आज ओवेरियन कैंसर महिलाओं में होने वाला सबसे आम कैंसर बन गया है और इस कैंसर का लक्षणों के आधार पर पहचान करना मुश्किल है, क्योंकि इस कैंसर के शुरुआती लक्षण साधारण पेट दर्द और पेल्विक दर्द के तरह होते हैं।
इस वजह से इसे पहचानने में काफी वक्त लग जाता है और ज़्यादातर इस कैंसर की पहचान तीसरे या चौथे स्टेज में ही होती है। महिलाओं में ओवरी प्रजनन क्रिया को संचालित करती है और साथ ही हॉर्मोन का स्राव भी करती है, जिसमें एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन प्रमुख हैं।
महिलाओं में दो ओवरी होती हैं, जो यूटरस के उपरी भाग अर्थात फैलोपियन ट्यूब के पास उपस्थित होती है, जहां निषेचन के बाद भ्रूण विकसित होना शुरू होता है।
बदलते परिवेश के साथ कैंसर जैसी बीमारी ना केवल पुरुषों को बल्कि महिलाओं को भी अपने चपेट में ले रही है। भारत में महिलाओं में सबसे अधिक होने वाले कैंसर में पहले स्थान पर ब्रेस्ट कैंसर, दूसरे पर सर्वाइकल और तीसरे स्थान पर ओवेरियन कैंसर आता है और मृत्यु दर के आंकड़ों में इसका स्थान पांचवा है।
ओवेरियन कैंसर को डिंब ग्रंथि या अंडाशय कैंसर भी कहा जाता है, जिसमें ओवरी में सिस्ट अर्थात ट्यूमर बनने शुरू हो जाते हैं और यही सिस्ट बाद में बढ़कर कैंसर का रुप धारण कर लेते हैं, जिससे गर्भधारण में समस्या होने लगती है।
सामान्यतः इस कैंसर की पहचान नहीं हो पाती है, क्योंकि शुरुआती चरण में इसके लक्षण बेहद कम देखने को मिलते हैं या कहें कि इसके लक्षण आम दिनों के दर्द या साधारणतया लक्षणों में आते हैं मगर जब यह कैंसर पेल्विक एरिया और पेट के आसपास फैलने लगता है, तब इसकी पुष्टि हो पाती है। इसलिए अधिकांश मामलों में इसका इलाज तीसरे या चौथे चरण में ही होता है।
यह कैंसर जब अपने एडवांस स्टेज में पहुंचता है, तब कुछ लक्षण जैसे- पेट में सुजन या पेट का फुल जाना, थोड़ा खाते ही भुख मिट जाना, वजन घटना, पेल्विक एरिया के पास दर्द होना, कब्ज़ और बार-बार मूत्र त्यागने की इच्छा होना, यह सब लक्षण इस कैंसर में देखे जा सकते हैं।
यह कैंसर चार स्टेज में फैलता है-
- पहले स्टेज में यह दोनों ओवरी तक ही सीमित रहता है।
- दूसरे स्टेज में यह पेल्विक एरिया तक फैल जाता है।
- तीसरे और चौथे स्टेज में यह पेट और पेट के बाहरी अंगों तक फैल जाता है।
आमतौर पर इस कैंसर के मूल कारण का पता अभी तक नहीं चल पाया है मगर कुछ कारक हैं, जो इस कैंसर को बढ़ाने का काम करते हैं। जैसे-
- अगर किसी महिला को या परिवार के किसी सदस्य को ब्रेस्ट कैंसर हुआ हो तो ओवेरियन कैंसर के होने का खतरा बढ़ जाता है।
- उम्र के 50-60वें पड़ाव के बाद इस कैंसर के होने का अनुमान रहता है।
- पीरियड्स का समय से पहले शुरू होना और देर से खत्म होना।
- ओबेसिटी और इनफर्टिलिटी इस कैंसर के जोखिम को बढ़ाता है।
- इसके साथ ही जिन महिलाओं ने एस्ट्रोजन हार्मोनल थेरेपी ली हो, उनमें भी ओवेरियन कैंसर के होने का खतरा बढ़ जाता है।
