अभी हाल ही में वायु गुणवत्ता सूचकांक गंभीर से अधिक स्तर तक गिर जाने के कारण सर्वोच्च न्यायालय के एक पैनल ने दिल्ली-एनसीआर में सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा की थी। इसके चलते 5 नवबंर तक दिल्ली-एनसीआर में निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके साथ ही, स्थिति को नियंत्रित करने के लिए प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण प्राधिकरण ने सर्दियों के मौसम के दौरान पटाखे जलाने पर भी प्रतिबंध लगाया था।
विभिन्न सरकारी एजेंसियों ने भी निर्माण गतिविधियों पर रोक, विद्यालयों में अवकाश, हॉट मिक्स प्लांट और स्टोन क्रशर पर रोक जैसे आदेश जारी किए थे। साथ ही दिल्ली सरकार द्वारा ऑड-इवेन फॉर्मूला भी लागू किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने बढ़ते वायु प्रदूषण को भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 का उल्लंघन बताया, जो जीवन की सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की प्राथमिकता से संबंधित है।
वायु की गुणवत्ता का सूचकांक
सभी लोगों के लिए यह जानना ठीक रहेगा कि वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) में 0-50 अंक तक मिलने का मतलब है, वायु की गुणवत्ता अच्छी है, जबकि 101-200 अंक तक मिलने का मतलब है वायु की गुणवत्ता मध्यम प्रकार की है। वहीं 400-500 अंक तक मिलने का मतलब है वायु की गुणवत्ता गंभीर है।
लेकिन बात यहीं तक सीमित नहीं है, क्योंकि वायु गुणवत्ता सूचकांक में 500 से अधिक अंक मिलने की स्थिति को गंभीर से अधिक (Severe–Plus) कहा जाता है, जिसमें कि हमारे आज के नए भारत की गुणवत्ता भी शामिल है।
कार्बन के कण गर्भ में ही शिशु को कर सकते हैं प्रभावित
अभी हाल ही में बेल्ज़ियम की हैसेल्ट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की एक टीम ने ब्लैक कार्बन कणों से जुड़ा एक अध्ययन जारी किया, जिसके अनुसार प्रदूषित हवा में मौजूद कार्बन के कण माँ की नाल के ज़रिये भ्रूण में पल रहे गर्भस्थ शिशु के शरीर में जा सकते हैं। इस कारण गर्भस्थ शिशु को कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है।
क्या है ब्लैक कार्बन
सामान्य रूप से ब्लैक कार्बन डीज़ल द्वारा संचालित इंजन, कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्र, लकड़ी के जलने से उत्पन्न एक प्रकार का घातक पदार्थ है, जो कि किसी भी प्राणी के स्वास्थ्य के लिहाज़ से बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं है।
ब्लैक कार्बन एक वैश्विक पर्यावरणीय समस्या है, जिसका मानव स्वास्थ्य और जलवायु दोनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- एक ओर जहां ब्लैक कार्बन हमारी जलवायु को ज़हर के समान बना रहा है, जिस कारण तापमान में वृद्धि, तीव्र गति से बर्फ का पिघलना, बारिश तथा बादलों की संरचना में बदलाव इत्यादि शामिल हैं।
- वहीं दूसरी ओर ब्लैक कार्बन मानव को श्वसन, हृदय रोग, कैंसर यहां तक कि जन्म दोष जैसी समस्याएं देने में कोई कमी नहीं छोड़ रहा है।
ब्लैक कार्बन की वजह से आज हमारे प्राकृतिक संसाधन लगातार कई तरह के संकटों का सामना कर रहे हैं, जिनमें कि हिमालय और आर्कटिक क्षेत्र भी शामिल हैं।
ब्लैक कार्बन जैसे विनाशकारी पदार्थ की समस्या हमारे सामने कैसे आई?
निश्चित रूप से यही कहा जा सकता है कि इस प्रकार की पर्यावरण संबंधी समस्या ना तो ईश्वर की देन है और ना ही प्रकृति की। यह हमारे क्रियाकलापों का ही परिणाम है कि आज हम ही अपनी जान के दुश्मन बन बैठे हैं और लगातार विनाश की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
यह बड़े ही अफसोस की बात है कि हम अपनी आधुनिकता में इतने चकनाचूर हैं कि हम ना तो अपनी ज़िम्मेदारियों को ठीक तरह से समझ रहे हैं और ना ही हम अपनी आने वाली पीढ़ियों का ख्याल कर रहे हैं।
आज जलवायु परिवर्तन का संकट दोगुनी वृद्धि से पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले रहा है और आने वाले समय में जीवन के अनुकूल परिस्थितियां पृथ्वी पर ना बच पाने का संकेत दे रही हैं। आज विश्व की कई जागरूक संस्थाओं और एजेंसियों द्वारा जलवायु के संकट पर लगातार शोध कार्य किए जा रहे हैं। इस संबंध में अभी हाल ही में लांसेट काउंटडाउन की रिपोर्ट सामने आई है, जो कि सभी को आश्चर्यचकित करती है और हमारे आने वाले भविष्य का बिल्कुल स्पष्ट आईना हमें दिखाती है।
लांसेट काउंटडाउन रिपोर्ट के अनुसार लगातार बढ़ते तापमान के कारण आज के समय में पैदा होने वाले बच्चे अपने आजीवनकाल तक अलग-अलग तरह की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से ग्रसित रहेंगे। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि आने वाली पूरी पीढ़ी की भलाई इसी में है कि दुनिया पेरिस समझौते के अनुसार चले, जिसमें कि ग्लोबल वॉर्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से कम करने का लक्ष्य तय किया गया है।
जलवायु परिवर्तन की दिशा में आमजन की ज़िम्मेदारी
इस प्रकार से ऐसे कई शोध हमारे सामने लगातार आते रहते हैं लेकिन अभी तक हमारे द्वारा उन शोधों को पढ़कर भूलने की आदत नहीं गई है। हम 21वीं सदी में अपना जीवन जी रहे हैं लेकिन हम अपने कर्तव्यों को लगातार भूलते जा रहे हैं और यही आज के मानव की सच्चाई है। बड़ी ही खेदजनक बात है कि हम अपनी समझदारी का ढिंढोरा लगातार पीटते रहे हैं, किन्तु जब समझदारी को साबित करने की बात आती है तब हमें शून्य अंक ही प्राप्त होते हैं।
आज हमें ज़रूरत है एक ऐसे समाज के निर्माण करने की जो प्रकृति के प्रति दयालु हो, अपनी आने वाली पीढ़ियों का ख्याल करने वाला हो साथ ही अपनी ज़िम्मेदारियों को समझने वाला हो। यदि हम इस तरह के ज़िम्मेदार समाज का निर्माण करने में सक्षम होते हैं, तो हमारा अस्तित्व अवश्य ही लंबे समय तक रहेगा।
इन तमाम जलवायु परिवर्तन की विनाशकारी घटनाओं को मद्देनज़र रखते हुए अब सबाल उठता है कि हमारी इनसे निपटने की तैयारी क्या है?
