Site icon Youth Ki Awaaz

“नाइट शिफ्ट करने वालों के लिए नींद महबूबा की तरह होती है”

सुबह के 3 बज रहे हैं। मैं यह आर्टिकल लिख रहा हूं, जो अभी आप पढ़ रहे हैं।  हां, लिखने में मुझे दिलचस्पी है लेकिन इतनी भी नहीं कि सुबह के 3 बजे तक रोज़ लिखने या पढ़ने का रूटीन हो। तो साहब, बात ऐसी है कि मैं नाइट जॉब करता हूं और नाइट जॉब वालों के लिए नींद उस महूबबा की तरह होती है जिसे मनाने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है और फिर जब आती भी है तो बस थोड़ी ही देर के लिए।

प्रतीकात्मक तस्वीर, फोटो साभार- Pixels

नाईट शिफ्ट वालों का शेड्यूल

तो जनाब, इसे आप हम नाइट जॉब वालों का शेड्यूल कह लें, लाइफ स्टाइल कह लें, मजबूरी कह लें या शौक कह लें, लेकिन हम लोग तभी सोते हैं, जब

हम अखबार वालों, होटल वालों, बार वालों, कैब वालों, पुलिस वालों के लिए नाइट जॉब महज़ ज़िंदगी के कुछ घण्टे नहीं हैं, जो हम अपनी कम्पनी में गुज़ारते हैं, ये तो वह टैग है, जो ताउम्र हमारे माथे से चिपक जाते हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर, फोटो साभार- Pixels

ये जान लें कि अगर किसी की किस्मत में हार लिखी हो तो कोई-कोई ही जान पाता है लेकिन किसी की किस्मत में नाइट जॉब लिखी हो, तो सदियों के उनींदे उस चेहरे को हर कोई पढ़ पाता है।

तो पहले ये बता दूं कि मैं एक अखबार में काम करता हूं।शाम के 5 बजे से सुबह 2 बजे तक की जॉब है। जिस भी गली से गुज़रकर घर को जाना होता है, वहां के सारे आवारा कुत्ते भी मुझे पहचानते हैं।

पहले मुझे नाईट शिफ्ट का शौक था

दरअसल, ग्रैजुएशन करते समय मैं हॉलीवुड फिल्मों से इश्क में पड़ गया था। उन फिल्मों में रात को खूबसूरत लगती सड़कें और उन सड़कों में गेड़ियां लगाते हीरो-हेरोइनों को देखकर मैं नाइट जॉब की तरफ आकर्षित हो गया था। सोचता था, रात को ड्यूटी के बाद इन सड़कों का बॉस मैं भी बनूंगा लेकिन कहते हैं ना, मन का सोचा कभी नहीं होता।

तो जनाब, नाइट जॉब शुरू करते ही इसके साइड इफेक्ट्स पता चलने लगे। जब काम करने का टाइम होता है तो सोने का मन करता है, सोने का टाइम होता है तो काम करने का। कितने भी घण्टे सो लो, हम उनींदे ही रहते हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर, फोटो साभार- Pixels

रात को 2 बजे जब ऑफिस से दिमाग का दही करवाकर लौटते हैं, तो हम अधूरी सी नींद की आस में बिस्तर पर पड़े होने के बाद भी अगले दिन का हिसाब-किताब लगाने में जुट जाते हैं और सोचते हैं कि आज भीड़ से हटकर कुछ अलग करेंगे लेकिन शाम को शुरू हो जाती है वही पुरानी भेड़चाल।

इसके बाद सुबह 4 या 5 बजे जब नींद आती है, तो उसके बाद से पूरी दुनिया से लगभग हम कट गए होते हैं। अखबार वाला अखबार डाल के चला गया होता है, अड़ोसी-पड़ोसी काम पर निकल गए होते हैं, दोपहर 12-1 बजे जब नींद की दुनिया से वापस लौटते हैं, तो आधी दुनिया अपने-अपने काम-धंधे पर निकल गई होती है।

हम हमेशा उनींदे रहते हैं

नाश्ता करने का अब समय नहीं होता। ऐसे में हम लघुशंका, दीर्घशंका, दांत, मुंह जैसे नित्यकालीन कामों से फारिग होने के बाद दिन का खाना बनाने में जुट जाते हैं। खाना बनाते-बनाते और खाते-खाते कब शाम के 4 बज जाते हैं, पता ही नहीं चलता। बर्तन धोते हुए आंखों में फिर नींद भरने लगती है लेकिन घड़ी ऑफिस के लिए तैयार होने को कह रही होती है।  ऐसे में नींद आंखों में, आलस शरीर में और चेहरे पर मनहूसियत लिए हम ऑफिस पहुंच जाते हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर, फोटो साभार- Flicker

अब बताने की जरूरत नहीं कि अब ऐसे में कितना अच्छा या बुरा काम ऑफिस में कर पाते होंगे। भाई साहब, ऐसे में सुबह-सुबह अगर किसी रिश्तेदार के यहां जाना पड़ जाए या कोई हमारे यहां आ जाए तो गोली मारने का मन करता है। ना तो दिन का मज़ा ले पाते हैं और ना रात का। शाम देखे तो कई साल हो गए हैं। आप सोच रहे होंगे वीकली ऑफ? तो साहब, वह तो सोने में ही निकल जाता है।

Exit mobile version