ओवेरियन कैंसर के परीक्षण की बात करें तो उसमें अल्ट्रासाउंड, एमआरआई या सीटी स्कैन द्वारा पेल्विक एग्ज़ामिनेशन किया जाता है। खून की जांच में कैंसर एंटीजन 125 दर की जांच (CA- 125), HCG (Human Chorionic Gonadotrophin) लेवल की जांच, इन्हिबिन, एस्ट्रोजन और टेस्टोस्टेरोन दर की जांच के साथ रक्त जांच भी किया जाता है।
ओवेरियन कैंसर के इलाज में बायोप्सी, सर्जरी, कीमोथेरेपी, हार्मोनलथेरेपी, रेडियोथेरेपी और टार्गेटेड थेरेपी शामिल है। कीमोथेरेपी का प्रयोग इस कैंसर के सभी चरणों में किया जाता है।
बायोप्सी द्वारा जांच कर इस कैंसर की पुष्टि की जाती है। सर्जरी में कैंसर के शुरुआती लक्षण को देखते हुए एक ओवरी को निकाल दिया जाता है। अगर कैंसर एक ही ओवरी में फैला हो तो दूसरी ओवरी को बचाकर महिला माँ बन सकती है।
कैंसर दोनों ओवरी में फैलने पर डॉक्टर ओवरी के साथ फैलोपियन ट्यूब भी निकालने की सलाह देते हैं मगर इससे माँ बनने में कोई बाधा नहीं आती, क्योंकि इसमें यूटरस को नहीं हटाया जाता है। इससे महिलाएं नई तकनीक (फ्रोजन एग) की मदद से माँ बन सकती हैं।
इसके साथ ही अगर परिवार पूरा हो गया हो और यह कैंसर अपने अंतिम चरण में पहुंच गया हो तो ओवरी के साथ यूटरस को भी हटा दिया जाता है।
इसके अलावा कैंसर के अंतिम चरण में डॉक्टर सर्जरी के साथ-साथ कीमोथेरेपी द्वारा भी इस कैंसर का इलाज करते हैं।आज कैंसर के अंतिम चरण में भी नई दवाईयां उपलब्ध हैं, जिससे मरीज़ एक लंबी आयु की कामना कर सकते हैं।
ओवेरियन कैंसर में निम्नलिखित प्रकार शामिल हैं-
- एपिथेलियल ओवेरियन कैंसर- यह सबसे आम प्रकार का कैंसर माना जाता है और 90 फीसदी कैंसर इसी श्रेणी के होते हैं।
- स्ट्रोमल ट्यूमर- यह ओवरी के हॉर्मोन उत्पादन करने वाली कोशिकाओं में होता है और इसकी पहचान शुरुआती चरण में हो जाती है। कैंसर के लगभग 7 फीसदी केस स्ट्रोमल ट्यूमर के होते हैं।
- जर्म सेल ट्यूमर- यह अंडा उत्पादन करने वाली कोशिकाओं में पाया जाता है।
ओवेरियन कैंसर के जोखिम से बचने के कुछ उपाय
- ब्रेस्ट फीडिंग कराने से ओवेरियन कैंसर और फैलोपियन ट्यूब के कैंसर का खतरा कम हो जाता है। सही समय पर बच्चे होने से भी इस कैंसर का रिस्क घट जाता है।
- इसके अलावा जिन महिलाओं का हिस्टेरेक्टॉमी या ट्यूब लाइगेशन हुआ हो, उन्हें भी इस कैंसर का खतरा कम होता है। स्वास्थ्य दिनचर्या को अपनाकर भी हम इस कैंसर से बच सकते हैं।
ओवेरियन कैंसर में लक्षणों का पता लगने में भले ही देर लग जाती हो लेकिन इसका इलाज नामुमकिन नहीं है। इसकी जल्द से जल्द पहचान करने और लोगों को जागरूक करने के लिए हाल ही में BEAT नामक एक कैंपेन की भी शुरुआत की गयी है।
BEAT नाम के इस कैंपेन के ज़रिये ओवेरियन कैंसर के लक्षणों को मात्र चार तरीकों से पहचाना जा सकता है। इसके साथ ही बेहतर है कि ओवेरियन कैंसर के लक्षणों के दर्द को नज़रअंदाज़ ना करते हुए समय-समय पर डॉक्टरी सलाह ली जाती रहे।
नोट: YKA यूज़र सौम्या ज्यौत्स्ना ने पटना के पारस एंड नारायण कैंसर सेंटर के कैंसर स्पेशलिस्ट डॉक्टर. अभिषेक आनंद (एमडी, डीएम) से बातचीत के आधार पर यह स्टोरी लिखी है।