तेल की कीमतों ने वैश्विक राजनीति को तय करने के लिहाज़ से हमेशा एक अहम भूमिका अदा की है, जिसके चलते ओपेक देशों (पेट्रोलियम उत्पादक 14 देशों का संगठन) का इस बाज़ार में खासा दबदबा है।
वैश्विक स्तर पर तेल के इस महत्व के बीच अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में ऊर्जा के एक नए स्रोत शेल गैस के बारे में चर्चाएं शुरू हो चुकी हैं और अमेरिका तो इसी के बलबूते पेट्रोलियम और कोल उत्पादों पर अपनी निर्भरता कम करता जा रहा है।
क्या है शेल गैस और क्या यह नैचुरल गैस से अलग है?
70 के दशक में जब कच्चे तेल के उत्पादन में क्रांति आई, तो पूरी दुनिया में सऊदी अरब और ईरान समेत कई खाड़ी देशों की पहचान ऊर्जा के केंद्र के तौर पर हुई और तब से तेल की उपलब्धता के चलते इन देशों का महत्व बना हुआ है। अमेरिका और रूस द्वारा इन इलाकों को खास तवज्ज़ों देने का यही कारण है
लेकिन तेल के सीमित भंडार ने तमाम देशों को ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की तरफ मुड़ने के लिए मजबूर कर दिया है। इन्हीं कारणों से अमेरिका, चीन और भारत शेल ऑयल और शेल गैस का पता लगाने और उनका इस्तेमाल करने की कोशिश में लगे हैं।
शेल गैस चट्टानी संरचनाओं से उत्पादित एक तरह की प्राकृतिक गैस है, जो बालू, लाइमस्टोन, संरचनाओं से पैदा होने वाली प्राकृतिक गैसों से अलग है और यह शेल में उपलब्ध जैविक तत्त्वों से उत्पादित होती है। इसे निकालने के लिए ज़मीन में तकरीबन 2 किलोमीटर तक ड्रिल करना पड़ता है।
शेल पेट्रोलियम की ऐसी चट्टानें हैं, जो पेट्रोलियम का स्रोत हैं और इन पर उच्च ताप व दबाव पड़ने से एक प्राकृतिक गैस पैदा होती है जो एलपीजी की तुलना में कहीं अधिक स्वच्छ है।
- शेल शब्द आमतौर पर किसी तलछट चट्टान के लिए इस्तेमाल किया जाता है और इन्हें बनने में लाखों वर्षों का समय लगता है।
- इन चट्टानों में ठोस बिटूनुमस पदार्थ ‘कैरोजिन’ होते हैं और जब इन चट्टानों को पायरलॉसिस प्रक्रिया से गर्म किया जाता है,
- तब इससे कैरोजिन पेट्रोलियम जैसे तरल पदार्थ बाहर आते हैं, जिसे शेल ऑयल कहा जाता है।
- शेल गैस को रॉक गैस के नाम से भी जाना जाता है।
कैसे होता है शेल गैस का निष्कर्षण (Extraction)?
चट्टानों से शेल गैस को निकालने के लिए कृत्रिम उत्प्रेरण (Atrificial Stimulation) जैसे ‘हाइड्रॉलिक फ्रैक्चारिंग’ (Hydraulic Fracturing) की ज़रूरत पड़ती है, इसके तहत इसे शेल चट्टानों तक क्षैतिज खनन (Horizontal Drilling) द्वारा पहुंचा जाता है या फिर चट्टानों को हाइड्रोलिक विघटन (Hydraulic fracturing) से तोड़ा जाता है।
हाइड्रोलिक विघटन का कारण यह है कि कुछ शेल चट्टानों में छेद बहुत कम होते हैं, जिसके चलते उनमें से तरल पदार्थ आसानी से बाहर नहीं निकलते हैं। हाइड्रोलिक विघटन के लिए चट्टानों के भीतर छेद करके लाखों टन पानी, प्रोपेंट (चट्टानों के छोटे-छोटे टुकड़े) और रासायनिक पदार्थ डाले जाते हैं। हाइड्रोलिक विघटन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद उस इलाके पर अच्छी तरह से दबाव कार्य किया जाता है।
शेल गैस के निष्कर्षण की तकनीक की बात करें तो बीसवीं सदी तक यह काफी महंगी थी लेकिन 21वीं सदी की शुरुआत से इसकी तकनीक में काफी सुधार हुआ है, जिसकी बदौलत अमेरिका में एक बैरल शेल ऑयल की उत्पादन लागत 40 डॉलर आ रही है।
अमेरिका इसी की बदौलत ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने की तरफ बढ़ रहा है। कई विश्लेषकों और आर्टिकल्स का यह मानना है कि ऊर्जा के क्षेत्र में शेल गैस 21वीं सदी के लिए बहुत निर्णायक साबित होगी।
क्या शेल गैस कोयला से बेहतर विकल्प साबित हो सकती है?
