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“छठ पर्व के दौरान पीरियड्स आने पर मेरे साथ छुआछूत होने लगा”

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

पीरियड्स का नाम सुनते ही आज मैं सहजता के साथ मुस्कुराते हुए बात करती या लिखती हूं लेकिन पहली बार जब इसका सामना कर रही थी, तब बदहवास थी।

मैं सिर्फ साढ़े दस साल की थी और मेरा मासिक धर्म चक्र शुरू हो गया था। उन दिनों के बारे में सोचकर खुद पर तरस आ जाता है। मैं रोज़ की तरह स्कूल में थी और  रह-रहकर खून बह रहा था। पीरियड जैसी चीज़ों को लेकर मैं पूरी तरह अनभिग्य थी।

मुझे लगातार ऐसा लग रहा था कि मेरे कपड़े गीले हो रहे हैं। आलम यह था कि नेवी ब्लू स्कर्ट पीछे से भीग गया था पैर भी गंदे हो गए थे।

डर की वजह से कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करना है मुझे। मैंने घर आकर यह बात माँ को बताई।  सबसे पहले उन्होंने मुझे गुनगुना पानी से नहाकर साफ कपड़े पहनाए। तब  की टरी पैड का प्रचलन ज़्यादा नहीं था इसलिए पुरानी सूती साड़ी को फाड़कर उसे सैनिटरी पैड जैसा आकार देकर मुझे यूज़ करने दिया गया।

सांझ में जब मैं सोकर उठी तो घर में मुझसे बड़ी चचेरी बहनें, फुआ, चाची, दादी और सभी लोगों को माँ ने बता दिया था। सब मुझसे मेरा हालचाल ऐसे पूछ रहे थे जैसे मैं बीमार इंसान हूं लेकिन पूछते वक्त बेहद खुश भी थे।

मेरे जीवन में यह सब पहली बार हो रहा था। इससे पहले कभी पीरियड या माहवारी जैसी चिड़ियां का नाम तक नहीं सुनी थी। यह क्यों, कब और कैसे होता है, इन प्रश्नों को सोच-सोचकर परेशान थे।

पहले पीरियड्स को मानसिक तौर पर स्वीकार नहीं कर पाई थी

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

माँ से पूछने पर बस इतना मालूम हुआ कि यह हर महीने आएगा। उन्होंने यह भी कहा कि यह कोई बीमारी नहीं है फिर मैं बेवकूफों की तरह बड़ी ही मासूमियत के साथ घर की सभी महिलाओं से पूछती थी कि क्या आपको भी पीरियड आता है? आपके भी पेट और कमर में दर्द होता है? वे सहजता से स्वीकार करती थीं कि ऐसा उन्हें भी होता है।

मेरे इतने सवालों को देखकर दादी समझ गई थी कि मैं सहज नही हूं। वो कहती थीं कि अब तुम शरीर से माँ बनने के लिए तैयार हो रही हो। जिसको तुम आफत कह रही हो, यह तुम्हारे स्वस्थ शरीर की निशानी है और अभी तो इसकी शुरुआत हुई है, जब चालीस पार कर जाओगी तब जाकर बंद होगा। तब तक हर माह यह पांच-सात दिनों के लिए आता रहेगा।

मैं दादी की बात सुनकर हैरान थी। मतलब मासिक धर्म का दूसरा ही दिन था और मैं मानसिक रूप से इसे अभी स्वीकार भी नहीं कर पाई थी। ऐसी परिस्थिति में इसको आने वाले चालीस सालों तक हर महीने झेलना नामुमकिन सा लग रहा था। तब मैंने मन ही मन फैसला किया कि खूब मन लगाकर साइंस पढूंगी ताकि इसका कोई हल निकल पाए।

मेरा मासूम दिमाग स्कूल में साइंस टीचर से भी इस मुद्दे पर सवाल करने पहुंच गया। वह भी हंसते हुए दादी की तरह समझाने लगी कि इसको बीमारी नहीं कहते हैं, पीरियड सभी हेल्दी लड़कियों को होता है।

