एक चीज़ जो मैंने अपने अनुभवों से सीखी है,
मंज़िल उन्हें नहीं मिलेगी, जिनके सपने बड़े हैं बल्कि मंज़िल तो उन्हें मिलेगी जो हर हाल में ज़िद पर अड़े हैं।
आप अगर कुछ भी पाना चाहते हैं, तो वह आपको एक झटके में नहीं मिलती। आपको उसके लिए लड़ना पड़ता है और जब तक इंसान अपनी सोच को बड़ा नहीं करेगा, तब तक वह अपनी ज़िंदगी में कुछ भी बड़ा हासिल नहीं कर पाएगा।
इसी सोच के साथ मादीपुर दिल्ली में पैदा हुआ मैं दिनेश कुमार, आज आपके सामने अपनी जीवन की उन परिस्थितियों का ज़िक्र करने जा रहा हूं, जिनकी वजह से आज मैं “मैं” हूं।
ज़िंदगी में आज आप जो भी मुकाम हासिल कर चुके हैं, क्या उसका श्रेय आप केवल उन अच्छे लोगों को देंगे, जिन्होंने आपको मोटिवेट किया या फिर उन लोगों को भी देंगे जो केवल यह सोचते रहें कि आप कब गिरेंगे। मैं तो उन लोगों को धन्यवाद देना चाहूंगा, जो हमेशा मुझे गिराने की कोशिश में लगे रहें, क्योंकि उठाने वाला तो कोई था ही नहीं।
मेरी सफलता की शुरुआत

मेरी उम्र 13 साल थी, जब मेरी माँ मुझे छोड़कर चली गई। मुझे आज भी याद है कि कैसे मेरी माँ मुझे और मेरे भाई को एक बेहतर ज़िंदगी देने के लिए अपने हालातों से लड़ रही थीं।
शराब के नशे ने उन्हें इतना अंधा और मतलबी बना दिया था कि उन्हें हमारी चिंता ही नहीं थी। मेरी सफलता की कहानी तो उसी दिन शुरू हो चुकी थी, जब मैंने मेरी माँ को अकेले सब सहते देखा था। हमारे समाज की भी अजीब परंपरा रही है कि औरतें चाहे कितना भी कुछ कर ले या काम करते-करते मर क्यों ना जाए मगर सिवाए ज़िल्लत के उन्हें कुछ नहीं मिलता।
मेरी माँ भी सब सह रही थी और बदले में उन्हें कैंसर जैसी बीमारी के अलावा कुछ नहीं मिला। मेरी कहानी सुनने में काफी फिल्मी लगेगी मगर सच तो यही है कि शायद खुदा भी मेरे लिए कोई फिल्म ही बना रहा था।
मैं बहुत बेबस था
बात तब की है, जब मैं खुद इतना बेबस था कि सबकुछ देखकर भी कुछ नहीं कर पाता था और जब किया तो सिर्फ इतना कि माँ को अपने घर जाने को कह दिया। कौन चाहेगा कि उसकी माँ उसके सामने मार खाए। कई बार रोकने की कोशिश में मैंने अपने पिता को धक्का भी दिया मगर रोज़-रोज़ की ये ज़िल्लत अब चुभ रही थी और दम घुट रहा था।
मेरी माँ मुझे भी साथ ले जाना चाहती थी लेकिन मैं जानता था कि जहां दो लोगों के लिए खाना नसीब नहीं हो पा रहा, वहां 3 लोगों के लिए एडजस्ट करना काफी मुश्किल था। मेरी माँ, मेरे छोटे भाई बंटी को लेकर अपने घर चली गई। हमलोग दो साल अलग रहें। मैं अपने पिता के पास रहा और भाई माँ के पास।
दो साल अलग रहा। उस बीच दिल में बहुत दर्द उठा, जिसे मैं बयां भी नहीं कर सकता। इसी बीच मुझे पता चला कि मेरी माँ को कैंसर है और डॉक्टर ने कह दिया कि अब वह सिर्फ 1 महीने ही जी पाएंगी। मैं आपके सामने इस दर्द को बयां नहीं कर सकता क्योंकि इसे आप समझ ही नहीं पाएंगे।
पैसों का अभाव
