बाबा साहब के दिए गए मंत्र “शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो” को तब-तब आवाज़ मिलती है, जब-जब स्टूडेंट्स अपने अधिकारों के लिए सड़क पर उतरते हैं।
जेएनयू में 28 अक्टूबर से स्टूडेंट्स प्रदर्शन पर बैठै हैं लेकिन 11 नवंबर को यह साफ हो गया है कि सरकार अब स्टूडेंट्स की मांगों को केवल अनसुना ही नहीं कर रही है, बल्कि उन्हें दंडित भी कर रही है। जिस तरह से मासूम स्टूडेंट्स पर लाठीचार्ज किए गए, उनके प्रोटेस्ट को रोकने के लिए वॉटर कैनन का इस्तेमाल किया गया, वो बताता है कि लोकतंत्र की छवि कैसे धूमिल होती जा रही है।
क्या है पूरा मामला
28 अक्टूबर को हॉस्टल का मैनुअल आता है, जिसमें फीस का इज़ाफा होता है, वह भी नए कायदे कानून के साथ। ये सभी कायदे कानून ऐसे हैं, जैसे स्टूडेंट विश्वविद्यालय में नहीं किसी बंदी गृह में पढ़ाई कर रहे हों। आपका ड्रेस कोड कैसा होगा वह भी उस मैनुअल में है और वह उचित होने चाहिए यह भी आपको अब बताया जाएगा।
स्टूडेंट्स पर पाबंदियों की लिस्ट है-
- लाइब्रेरी रातभर बंद रहेगी और आपको 11.30 बजे तक हॉस्टल में लौटना होगा।
- इसके अलावा फीस का इज़ाफा अलग है, जिसमें कमरे के किराए को 10 रुपए महीने से बढ़ाकर 300 रुपए कर दिया गया है।
- सर्विस चार्ज जो पहले शून्य था, अब 1700 रुपए कर दिया गया है।
- मेस की सिक्योरटी भी बढ़ा दी गई है, जो पहले 5500 रुपए थी अब बढ़कर 12000 रुपए हो गई है।
- बढ़ाई गई सभी कीमतों के हिसाब से अब प्रति स्टूडेंट पर हॉस्टल का सालाना चार्ज 72 लाख के करीब पड़ेगा, यह कीमत पहले मामूली सी हुआ करती थी। इसके अलावा इसमें 10 प्रतिशत की वृद्धि भी होना तय है।
इसके अलावा भी हुए हैं कुछ बदलाव-
- इन सभी नियमों और इज़ाफे के अलावा जेएनयू को सुरक्षा का हवाला भी दिया जा रहा है। अब से हॉस्टल में किसी बाहर के व्यक्ति को आने के लिए पहले प्रशासन से मंज़ूरी लेनी होगी और अगर कोई बाहर का व्यक्ति हॉस्टल के कमरे में देखा जाता है तो उसपर कार्रवाई भी होगी।
- मेस की फीस देने की तारीख भी बदल दी गई है, जो पहले 24 हुआ करती थी, वह अब 15 हो गई है।
- तारीख के साथ-साथ देरी होने पर फाइन भी बढ़ा दी गई है, जैसे पहले कोई स्टूडेंट 24 तारीख के बाद फीस देने में देरी करता था तो रोज़ का 1 रुपए बढ़ाकर देना होता था लेकिन अब से स्टूडेंट को 100 रुपए देने होंगे।
इन सभी नियमों के विरोध में स्टूडेंट्स प्रदर्शन करते हैं और उनकी बात सुनना तो दूर वीसी उनकी मांगों को दरकिनार करते हैं। वे हज़ारों स्टूडेंट्स जो गरीब तबके से आते हैं, जिनके परिवार की आय सालाना 2 लाख से कम है वे क्या करेंगे? इस देश में टॉप की यूनिवर्सिटी बनाने का दावा किया जाता है लेकिन केंद्र और राज्य सरकार इसपर कोई बात नहीं करती है।
जेएनयू के स्टूडेंट्स की मांगों को सुना जाना चाहिए, क्योंकि वे देश के भविष्य के लिए लड़ रहे हैं। कोई भी लोकतांत्रिक सरकार उसके स्टूडेंट्स पर लाठीचार्ज करके अपने देश को विश्वगुरु तो नहीं बना सकती है।