साहब, JNU पर कीचड़ उछालना बंद करें। सत्तारूढ़ पार्टी से नज़र हटाकर ज़रा कायदे से अगल-बगल झांके। महाराष्ट्र की सियासत की हालिया तस्वीरें देखने के बाद आपका अपने चहेते राजनीतिक दलों और नेताओं को शंका की निगाहों से देखना तो बनता है।
हां, अगर आप सवाल नहीं कर पा रहे हैं तो फिर किसी और को गाली देने से पहले अपने लिए रो लें। यह मैं इसलिए याद दिला रही हूं, क्योंकि आप सुनी-सुनाई बातों और उन राजनेताओं पर विश्वास करके JNU को गंदा कह रहे हैं, जो इधर का होते-होते, मिनटों में उधर का हो जाता है।
जनता के गरीब और अशिक्षित होने का सबसे ज़्यादा फायदा राजनेता और कॉरपोरेट उठाते हैं
यहां मामला शिक्षा के अधिकार और उसके निजीकरण का है। चुनावों में हमने लोगों को जाति-धर्म और बिजली-पानी पर चर्चा करते सुना होगा पर हमारे बीच कितने लोग अपने नेताओं से यह सवाल करते हैं कि भई मेरे बच्चों का स्कूल अच्छा नहीं है या है ही नहीं।
पब्लिक फंडेड एजुकेशन पर डिस्कोर्स शुरू करने का श्रेय बढ़ी फीस के खिलाफ विरोध कर रहे स्टूडेंट्स को जाता है। JNU की हॉस्टल फीस और अन्य चार्ज बढ़ा दिए गए हैं। संस्था में पढ़ रहे 40 फीसदी छात्र गरीब घरों से आते हैं। अगर सरकार अपना फैसला वापस नहीं लेती है, तो ये सभी स्टूडेंट्स यूनिवर्सिटी छोड़ने के लिए मजबूर हो जाएंगे।
गरीबों और वंचितों की पहुंच से बाहर निकल रही है शिक्षा
टॉप 10 सार्वजनिक शिक्षा संस्थानों का फीस स्ट्रक्चर और साल-दर-साल फीस वृद्धि के आंकड़ों पर नज़र डालें तो पाएंगे कि शिक्षा गरीबों और वंचितों की पहुंच से लगभग निकल चुकी है। ऐसे में देश के हालात से परिचित सरकार फीस बढ़ाकर यही संदेश दे रही है कि शिक्षा सिर्फ अमीरों के लिए है।
प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने देश की प्रगति के सपने के साथ लॉन्ग टर्म लक्ष्य रखे थे। ये लक्ष्य भारत को शिक्षा, कृषि, स्वास्थ्य और तमाम विकास के पैमानों पर समृद्ध होते देखने के थे। हम इन लक्ष्यों से भटक गए हैं। संसद तक जाती सड़कों पर लाठी खाते स्टूडेंट्स को देखकर मन में आता है कि उभरती हुई अर्थव्यवस्था जैसी बातों का कोई औचित्य ही नहीं है, अगर स्टूडेंट्स शिक्षा पर लाखों खर्च करने के लिए मजबूर हों।
आज देश के सबसे बड़े विपक्ष की भूमिका में हैं स्टूडेंट
जब सरकार एंटी नैशनल का पूरा नैरेटिव गढ़ रही थी, तब JNU ने हमें याद दिलाया कि देखिए आप किसी भी ओर हो, हमें याद रखना होगा कि अधिकार मांगने और सवाल पूछने के लिए सरकार आपको कठघरे में खड़ा नहीं कर सकती है।
आज एक बार फिर JNU स्टूडेंट्स ने शिक्षा के अधिकार पर पूरे देश को जागरूक किया है। आईआईटी, मेडिकल और आर्ट्स कॉलेजों की बढ़ती फीस से परेशान स्टूडेंट्स ने एक साथ मिलकर आवाज़ बुलंद की है। ध्यान देना होगा कि हम राजनीतिक रूप से सक्रियता को नेताबाज़ी कहकर नकार ना दें। किसी भी देश के विकास के लिए ज़रूरी है कि उसके लोग राजनीतिक रूप से सक्रिय हो।
शिक्षा का उद्देश्य आपको मॉल में जाकर बड़े ब्रॉन्ड पहनने और वीकेएंड पर सलमान की फिल्म देखने के काबिल बनाना नहीं है। सड़कों पर उतरे स्टूडेंट्स की भारी संख्या बताती है कि शिक्षा का उद्देश्य सफल हो गया है।
नोट- हालांकि इस दिशा में एक अच्छी खबर यह आई है कि सरकार द्वारा गठित तीन सदस्यीय उच्चस्तरीय समिति ने स्टूडेंट्स को फीस वृद्धि की दिशा में राहत देने की सिफारिश की है। अगर इसपर अमल होता है तो JNU स्टूडेंट्स को इस दिशा में राहत मिल सकती है।