मेरे पास पैसे नहीं थे कि सही इलाज हो पाता। कुछ डॉक्टर की नासमझी और कुछ गलत इलाज ने मेरी माँ को और कमज़ोर कर दिया लेकिन वह काफी मज़बूत इरादों की थीं। वह 1 महीने नहीं बल्कि डेढ़ महीने हमारे साथ रहीं। उनके मरने के दो दिन पहले ही मैं उनसे मिलने गया था। धीमी आवाज़ में उन्होंने बस एक ही चीज़ कही, ‘’छोटे का ख्याल रखना।” छोटे मतलब मेरा छोटा भाई।
इन नन्हें से कंधों पर ज़िम्मेदारियों का बोझ उस दिन और महसूस हुआ, जब माँ की आखिरी इच्छा सुनी।
दो दिन बाद खबर आई कि माँ अब नहीं रहीं। मैं ज़्यादा नहीं रोया, क्योंकि ज़िम्मेदारियां थीं और उन्हें निभाना भी था। रोता तो कमज़ोर पड़ जाता और वह आग बुझ जाती, जो मेरे अंदर लगी थी।
इरादा पक्का था
वह आग कभी बुझने मत दो जो अंदर लगाई है तुमने, कभी किसी बुरी स्थिति को अपनी नाकामयाबी का बहाना मत बनने दो कि मेरे हालात ऐसे थे कि कुछ नहीं कर पाया। तुम सब कर सकते हो अगर एक बार ठान लो।
मैंने भी ठान लिया था। हालांकि उम्र कम थी मगर इरादे बड़े थे, जिसे पूरा करने के सिवाए कोई दूसरा रास्ता नहीं था। उस बुरे वक्त में मेरी बुआ ने काफी मदद की, जो खुद अपने जीवन की परेशानियों में उलझी थीं लेकिन उन्होंने हमारी परेशानियों को अपना समझा।
मैं और बंटी, बुआ के साथ रहने लगे। मैंने जैसे-तैसे दसवीं और बारहवीं पास किया लेकिन ज़िंदगी मेरे लिए कुछ अलग ही लिख रही थी। मैंने ग्रैजुएशन पूरा किया और उसके बाद एक Delhi Institute of Tool Engineering से डिप्लोमा कर लिया। जिसके बाद गुरुग्राम, हरियाणा के NEEL METAL में मुझे एक नौकरी मिल गई। उस समय 11700 रुपये मेरी जीविका थी। उसी कंपनी ने ट्रेनिंग के लिए मुझे थाईलैंड भेजा, जहां 25 दिनों की ट्रेनिंग के बाद मैं वापस आ गया।
मुझे सरकारी नौकरी के बारे में पता चला
अब मुझे लगा कि इससे काम तो नहीं चलने वाला है। मैं, बंटी, बुआ और उनके 3 बच्चे इसी आय से काम चला रहे थे। तब मुझे किसी दोस्त द्वारा सरकारी नौकरी के बारे में पता लगा और मैंने पढ़ाई करनी शुरू की।
2013 में CGL की परीक्षा दी और पास भी हो गया लेकिन परीक्षा कैंसल हो गई और तबीयत खराब होने की वजह से दोबारा उस परीक्षा को नहीं दे पाया तथा उसी साल दिल्ली पुलिस की परीक्षा भी पास की।
उसके बाद 2014 में फिर से CGL की परीक्षा में बैठा और मुंबई कस्टम में इंस्पेक्टर (Examiner) की पोस्ट हासिल की। 2014 में ही मैंने CHSL भी पास किया और CISF सब-इंस्पेक्टर का पद भी हासिल किया। साथ ही 2016 के CGL द्वारा ऑडिटर का पद भी हासिल किया।
ज़रूरतें बहुत थीं
मुंबई कस्टम्स की ज्वाइनिंग में अभी काफी वक्त था मगर ज़रूरत कम नहीं हो रही थी। गणित में मार्क्स भी काफी अच्छे आए थे इसलिए 195.5 मार्क्स लेकर पैरामाउंट कोचिंग पहुंच गया और वहां मैथ्स फैकल्टी के रूप में काम करने लगा क्योंकि कर्ज़ बहुत थे, उन्हें चुकाना था।
धीरे-धीरे ज़िंदगी सुधरने लगी और 2016 जनवरी में मैंने iphone लिया। मैं बहुत खुश था, जिसे मैंने फेसबुक पर भी ज़ाहिर किया, क्योंकि आजकल सोशल मीडिया का ज़माना है।
आप भी ज़िंदगी में एक बात याद रखिएगा कि ज़िंदगी से आपको क्या चाहिए? यह जानने से ज़्यादा महत्वपूर्ण है कि आप यह जान लीजिए कि ज़िंदगी से आपको क्या नहीं चाहिए?
