अभी हाल ही में महाराष्ट्र के एक किसान का वीडियो वायरल हुआ जिसमें वह अपना दर्द बयां कर रहे थे। वह बता रहे थे कि बाज़ार में जो प्याज़ 90 रुपये से ज़्यादा प्रति किलो के दर से मिलता है, उन्हें उसके लिए केवल 8 रुपये प्रति किलो के भाव से पैसे मिलते हैं।
अधिकतर किसान ऐसी फसलें उगाते हैं, जिनके ज़रिये उन्हें उनकी लागत से ज़्यादा फायदा मिल जाए। इनमें ज़्यादातर गन्ना, आलू, प्याज़ और टमाटर की फसलें शामिल हैं। मेरा जन्म एक किसान परिवार में हुआ है, जहां मैंने देखा कि एक किसान कितनी मेहनत से खेती करता है ताकि उसे बाज़ार में अनाज की अच्छी कीमत मिल सके। मेरे यहां ज़्यादातर आलू, टमाटर और प्याज़ की खेती होती है।
दादा जी का कहना है कि यह वर्ष भर बिकने वाली फसल है जिसका घर की रसोई में बहुत महत्व है। बिना प्याज़ के खाने में स्वाद भी नहीं आता और आज तो हर व्यंजन में प्याज़ का महत्व है।
हर साल दादा जी खेत में लगभग 3 क्विटंल तक प्याज़ उगाते हैं मगर इस बीच कुछ बिचौलिए उनसे बातचीत करके खेत से ही कम भाव में प्याज़ खरीद लेते हैं। अक्सर ये लोग मार्केट के भाव से कम पैसे देकर अधिक अनाज खरीद लेते हैं, जिससे मेरे परिवार में कई तरह की समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।
ग्रामीण स्तर पर फसल बेचने में होती है राजनीति
अक्सर मार्केट में मैंने फसलों का दाम अलग-अलग देखा है। लोगों से पता करने पर जानकारी मिली कि किसान को अपनी फसल बेचने के लिए बाज़ार के किसी ऐसे व्यक्ति से संपर्क करनी होती है, जो फसल को बेचने की पूरी ज़िम्मेदारी ले। अगर किसान उस आदमी को पैसा नहीं देगा तो किसान को अपना सामान बेचने के लिए जगह नहीं दी जाएगी।
यदि किसान को जगह नहीं मिलेगी तो उनकी फसल बेकार हो जाएगी। आज मंडी में सब्ज़ियों के भाव और दुकानों में खुदरा सब्ज़ी विक्रेताओं की सब्ज़ियों के भाव आसमान छू रहे हैं। प्याज़ का दाम 90 रुपए किलो है और खुदरा कारोबारी 100 रुपए किलो बेच रहे हैं। आखिर इतना अंतर क्यों? आज ग्राहक तय ही नहीं कर पा रहे हैं कि प्याज़ खरीदे या ना खरीदे।
दादा जी बताते हैं कि प्याज़ हम इसलिए थोक में बेचते हैं, क्योंकि हमें बाज़ार की प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं करना पड़ता है।
यहां कुछ पैसे कम ही मिलते हैं मगर अंतत: सामान बिक ही जाता है। उनकी अक्सर सोच यह रहती है कि अब ये लोग मार्केट में चाहे जो दाम में बेचें इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है।
ऐसा इसलिए क्योंकि जो लोग थोक दाम में सामान खरीदते हैं, वे किसानों को पूरा पैसा देते हैं जिससे किसान परिवार का खर्च किसी तरह से चल जाता है। थोक दाम में किसानों को जो पैसे मिलते हैं, उसे किसान बेटी की शादी और बच्चों की शिक्षा में खर्च करते हैं।
खेत में दिन-रात मेहनत करके दादा जी ने दी बेटियों की शादी
मेरे दादा जी ने अपनी 5 बेटियों की शादी खेत में दिन-रात मेहनत करके की है। रातों में खेत में फसल को नील गायों से बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर वह अपने परिवार का पालन-पोषण कर पाए। कभी-कभी खेत में रात में उनको जंगली डाकूओं का भी सामना करना पड़ा, जो फसलों को जबरन लेकर चले जाते थे या तो कभी जानवर ही फसल खा जाते थे। इस नुकसान की वजह से हम लोगों की पढ़ाई भी प्रभावित होती थी। यहां तक कि बुआ लोगों ने स्कूल जाना ही छोड़ दिया।
