया जा रहा है।
अब असली बात, दिक्कत कहां है?
तो जैसा मैंने पहले बताया, वेबसीरीज़ ने भारतीय सिनेमा को बदलकर रख दिया है लेकिन इसके कारण लोगों की पसंद और सोच भी बदलती जा रही है। 90 के दशक और इससे पहले थिएटर पर लगने वाली फिल्मों की तरह, पूरा परिवार एक साथ बैठकर वेबसीरीज़ नहीं देख सकता। इसका बोल्ड और फूहड़ कॉन्टेंट इसका कारण है।
सिनेमा को समाज का आइना कहा जाता है। मतलब लोग जो भी देखेंगे, उसका असर उनपर पड़ना लाज़मी ही है। वेबसीरीज़ में सेक्स, गालियां, खूनखराबा आदि विषयों पर ज़्यादा नहीं बल्कि पूरा फोकस किया जाता है। अल्ट बालाजी, उल्लू एप आदि तो अपनी कहानी में सेक्स नहीं डालती बल्कि सेक्स में कहानी डालती है।
इसके अलावा कुछ वेबसीरीज़ में महिलाओं पर आपत्तिजनक गालियों के लिए यहां बीप भी नहीं किया जाता है, ये गालियां खुलकर दी जाती हैं। ऐसे में युवाओं पर इसका असर भी दिख रहा है। सेक्रेड गेम्स और मिर्जापुर की तर्ज पर युवा गुड्डू भैया और गणेश गायतोंडे के डायलॉग आम बोलते देखे गए। ऐसे में कहीं ना कहीं वेबसीरीज़ पारिवारिक परिवेश को बिगाड़ने का कारण बन सकती है।