राजस्थान के सीकर में एक गाँव ऐसा भी है, जहां कोई अपनी लड़की की शादी नहीं करना चाहता। इस गांव के लड़कों की उम्र बढ़ती जा रही है और माता-पिता इस चिंता में डूबे हैं कि कैसे भी उनके बेटों की शादी हो जाए। इस गाँव का नाम है कीरो की ढाणी।
शादी क्यों नहीं हो पा रही है, इसकी वजह जानकार आप और चौंक जाएंगे। वजह है पानी की किल्लत। पानी की किल्लत झेल रहे इस गाँव में लड़कियां खुद शादी करने के लिए तैयार नहीं हैं।
इस गाँव में पानी का सिर्फ एक स्रोत है और वह एक सरकारी स्कूल में बना ट्यूबवेल है। गाँव में 50 से अधिक परिवार इसी ट्यूबवेल के पानी पर निर्भर है।
यह हाल राजस्थान के सिर्फ एक गाँव का नहीं
यह राजस्थान के किसी एक गांव की नहीं, बल्कि हर ज़िले में ऐसे सैकड़ों गाँव हैं जहां इसी तरह के हालत हैं। क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य है। यहां देश का 10.45 प्रतिशत भू-भाग है जबकि भूजल की उपलब्धता केवल 1.75 प्रतिशत है।
राज्य सरकार के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार राज्य के 33 ज़िलों को भूजल के हिसाब से कुल 295 ब्लॉक में बांटा गया है। जिनमें से 184 ब्लॉक अतिदोहित श्रेणी में आ गए हैं। अतिदोहित का मतलब उन इलाकों से हैं जहां अगर पानी के संरक्षण या उसके स्रोत को बनाने और बचाने के उपाय नहीं किए गए तो भूजल कभी भी खत्म हो सकता है। राज्य सरकार खुद हालात से चिंतित है।
राजस्थान में हमेशा से ही बहुत कम वर्षा होती है और अब हालात यह हैं कि राजस्थान भयंकर जल संकट की ओर जा रहा है। अगर समस्या की बात की जाए तो राजस्थान में पानी की कमी ही समस्या नहीं है। पाना से जुड़े अन्य इंटरसेक्शंस भी है जो समस्याओं का कारण बने हुए हैं।
दरअसल, राजस्थान में जहां पानी है वह भी पीने लायक नहीं है। गाँव से लेकर शहरों तक फ्लोराइड की मात्रा इतनी ज़्यादा है कि उस पानी को पीना तो दूर की बात और दूसरे काम में भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
राजस्थान में पानी के साथ फ्लोरोसिस
एक तरफ पूरा राजस्थान बूंद-बूंद को तरस रहा है, तो दूसरी ओर फ्लोराइड युक्त पानी लोगों की मुश्किलें और बढ़ा रहा है। जैसे-तैसे लोगों के घरो तक पानी तो पहुंच रहा है लेकिन उसमें फ्लोराइड की मात्रा इतनी ज़्यादा है कि उस पानी का पीने के लिए इस्तेमाल ही नहीं किया जा सकता। केवल गाँव में ही नहीं बल्कि शहरों में भी फ्लोराइड युक्त पानी की सप्लाई की जा रही है।
ब्यूरो ऑफ इण्डियन स्टैंडर्ड (बीआईएस) और इण्डियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्स (आईसीएमआर) के मुताबिक, पानी में फ्लोराइड की मात्रा 1.0 पीपीएम (पार्ट पर मिलियन) से ज़्यादा हो तो वह पीने लायक नहीं रहता है।
इन मानकों के आधार पर राज्य के 33 जिलों में एक भी ऐसा ज़िला नहीं है जहां का पानी पीने लायक हो।
- राज्य में सबसे कम फ्लोराइड वाला पानी झालावाड़ में है। जो कि 1.5 पीपीएम है, जबकि ऊपर बताया गया पेयजल मानक कहता है कि पानी में फ्लोराइड की मात्रा 1.0 पीपीएम होनी चाहिए।
- वहीं सबसे ज़्यादा फ्लोराइड वाला पानी नागौर में है जो कि 99 पीपीएम है।
- इसके अलावा राजस्थान के जोधपुर, नागौर, जैसलमेर, बाडमेर, और भीलवाड़ा में भूजल में सबसे अधिक फ्लोराइड युक्त पानी पाया गया है।
फ्लोराइड की वजह से प्रदेश में फ्लोरोसिस के मामले सामने आ रहे हैं। यहां तक कि जानवर भी इसके शिकार हो रहे हैं। इससे जहां युवाओं में हड्डियों से जुड़ी परेशानियां हो रही हैं, वहीं नवजात बच्चों में स्किन की समस्या आ रही है
फ्लोरोसिस बीमारी की चपेट में आने के बाद युवा भी बुर्जु़ग सा दिखने लगता हैं और शरीर में ताकत कम हो जाती है। इस बीमारी के प्रभाव आपके पूरे शरीर में दिखते हैं जो कि स्वास्थ की दृष्टि से बहुत बड़ी समस्या है।
खारे भूजल की समस्या
राजस्थान में खारे भूजल की समस्या भी विकट है और लगभग 12 हज़ार 800 क्षेत्रों को भूजल में सबसे अधिक खारेपन के लिये चिह्नित किया गया है, जो देश में कुल खारेपन की समस्या से जूझ रहे क्षेत्रों का 89.40 प्रतिशत है।
राजस्थान में मरुस्थलीय भूभाग होने से जल का संकट है। फिर लगातार प्रदेश की आबादी बढ़ रही है और औद्योगिक विकास भी तेजी से हो रहा है। यहाँ के शहरों में बड़ी बड़ी औद्योगिक इकाईयों में भूगर्भीय जल का दोहन बड़ी मात्रा में हो रहा है। खनिज संपदा तथा संगमरमर, ग्रेनाईट, इमारती पत्थर, चूना पत्थर आदि के खनन से धरती का जल स्तर गिरता जा रहा है।
दूसरी ओर वर्षाकाल में सारा पानी बाढ़ के रूप में बह जाता है शहरों में कंक्रीट डामर आदि के निर्माण कार्यो से वर्षा का जल जमीन के अंदर नही जा पाता है। इस कारण पातालतोड़ कुँए भी सूख गये है। पुराने कुँए बावड़ी आदि की अनदेखी करने से भी जल स्त्रोत सूख गये है।
राजस्थान में बढ़ते हुए जल संकट के लिए निम्न उपाय किये जा सकते हैं,
- भूमि के अंदर के जल के बहुत ज़्यादा इस्तेमाल पर रोक लगे।
- शहरों में वर्षा जल के जल को ज़मीन में डालने की व्यवस्था की जाए।
- बांधो का निर्माण हो
- कुओं एवं बावड़ियों को अधिक गहरा किया जाए एवं
- कच्चे तालाबों पोखरों को अधिक गहरा और चौड़ा बनाया जाए।
- पंजाब हरियाणा और गुजरात में बहने वाली नदियों का पानी राजस्थान में लाने का प्रयास किया जाए।
नीति निर्माताओं के स्तर पर जब तक कोशिशें की नहीं जाएंगी तब तक जल संकट की समस्या से निदान नहीं मिल पाएगा। जिस तरह से राजस्थान जल संकट से जूझ रहा है उस हिसाब से, कीरो की ढाणी की तरह अन्य गाँव भी बहू ना ला पाने के लिए जाने जाएंगे।