आज हम लोगों के समय में भी पिताजी का संघर्ष जारी है। वह दिन-रात मेहनत करते हैं ताकि हमें बेहतर जीवन मिल सके मगर कम भाव में फसलों के बिकने के कारण हमें संघर्ष करना पड़ता है। परिवार का खर्च दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है। कृषि पर हम पूरी तरह से निर्भर हैं जिस कारण पढ़ाई के साथ-साथ शादियों में भी रुकावटें आ रही हैं।
मैंने खुद देखा है कि पैसे ना होने के कारण किसानों को लोगों की हज़ार बातें सुननी पड़ती हैं। शादी तभी होगी जब फसल का सही दाम मिलेगा। बच्चों की पढ़ाई तभी हो पाएगी जब खेतों में टाइम से फसल होगी और किसान को सही दाम मिलेंगे।
आज मेरा पूरा परिवार कृषि पर निर्भर है मगर बाज़ार जिस तरीके से हम किसानों के फसल का दर तय करता है, वह निराशानजक है।
हमारा पूरा जीवन आज भी खेती पर ही निर्भर है। हमारी परेशानियां और भी जटिल तब हो जाती हैं, जब हमें फसल का सही दाम नहीं मिलता है। गाँव में ज़्यादातर संयुक्त परिवार ही देखने को मिलते हैं, जहां के लोग मिलकर फसल उगाते हैं। वे फसल को बाज़ार में ना बेचकर थोक मूल्य में बेच देते हैं।
आज स्टूडेंट्स प्याज़ की जगह अंडे खरीद रहे हैं
आज हर कोई महंगाई से परेशान है। इस समय जो प्याज़ का दर है, कहीं ना कहीं लोग सोच-समझकर इसे खरीद रहे हैं। किसान सही दाम पर अनाज बेचने के लिए परेशान हैं, तो वहीं बाज़ार में मौजूद दलाल उन्हें फसल का सही दाम नहीं दे रहे हैं।
मैं किसान परिवार से हूं और मुझे पता है कि चाहे प्याज़ हो, टमाटर हो या आलू, कई दफा ये रख रखाव के कारण भी खराब हो जाते हैं। हमने देखा है कि किसान को सही कीमत नहीं मिलने पर वे फसलों को यूं ही रखे रहते हैं।
किसान अच्छे दिन के इंतज़ार में अपनी फसल रखते हैं कि जब मार्केट में फसल का दाम सही मिलेगा, तब उन्हें बेचा जाएगा मगर तब तक सब बेकार हो जाता है। ना तो उन्हें फसल का सही दाम मिलता है और ना ही बाज़ार की स्थिति कभी ठीक होती है। मैंने देखा है महंगाई के कारण किसानों के बच्चों को पढ़ाई छोड़कर गाँव वापस आना पड़ता है।
प्याज़ का रेट इतना अधिक है कि बजट का ज़्यादातर पैसा इसी में चला जाता है। हर कोई सवाल कर रहा है कि आखिर प्याज़ इतना महंगा क्यों है?
आज स्टूडेंट्स प्याज़ की जगह अंडे खरीदकर ले जा रहे हैं ताकि सब्ज़ी के बदले वे ऑमलेट बनाकर खा पाएं। आखिर इस महंगाई की वजह क्या है? मैंने अभी तक जो देखा और महसूस किया है, वो यह कि यह सब सामान का भाव तय करने वालों की चाल है।
किसानों को फसल का सही भाव मिले और इस प्रक्रिया में कोई दलाल बीच में ना आए, इसके लिए सरकार को कड़े कदम उठाने होंगे। फसल की बर्बादी ना हो इसके लिए उचित रख रखाव की व्यवस्था हो ताकि मंडी में उनका उपयोग हो पाए। देश के किसान इतनी मेहनत अपने परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि देश के लिए भी करते हैं इसलिए यह हमारा फर्ज़ है कि हम उन्हें फसलों का उचित दाम मुहैया कराएं।