शेल गैस के निष्कर्षण में बहुत बड़ी मात्रा में इस्तेमाल होने वाले जल और रासायनिक पदार्थों को लेकर कई पर्यावरणविदों ने इस पर सवाल उठाए हैं। ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री डेविस कैमरन ने भी शेल गैस के आर्थिक लाभ की तरफदारी करते हुए कहा था कि पर्यावरण में भी इसके सकारात्मक परिणाम दिखाई देंगे।
द गार्डियन अखबार में छपी ब्रिटिश पेट्रोलियम के शोध के मुताबिक,
अमेरिका में शेल गैस के इस्तेमाल से कार्बन उत्सर्जन में कमी आई है लेकिन यूरोप और अन्य देशों में उत्सर्जन में वृद्धि हुई।
बतौर शोध, ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि अमेरिका में ऊर्जा संयंत्रों में इस्तेमाल होने वाले कोयले को दूसरे देशों में भेज दिया गया। शोध में कहा गया कि शेल गैस के निष्कर्षण से कार्बन उत्सर्जन कुछ हद तक कम हो सकता है, क्योंकि यह ऊर्जा के बाकी संसाधनों से ज़्यादा स्वच्छ है।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक,
अगर हम ऊर्जा के लिए अपनी निर्भरता कोयले से शिफ्ट करके शेल गैस पर करें तो ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम होगा।
शोधकर्ताओं के अनुसार,
शेल गैस से सार्वजनिक जीवन में सुधार होगा, क्योंकि शेल गैस को जलाने से सल्फर का उत्सर्जन नहीं होता है, जबकि कोयले से सल्फर का उत्सर्जन होता है।
यह बात पहले भी सिद्ध हो चुकी है कि हाइड्रोकार्बन का सबसे अच्छा फॉर्म गैस होता है, जबकि इस मामले में तरल (पेट्रोल, डीज़ल) का दूसरा और ठोस (जैसे कोयला) का स्थान तीसरा है।
इस शोध में यह भी कहा गया है,
एलपीजी जैसी परंपरागत नैचुरल गैस के निष्कर्षण से 50 से 100 गुना अधिक पानी का इस्तेमाल शेल गैस निकालने में होता है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हाइड्रोलिक विघटन प्रक्रिया में बहुत ज़्यादा पानी की ज़रूरत होती है।
साइंस डेली में छपी यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन की रिसर्च के मुताबिक,
हाइड्रोलिक विघटन प्रक्रिया को लेकर फैली कई चिंताओं के बावजूद, शेल गैस से उत्पन्न हुई बिजली से उत्सर्जित हुए हानिकारक रासायनिक तत्व कोयला संचालित बिजली संयंत्रों की अपेक्षा 10 से 100 गुना कम होते हैं।
हाल ही के दिनों में, हॉरीजॉन्टल ड्रिलिंग और हाइड्रॉलिक फ्रैक्चरिंग की सहायता से शेल फॉर्मेशन में प्राकृतिक गैस के बड़े स्रोत मिले हैं।
भारत में शेल गैस की संभावनाएं
सरकार ने पिछले साल अगस्त में तेल और गैस उत्पादों को मौजूदा अनुबंधों के तहत शेल तेल एवं गैस के अन्वेषण के लिए नई नीति को मंज़ूरी दी है। इसके तहत, निजी और सरकारी निकाय शेल गैस समेत अपरंपरागत हाइड्रोकार्बन का पता लगाकर उसका उपयोग कर सकेंगे।
तेल कंपनी ओनजीसी ने इसका पालन करते हुए देश के चार बेसिनों (कैम्बे, कृषणा-गोदावरी, कावेरी और ए एवं एए) में शेल गैस/तेल की संभावना के मूल्यांकन के लिए खोज शुरू कर दी है। वहीं, एस्सार ऑयल एंड गैस एक्सप्लोरेशन एंड प्रोडक्शन (ईओजीईपीएल) को पश्चिम बंगाल के रानीगंज ब्लॉक में शेल गैस भंडार की खोज करने के लिए मार्च 2019 में ही पर्यावरण मंज़ूरी मिली है।
भारत के लिए शेल गैस को काफी अहम माना जा रहा है, क्योंकि हम अब भी तेल की ज़रूरत का तकरीबन 80% हिस्सा आयात करते हैं। ऊर्जा ज़रूरतों के लिए अमेरिका, चीन और भारत समेत कई देश शेल गैस के निष्कर्षण में कदम रख चुके हैं।
भारत सरकार को कोयले पर अपनी ऊर्जा निर्भरता घटाने के लिए गैस और अक्षय ऊर्जा जैसे स्रोतों की तरफ बढ़ना होगा। अगर शेल गैस की कोयला से तुलना की जाए तो यह उससे काफी बेहतर और कम प्रदूषण फैलाने वाला ऊर्जा स्रोत है। हालांकि, जब यही तुलना अक्षय ऊर्जा स्रोतों से की जाती है, तो यहां शेल गैस पीछे छूट जाती है।
यूएस एनर्जी ऐंड इन्फॉर्मेशन एडमिनस्ट्रेशन (ईआईए) की जून 2013 की रिपोर्ट के मुताबिक,
- दुनियाभर में शेल गैस का भंडार लगभग 7576 ट्रिलियन घनफीट है।
- रिपोर्ट के मुताबिक, 2013-15 के बीच चीन के पास 1113 ट्रिलयन घन फीट, अर्जेंटीना में 802 ट्रिलियन घन फीट, अमेरिका में 623 ट्रिलयन घन फीट, रूस में 285 ट्रिलियन घन फीट और भारत में 95 ट्रिलियन घन फीट शेल गैस का भंडार है।
संयुक्त राज्य अमेरिका के ऊर्जा, सूचना और प्रशासन विभाग के अनुसार,
- 2035 तक अमेरिका की ऊर्जा की खपत की 46% भाग की पूर्ति शेल गैस द्वारा ही होगी जिसका मतलब है कि वह कोयला संचालित संयंत्रों पर अपनी निर्भरता कम करेगा।
हमें यह बात भी ध्यान में रखनी होगी कि जलवायु को नुकसान कर रहे कोयले की खपत में विश्व में भारत दूसरे नंबर पर है।
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