प्रधानमंत्री जी, कल ही आपने संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत से पहले मीडिया को दिए गए वक्तव्य में कहा कि आप विपक्ष के साथ किसी भी मुद्दे पर बातचीत करने के लिए तैयार हैं। आपने कहा कि सत्ता पक्ष वाद-विवाद और संवाद के लिए तैयार है।
आगामी 26 नवंबर को संविधान दिवस का ज़िक्र करते हुए आपने कहा कि ये हमारा 70वां संविधान दिवस है। आपने कहा कि यह संविधान देश की एकता, अखंडता, भारत की विविधता, भारत के सौंदर्य को अपने में समेटे हुए है और देश के लिए चालक ऊर्जा शक्ति है।
आपकी बातें सुनकर आपके लिए प्रशंसा निकलती है
इन कथनों को देखकर तो प्रधानमंत्री जी आपकी वाह-वाह करने का मन करता है लेकिन जैसे ही ज़मीनी हकीकत सामने आती है, मन घबराने लगता है कि क्या ये कथन वास्तविक हैं? अत: प्रधानमंत्री जी मेरे आपसे कुछ सवाल हैं जो देश के तमाम स्टू़डेंट्स के भी सवाल हैं-
- कल जिस तरह से दिल्ली पुलिस द्वारा जेएनयू के छात्र-छात्राओं पर लाठीचार्ज किया गया उसको देखते हुए एक सवाल है कि वाद-विवाद और संवाद के लिए आपने कितना स्थान और किनको वह स्थान दिया है?
- छात्र-छात्राएं जो इस देश के भावी कर्णधार हैं, उनको बेरहमी से लाइट बंद करके, घेरकर पुलिस से पिटवाना कहां तक उचित है और क्या इस तरह से छात्र-छात्राओं की आवाज़ को दमन पूर्वक नहीं दबाया जा रहा है?
- प्रधानमंत्री जी आपने कल सुबह ही संविधान की दुहाई दी थी, तो कम-से-कम इतना तो याद रखना चाहिए था कि शांतिपूर्वक विरोध करने का अधिकार हिंदुस्तान की जनता को इसी संविधान ने दिया है। अत: प्रधानमंत्री जी यह बताइए कि जब छात्र-छात्राएं शांतिपूर्ण ढंग से अपने प्रतिनिधियों से मिलकर अपनी समस्या बताने जा रहे थे, तो इन्होंने कौन सा अपराध कर दिया कि इनको इतनी बेरहमी से पीटा गया?
प्रधानमंत्री जी बलूचिस्तान में मानवाधिकारों का हनन आपको दिखता है, तो मैं यह उम्मीद करता हूं कि आप दिल्ली में भी होने वाले मानवाधिकारों के हनन के विषयों पर संज्ञान लेंगे।
अब बात मेरे दोस्तों के मानवाधिकारों की
मेरा एक मित्र है शशि भूषण। मैं उसको पांच सालों से जानता हूं और दिल्ली से पहले वाराणसी के बीएचयू में साथ पढ़े भी हैं। शशि भूषण जेएनयू में पढ़ता है। शशि भूषण देख नहीं सकता है। वह भी कल शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में शामिल था। कल पुलिस ने उसे लाठियों से तो पीटा ही, साथ ही उसके सीने पर भी पुलिस ने अपने बूटों से मारा है।
प्रधानमंत्री जी यह बताइए कि यह कहां कि मानवता है कि एक पर्सन विद डिसेबिलिटी के साथ इस तरह का बेरहम सलूक किया जा रहा है? कहां हैं, उसके मानवाधिकार प्रधानमंत्री जी?
मेरा मित्र अभिनव एक आम छात्र है, जो पढ़ने लिखने आया है। उसके पूरे शरीर पर लाठियों के निशान बन गए हैं। अभिनव को भी मैं बीएचयू से ही जानता हूं। मेरा एक और मित्र है अविनाश जो लाठी लगने के कारण ठीक से चल नहीं पा रहा है। उसका पैर पूरी तरह सूज चुका है और वह चलने की स्थिति में नहीं है।
हम अपने दम पर आए हुए विद्यार्थी हैं
प्रधानमंत्री जी, ये हमारे ही देश के छात्र हैं, जो पिछड़े शहरों के गाँवों और गरीब घरों से अपनी मेहनत के दम पर आएं हैं। फीस बढ़ जाने पर शायद आगे कोई गरीब -गुरबा ना आए। इसलिए अगर ये अपनी बात अपने जनप्रतिनिधियों के सामने रखना चाहते हैं तो क्या गलत है? प्रधानमंत्री जी, ये हमारे ही देश के नागरिक हैं।
प्रधानमंत्री जी, आप आज संविधान की दुहाई देते हुए विविधता की बात कह रहे थे तो आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि जिस वक्त आप ये बातें कह रहे थे, उसी वक्त ट्विटर पर आपके समर्थक जिन्हें केंद्रीय मंत्री और उनका ऑफिस भी फॉलो करता है, #बीएचयू_में_फिरोज़_क्यों नामक एक साम्प्रदायिक ज़हर को ट्रेंड करा रहे थे।
Meet our so called “Buddhijeevi’s”
Virtue Signalling using such third rate language?
& That for students who are protesting rightly!
How can someone who does not believe in yajnas , jyotish, hindu rituals teach them hinduism?#BHU_में_फिरोज_कयों https://t.co/8xfmyQEIBD— Ritu (सत्यसाधक) #EqualRightsForHindus (@RituRathaur) November 18, 2019
अब प्रधानमंत्री जी, यह बताइए कि आप कहते कुछ हैं और आपके समर्थक करते कुछ और हैं, फिर इसे क्या समझा जाए? मुंह में राम बगल में छुरी या फिर कुछ और?
- उन्नाव में देश के अन्नदाताओं पर भी बेरहमी से पुलिस द्वारा लाठियां बरसाई गईं और ये सब आपकी ही सरकार में हुआ है लेकिन आप मौन धारण किए बैठे हैं?
- आपकी पार्टी द्वारा शासित राज्य में पिछले कुछ सालों में 22 मौतें भुखमरी के कारण हो गईं पर आपने मौन साध लिया है।
प्रधानमंत्री आपको जनता ने चुना है अतः आपको जनता के प्रश्नों का जवाब तो देना ही चाहिए।