मानसिक उधेड़बुन तो अब भी जारी था। इसी बीच घर में माँ ने समझाया कि जब तक पांच दिन ना गुज़र जाए शैम्पू लगाकर नहीं स्नान करना है। यह भी कहा गया कि भगवान के मंदिर में या पूजा पाठ की किसी भी सामग्री को छूना नहीं है। मुझे कहा गया कि ऐसा करने पर हम अपवित्र हो जाएंगे।

बेचारा बचपन पाप-पुण्य और भगवान की नाराज़गी के खौफ में इस तरह सहम गया कि इन बातों को बड़ी इमानदारी से मानने लगा। इन सब असहजता के बावजूद मैं पीरियड्स के दौरान लगातार स्कूल और कोचिंग जाती रही। खेलने-कूदने से भी कभी परहेज़ नहीं किया, क्योंकि घर में खुद को पांच दिनों तक कैद रखने पर काफी असहज महसूस होता था।

छठ पर्व के दौरान अछूत हो गई

सैनिटरी पैड की तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

उसी दौरान छठ पर्व आया जब मेरे घर की कई महिलाओं के पीरियड आने का वक्त था। इस दौरान वे छठ पूजा में शामिल नहीं हो पाती थीं इसलिए पीरियड्स की तारीख से पहले दवा लेने लग जाती थीं। मेरी माँ इन सबको पसंद नहीं करती थीं। उनका मानना है कि प्रकृति की दी गई चीज़ों के साथ छेड़छाड़ नहीं करना चाहिए।

उन्होंने मुझे कभी ऐसी दवा नहीं लेने दी। इस वजह से छठ पर्व के दौरान पीरिड्स भी आ गए। अब मेरे साथ छुआछूत जैसा बर्ताव होने लगा। मैं बस अपने कमरे में रहती थी, पूजा सम्पन्न होने तक ना तो घर में घूमती थी और ना ही घर के दूसरे सदस्य मेरे रूम में आते थे। तब ऐसा लगता था कि मैं कोई पापी हूं शायद इसलिए भगवान मेरे साथ ऐसा करके सज़ा दे रहे हैं।

इन सभी त्रासदियों के बीच बीते चार-पांच साल पहले तक मैं मानसिक असहजता के बीच पीरियड्स को झेलती रही लेकिन जैसे-जैसे मैं पढ़ती गई, वैसे-वैसे पीरियड्स के होने के कारण से लेकर इसको लेकर जो अनावश्यक रूढ़िवादी परंपराएं हैं, उन्हें भी समझती गई।

शुरू-शुरू में जब पीरियड्स के दौरान शैम्पू लगाकर स्नान करती थी या पूजापाठ में शामिल होती थी, तब घर में काफी विरोध होता था लेकिन मैंने सहजता से उन्हें समझाया कि आखिर क्यों पुराने ज़माने में ऐसे नियम बने थे।

मैंने उन्हें समझाया कि उस वक्त सैनिटरी पैड्स या कपड़े को इस्तेमाल करने की समझ नहीं थी। इसलिए हाइजीन मेंटेन करने के लिए ऐसे नियम बनाए गए होंगे, जिसमें लड़कियों को एक ही कमरे में रहना होता होगा ताकि सभी जगह गंदगी ना लगे। वहीं, आज महिलाएं पैंट से लेकर पैड तक इस्तेमाल कर रही हैं। उन दिनों घर के सभी काम कर रही हैं, स्कूल, कॉलेज और दफ्तर तक जा रही हैं फिर मंदिर या पूजा-पाठ से खुद को क्यों वंचित रखना?

जबकि कामख्या देवी मंदिर में माना जाता है कि माता की योनि की पूजा होती है। मेरे लिए अपने घर की महिलाओं को एक बार में समझा पाना आसान नहीं था लेकिन अब वे मुझे अपने दकियानूसी नियमों का हवाला देते हुए रोकती-टोकती नहीं हैं।

धीरे-धीरे मेरे चारों तरफ पीरियड्स को लेकर एक नई समझ आज की पीढ़ी में आने लगी है। यह बदलाव जो मेरे जीवन में आया है, उसे मैं आने वाली पीढ़ी को देकर उन्हें ना सिर्फ शारीरिक रूप से, बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी हैप्पी एंड हेल्दी पीरियड के लिए तैयार कर रही हूं।

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