हम इतने हारे हुए लोग हैं कि रातों-रात भोपाल गैस कांड जैसी कोई त्रासदी हो जाए और हमारे प्रियजनों के प्राण भी निकल जाएं, तब भी हम अपनी सरकारों से कुछ नहीं कहेंगे। उनसे जवाब मांगने के लिये हमारी मुट्ठियां कभी नहीं तनेंगी।
हमारी बंदूकें बस उन पर बरसेंगी जो वाजिब सवाल पूछकर हमें यह बताने की कोशिश करेंगे कि छठी मैया से लेकर अयोध्या में रामलला की वापसी के लिए करोड़ों की दीवाली मनाने के बावजूद हम भारतीयों की ये दुर्दशा क्यों हैं कि दिल्ली समेत हरियाणा, उत्तर प्रदेश के शहरों में एक्यूआई(AQI) का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है और सर्दी तो अभी ठीक से आई भी नहीं है।
हम मच्छरों की तरह मर रहे हैं
हमारे हिंदी के अखबार यह तो बता रहे हैं कि प्रदूषण बढ़ने का एक फायदा हुआ है कि मच्छर भाग गये हैं या प्रकारांतर से समझें तो यह ज़हरीली हवा अब मच्छर जैसे खून चूसने वाले परजीवी के ज़िंदा रहने के लायक भी नहीं रही।
ये अखबार आपको नहीं बताते कि आपके पांच साल से छोटे जिगर के टुकड़े भी इस हवा में सांस नहीं ले सकते। वे मर रहे हैं, मच्छरों की ही तरह।
वे अभी ग्रेटा थनबर्ग की तरह चीखना नहीं सीखे या इस उम्र में यह कारनामा नहीं कर सकते इसलिये आपकी आंखों के सामने लोरियां सुनते हुए, अपना बेबी फूड खाते हुए धीरे-धीरे मरने पर विवश हैं।
इन सबके बीच क्या हमें पता है कि हमारी सरकारें इस मुद्दे पर क्या कर रही हैं? नहीं, यह सवाल पूछना हमें ज़रूरी नहीं लगता, यह तो प्राकृतिक आपदाएं हैं, इस पर आपकी सरकारें क्या करेंगी? जबकि यह सब कार्बन उत्सर्जन पर रोक ना लगाने का परिणाम है। हवा में अब कार्बन की मात्रा बेतहाशा बढ़ चुकी है और हम इस मात्रा को बढ़ाने में आए दिन सहयोग ही दे रहे हैं।
खराब हवा क्वालिटी में रन फॉर यूनिटी
इन सबके बीच खास बात यह है कि हमारे गृहमंत्री ने कल इंडिया गेट पर रन फॉर यूनिटी के नाम पर बच्चों की एक दौड़ को झंडी दिखा कर शुरुआत की। इनमें से किसी बच्चे के पास मास्क नहीं था। सरकार ने इसकी व्यवस्था की या नहीं? अगर की थी तो ये बच्चे हवा की क्वालिटी इतनी खराब होने के बावजूद क्यों बगैर मास्क के खुले में दौड़ाये गये?
यह सवाल अगर हम और आप अपनी सरकारों से नहीं पूछेंगे, तो ये सवाल बच्चों के लिये कब जानलेवा बन जाएंगे हममें से किसी को इसका पता भी नहीं चलेगा।
क्या आपने सोचा था कि गोरखपुर में ऑक्सीजन सिलेंडर मुहैया ना हो पाने की वजह से जिस तरह बच्चे मर रहे थे, उसी तरह आज आपके नौनिहाल इतनी जल्दी लगभग उसी नाटकीय अंदाज़ में बढ़ते मिलेंगे? आपने नहीं सोचा, अब भी नहीं सोच रहे लेकिन उन बच्चों की मौत का कारण भी सरकारी लापरवाही और सही समय पर समाधान ना निकालने की प्रवृत्ति थी और आप और हम भी अपने बच्चों की उसी त्रासद मौत का इंतज़ार करते हुए लोग हैं।
जिन्हें लगता है कि कुछ नहीं बदलेगा उन्हे आंखे खोल कर देखना चाहिये कि हर पल सब कुछ बदल रहा है, आपके फेवर में हालात तब होंगे जब हम और आप उन्हे बदलने के लिये घरों से निकलेंगे और अपने ज़िंदा रहने के लिये बेहद ज़रूरी हवा, पानी, खाने, रहने जैसे सिमटते जा रहे बुनियादी अधिकारों पर अपनी सरकारों से लड़ेंगे, उन्हे मजबूर करेंगे कि निरंकुश तानाशाही पर लगाम लगाएं।
इसी तरह हमारे पुरखे भी अपनी आज़ादी के लिये लड़े थे जिसका फल हमने आपने चखा। अगर आप अपने बच्चों के लिये नहीं लड़ रहे हैं तो माफ करियेगा, लेकिन आप उन्हें कीड़े-मकौड़े जैसी ज़िंदगी देने के लिए प्रतिबद्ध नज़र आते हैं। अगर आप मुझसे सहमत नहीं तो खुद से सवाल पूछिये कि साफ हवा-पानी की बजाय धर्म और बाज़ार हमने अपने बच्चों के लिए कब चुन लिए?