कौशांबी ज़िले में स्थित कपसासा गाँव, जो कौशांबी विकास खंड का हिस्सा है जहां बलराम पांडेय का घर है, यह घर देखने वालों को भले ही घर ना लगे लेकिन बीमारी से लाचार बलराम घर के नाम पर पर प्लास्टिक की पन्नी की छत से सर छुपाने को मजबूर हैं।
तो इसी छत के नीचे बलराम का परिवार भी बलराम के साथ गुज़र-बसर करता आ रहा है। बलराम क्षय रोग से ग्रसित हैं और परिवार के अनुसार उनके पास खाने के लिए एक दाना भी नहीं है। आखिर उन्हें राशन की अनगिनत योजनाओं का लाभ क्यों नहीं मिला?
बलराम के परिवार के अनुसार कच्चा मकान गिर जाने के बाद पूरा परिवार प्लास्टिक की पन्नी तानकर उसके नीचे गुजर- बसर करने को मजबूर है। टीबी की बीमारी से जूझ रहे इस शख्स को सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ वक्त से क्यों नहीं मिल पाया?
हालात यह है कि नौ लोगों का परिवार मुफसिली और गरीबी के चलते तिल-तिलकर जीने को मजबूर है। पड़ोसियों ने इस परिवार की दास्तान जब सोशल मीडिया पर डाली, तब सूबे के अधिकारियों की नज़र इस मामले पर पड़ी और ज़िला प्रशासन हरकत में आई।
मुफसिली की ज़िदगी जी रहे बीमार बलराम को इलाज के लिए ज़िला अस्पताल में भर्ती कराया और डीएम दावा कर रहे हैं कि अब उन्हें पीएम आवास दिया जाएगा।
परिवार के अनुसार गरीबी से जूझ रहे बलराम पांडेय मेहनत मज़दूरी करके अपने परिवार का गुज़ारा बड़ी मुश्किल से कर पा रहे थे लेकिन पांच साल पहले बलराम को टीबी की बीमारी ऐसी लगी कि वह आज तक बिस्तर से उठ नहीं पाए।
बद से बदतर होती माली हालात के बीच क्षय रोग से ग्रसित बलराम इस क्रॉनिक डिजीज़ से संघर्ष करते रहे लेकिन प्रश्न यह उठता है कि 5 साल से बीमार बलराम को इलाज के नाम पर आयुष्मान कार्ड का दम भरने वाली सरकार से स्वास्थ्य सेवा क्यों नहीं मिल सकी?
छत के नाम पर प्लास्टिक की छत के नीचे रहने वाले परिवार के मुखिया बलराम को कल तक टीबी के इलाज के लिए सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाया।
कैसा है परिवार का हाल?
भूमिहीन बलराम को जहां बीमारियों ने जकड़ रखा है, वहीं ऐसी हालत में उनके अपने भी वक्त के साथ-साथ उनका साथ छोड़ते गए। परिवार के अनुसार बलराम का बड़ा बेटा जो पांच साल पहले घर से कमाने के लिए निकला, वह आज तक अपने घर वापस नहीं आया है।
बलराम का छोटा बेटा दिव्यांग है, जो बोल और सुन नहीं सकता है। बलराम की तीन बेटियां भी हैं, जो छोटी हैं जिनकी पढ़ाई और शादी का बोझ भी बलराम के कंधों पर है।
बलराम की बेटी अर्चना के अनुसार उनके घर में छः दिनों से अन्न का एक भी दाना नहीं है। भोजन के आभाव में उनके पापा की तबीयत और अधिक बिगड़ गई।
पड़ोसी ने की मदद
बलराम के पड़ोसी ने इन हालातों को ट्वीटर पर बयान करते हुए यूपी सरकार को टैग कर दिया। राजधानी लखनऊ से ज़िला प्रशासन को बलराम के मौजूदा हालत से अवगत कराया।
आनन-फानन में मुख्य विकास अधिकारी इंद्रसेन अपने कई अधीनस्थों के साथ कपसासा गाँव स्थित बलराम के घर मदद के लिए पहुंचे।
क्या कहते हैं कौशांबी के डीएम मनीष कुमार
डीएम मनीष कुमार ने बताया कि बलराम का मामला बिलकुल भी भुखमरी का नहीं है। क्रॉनिक डिजीज़ टीबी से ग्रसित बलराम की खबर जैसे ही मिली हमने बीमार बलराम को ज़िला अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया है।
लेकिन माली हालात खराब रहने के कारण ज़िंदगी मुफलिसी में गुज़ार रहा बलराम का परिवार सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं ले सका। जबकि उनके पास अंत्योदय कार्ड भी है।
घर के बारे में पूछे जाने पर कि किसी योजना का लाभ उन्हें क्यों नहीं मिला, इस पर ज़िलाधिकारी मनीष कुमार वर्मा ने बताय कि प्रधानमंत्री आवास हेतु वर्ष 2011 की जो सूची बनी थी, उसमें बलराम का नाम नहीं था।
लेकिन एक अतरिक्त सूची बनाई गई है, जिसमें बलराम का नाम शामिल कर लिया गया है। जैसे ही आवास देने की प्रक्रिया शुरू होती है, प्राथमिकता के आधार पर उन्हें आवास दिया जाएगा। इसके अलावा और भी जो सरकारी सहायता दी जा सकती है, उसके लिए भी प्रशासन गंभीर है।
सिस्टम पर क्यों नहीं उठेंगे प्रश्न?
अंत्योदय कार्ड होने के बावजूद कौशांबी विकास खंड के कपसासा गाँव के रहने वाले गरीब बलराम को सरकारी योजनाओं का लाभ क्यों नहीं नहीं मिल सका?
केंद्र और राज्य सरकारें गरीबों के हित में अनगिनत योजनाओं से उन्हें लाभान्वित करने की बातें कर रही हैं लेकिन वास्तविकता कोसों दूर है। सरकार यह जानने की कोशिश क्यों नहीं कर रही है? बात झारखंड की हो या किसी और राज्य की, कागज़ पर ही चलती योजनाएं धरातल पर कब उतरेंगी?
नोट: YKA यूज़र सरताज आलम झारखंड से स्वतंत्र पत्रकार हैं, जिन्होंने बलराम के परिवारवालों और प्रशासन के बातचीत के आधार पर यह रिपोर्ट लिखी है।