मैंने ज़िंदगी जीना शुरू किया
एक महीने बाद मैं जॉब छोड़कर पटना आ गया और गणित पढ़ाना शुरू किया लेकिन कहते हैं ना मुश्किलें कम नहीं होती। मैंने ज़िंदगी जीना करना शुरू ही किया था। पैसे भी ठीक-ठाक थे और सब अच्छा चल रहा था लेकिन धीरे-धीरे दिक्कतें शुरू हुईं। पैरामाउंट में काम करता था, वहां पैसे सही समय पर नहीं मिल रहे थे। कभी 3 महीने तो कभी 4 महीने लग जाते, जिससे लगने लगा था कि ज़िंदगी ऐसे कैसे चलेगी, कुछ तो करना ही होगा।
काफी स्टूडेंट जो मुझसे गणित पढ़ चुके थे और उन्हें भरोसा था कि मेरे जैसा गणित कोई पढ़ा नहीं सकता। इन सब चीज़ों से प्रेरित होकर मैंने खुद की कोचिंग खोलने की सोची। 9 सितम्बर 2017 को मैंने अपनी खुद की कोचिंग शुरू की, जिसका नाम रखा INSPECTORS ACADEMY.
सब वापस सही होने लगा मगर सफलता की तरफ बढ़ते-बढ़ते मैंने कब कई दुश्मन बना लिए मुझे मालूम ही नहीं चला। मैं कभी भी इससे डरा नहीं, क्योंकि मैं जानता हूं कि ज़िंदगी यही है। यहां सब आपके अनुसार नहीं होने वाला और लोग तो आपसे जलेंगे ही और आपको गिराना चाहेंगे ही क्योंकि वह जानते हैं कि आप उनसे बेहतर हैं।
मैं आगे बढ़ता गया
अपनी सारी परेशानियों से लड़ते हुए मैं आगे बढ़ता गया। मैंने कई सरकारी परीक्षाएं दी उन्हें पास भी किया। यह सिर्फ मेरी किस्मत नहीं थी बल्कि मेरी मेहनत भी थी। पिछले वर्ष (2018) में ही मैंने अपनी गणित की किताब भी प्रकाशित की, जिसकी प्रतिक्रिया काफी अच्छी रही और इस साल उसकी प्रतिक्रियाओं को देखते हुए मैंने गणित की एक और किताब को भी प्रकाशित किया और इसकी प्रतिक्रिया पिछली वाली से भी ज़्यादा अच्छी रही।
मैंने YouTube पर Dinesh Inspectors Academy के नाम से अपना खुद का चैनल भी बनाया, जिससे उन स्टूडेंट्स को फायदा मिल सके जो मुझसे दूर हैं या जिन्हें पैसे की दिक्कत है। अभी कुछ दिनों पहले ही मेरी एकैडमी के नाम से एक ऐप का भी शुभारंभ हुआ है, जिसका नाम Inspectors Academy Classes है। जहां प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे बच्चों को वह सबकुछ मिलेगा जो उन्हें चाहिए।
ज़िंदगी के मायने बदल गए
मेरे पास पहले कुछ भी नहीं था और अब जीवन के मायने ही बदल गए। अब जब अपना बचपन याद करता हूं तो सोचता हूं कि काश मैं अपनी माँ को बचा पाता लेकिन मुझे मालूम है कि मेरी माँ जहां भी हैं, वह मुझे देखकर खुश होंगी।
फिलहाल ज़िंदगी बहुत अच्छी चल रही है लेकिन मैं रूका नहीं हूं। मुझे अभी और चलना है और आगे बढ़ना है। आपसे भी यही कहूंगा कि आपके पास भी जीने की एक योजना होनी चाहिए, क्योंकि किसी दिशा के बिना ज़िंदगी जीकर कोई फायदा नहीं होता।
आपको क्या चाहिए और आप क्या पाना चाहते हैं, यह सभी चीज़ें आपको तय करनी है। ज़िंदगी में एक टारगेट का होना बेहद ज़रूरी है। अपना फोकस एक जगह रखिए क्योंकि बार-बार अगर फोकस बदलता रहेगा तो आप कहीं नहीं पहुंच पाएंगे।
ज़िंदगी का मकसद जानना ज़रूरी
अपनी ज़िंदगी का मकसद जानिए और अपने आस-पास हो रही चीज़ों से कुछ सीखिए। आलोचना करने वाले लोग आपको बहुत मिलेंगे लेकिन आपको घबराना नहीं है बल्कि हर चीज़ों और उन सभी लोगों से सीख लेनी है, जो आपको सफल होते नहीं देखना चाहते हैं। जीवन जीना और सफल होना अगर इतना आसान होता, तो आज सभी सफल और खुश होते।
बस मैं यही कहूंगा कि “एक लक्ष्य निर्धारित करिए और आगे बढ़ते रहिए, सफलता आपको ज़रूर मिलेगी अगर आपकी मेहनत 100% है”।