फिल्म पैडमैन देखने के बाद से ऐसा लगा था कि माहवारी को लेकर वाकई में हमारा समाज संवेदनशील और जागरुक हो जाएगा मगर आज भी स्थितियां वैसी ही हैं।
अखबारों में कई दफा लेख पढ़ता हूं कि आज भी आदिवासी इलाकों में महिलाएं माहवारी के दौरान कपड़े और राख का प्रयोग करती हैं मगर मैं अपने इलाके की बात आपको बताऊं तो हमारे ज़िले के आसपास के ग्रामीण इलाकों में ये चीज़ें आम हैं।
होश संभालने के बाद से मैंने कई सराकरी योजनाओं में काम करने के दौरान दुमका ज़िले के प्रखंड जैसे- जामा, मसलिया, गोपीकांदर, रामगढ़ और शिकारीपाड़ का भ्रमण किया है। इस दौरान हर उम्र की महिलाओं से बात करने का असवस मिला है।
मैं यही समझ पाया कि आज भी माहवारी को लेकर ग्रामीण इलाकों में स्थिति काफी दयनीय है। मैं आपके साथ एक घटना साझा कर रहा हूं जिसे जानने के बाद आपको सोचने पर विवश होना पड़ेगा कि झारखंड में वाकई में स्थिति काफी दयनीय है।
साल 2011 की बात है जब मैं मनरेगा योजना के तहत शिकारीपाड़ा प्रखंड के ग्रमीण इलाकों में अपने एक मित्र के साथ गया था। इस योजना के तहत हमें मनरेगा योजना में काम करने वालों को पेमेंट के लिए स्मार्ट कार्ड बनाकर देना था। इस दौरान हम एक ऐसे घर पर पहुंचे जहां बाहर दरवाज़े पर एक महिला बैठी थी। उस वक्त उनकी उम्र यही कुछ 30-35 साल रही होगी। नाम पूछने पर उसने अपना नाम हेमा (बदला हुआ नाम) बताया।
उस महिला के चेहरे पर एक अजीब सी मायुसी थी। ऐसे लग नहीं रहा था कि स्मार्ट कार्ड बनवाने में उसकी कोई दिलचस्पी हो। उन्होंने मनरेगा से जुड़ी जानकारी हमें दी जिसके बाद हम आगे की तरफ चले गए। हमने गाँव के कुछ पुरुषों से पूछा कि क्या उस महिला की सेहत खराब है?
इस पर वहां मौजूद कुछ बुज़ुर्ग लोग हंस दिए। अब वे क्यों हंसे, यह तो पहले मैं समझ नहीं पाया मगर बाद में कुछ बुज़ुर्गों ने हमें बताया कि माहवारी के कारण उस महिला को घर से निकाल दिया गया है।
उनसे इस बारे में कुछ और पूछने पर उन्होंने बताया कि माहवारी को इस गाँव में छुआछूत समझा जाता है, जहां महिलाओं को इस दौरान अलग घर में रहने के लिए कहा जाता है। माहवारी के दौरान महिलाओं को अलग घर में रखने की बात से तो मैं वाकिफ था मगर उस महिला को जिस तरीके से एक खंडहर घर में रहने के लिए दिया गया, वह वाकई शर्मनाक है।
जब हम लौट रहे थे तब हमें एक व्यक्ति ने कहा कि प्रधान जी से बात करिए, वह आपको पूरी जानकारी देंगे। हम प्रधान जी के पास गए फिर उन्होंने बताया कि गाँव के आधे से ज़्यादा लोग माहवारी को छुआछूत की बीमारी समझते हैं। इसी वजह से माहवारी के दौरान इन्हें ना सिर्फ अलग खंडहर घर में रहने के लिए दिया जाता है, बल्कि कई दफा तो इस दौरान उन्हें घर से निकाल भी दिया जाता है।
उन्होंने उस महिला के बारे में बताया कि पिछले तीन दिनों से वह घर से बाहर है और लोगों से मांगकर खाना खाती है। हमें यह भी बताया गया कि हर महीने माहवारी के दौरान उस महिला को घर से निकाल दिया जाता है।
यह शर्मनाक इसलिए भी है क्योंकि आज की तारीख में हम माहवारी से जुड़ी भ्रांतियों को तोड़ने की बात करते हैं, पीरियड फ्रेंडली टॉयलेट बनवाने की बात करते हैं और हम मेन्स्ट्रुअल लीव की बात करते हैं फिर ऐसे में जब माहवारी के दौरान छुआछूत के नाम पर महिलाओं को घर से निकाल दिया जाए, तो वाकई में स्थिति गंभीर है।