- क्या हम जलवायु परिवर्तन के भयंकर परिणामों को जानते हुए भी उनसे मुंह मोड़ने का प्रयास कर रहे हैं?
- या फिर हम उस तरह के अभिभावकों की श्रेणी में शामिल हैं, जो कि अपने बच्चों की सांसों में लगातार ज़हर जाते हुए देख पाने में सहज हैं?
- या फिर हम उस तरह की अवधारणाओं का पालन करने वालों में शामिल हैं, जो सबकुछ ईश्वर पर छोड़ देते हैं?
कहीं हम उस दिखावे में शामिल तो नहीं हैं, जो धरती को धरती मॉं कहकर पुकारते हैं, वायु को वायु देवता, पेड़ों को ईश्वर का दर्जा देते हैं, समुद्र को समुद्र का देवता आदि नामों से संबोधित तो करते हैं लेकिन जब बात उनके संरक्षण की आती है, तो उस ओर से अपना मुंह मोड़ लेते हैं।
यह भारत के संदर्भ में कटु सत्य हो सकता है कि हम लगातार प्रकृति की पूजा करते हैं लेकिन जब बात उसे बचाने की आती है तो हम स्वार्थी की तरह प्रकृति से अपना रिश्ता एक सेकेंड में ही तोड़ लेते हैं। हमारे स्वार्थी होने का इससे उच्च स्तर का उदाहरण भला क्या हो सकता है? शायद यही वजह रही होगी कि हम स्वयं को विश्वगुरू का दर्जा देने वाले लोग, आज उस श्रेणी में शामिल हैं, जहां अशिक्षित लोगों को रखा जाता है।
यह हमारी विडम्बना नहीं है तो और क्या है? शर्म आती है जब कोई शिक्षित व्यक्ति भी पर्यावरण के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों से मोह मोड़ लेता है और दुनिया के सामने एक A4 साईज़ की डिग्री लेकर स्वयं को शिक्षित कहकर झूठा ढांढस बंधाता है। विश्वास मानिए यह कुछ ऐसे कटु सत्य हैं, जिनके बारे में हमें ज़रूर सोचना चाहिए और सवाल अपने आपसे पूछना चाहिए कि क्या आज हम जो प्रकृति को दे रहे हैं वो ठीक है या गलत है?
आज समय आ गया है पर्यावरण के प्रति उदार रहने का, प्रकृति को संजोने का, अपनी आने वाली पीढ़ियों को बचाने का साथ ही अपने कर्तव्यों को निभाने का।
किसी भी देश की व्यवस्था को ठीक स्थिति में लाने के लिए उस देश की सरकार का बड़ा ही महत्वूपर्ण योगदान रहता है, इसलिए अब सरकार को बिना राजनीति किए नि:स्वार्थ भाव से लगातार जलवायु परिवर्तन में होने वाली वृद्धि को कम करने के प्रयास करने चाहिए ताकि हमारे लोकतंत्र का अस्तित्व ज़िन्दा रह सके।
इसलिए ज़रूरी है कि सभी आमजन इस मुद्दे पर सरकार का पूरा सहयोग करें, क्योंकि आमजन का साथ दिए बिना सरकार किसी भी कार्य को ठीक तरह से नहीं कर सकती है। पर्यावरण से संबंधित सभी आम नागरिक से लेकर सरकारी एजेंसियों/संस्थाओं और वे सभी राजनीतिक दलों के लोग जिन्हें पर्यावरण का ज्ञान हो, उन सबको एक साथ आकर जलवायु परिवर्तन की समस्या का समाधान निकालना चाहिए, ताकि यह साबित हो सके कि आज भारत किसी भी समस्या का समाधान एकजुट होकर करने में पूरी तरह से सक्षम है।
जलवायु परिवर्तन की दिशा में मीडिया की ज़िम्मेदारी
अक्सर देखा जाता है कि हमें मीडिया के कार्यक्रमों में पर्यावरण से संबंधित मुद्दे कम ही देखने को मिलते हैं, वो भी आज के जलवायु परिवर्तन के समय में। यह मीडिया की ज़िम्मेदारी होनी चाहिए कि वह अब अपने चौथे स्तंभ होने का प्रमाण देते हुए जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को आमजन तक पहुंचाकर जागरूक करे।