साल 2011 की बात है जब मैं आईबीपीएस एग्ज़ाम देने के लिए रांची गई थी। इस दौरान मेरे साथ मेरा भाई भी था मगर उसे रांची में कोई काम था जिस कारण एग्ज़ाम हॉल में मुझे छोड़कर वह अपना काम करने चला गया। शाम को जब हमारा एग्ज़ाम ओवर हुआ और हम वापस ट्रेन पकड़ने के लिए रांची जंक्शन जा रहे थे तब रास्ते में मुझे महसूस हुआ कि अब मुझे पैड बदल लेना चाहिए।
स्टेशन जाने के रास्ते में एक सुलभ शौचालय पर नज़र गई तो मैं दौड़कर उधर जाने लगी। अंदर जाकर देखा वहां पहले से ही 60-70 लड़कियां लाइनों में लगी हैं। कोई उम्मीद ही नहीं थी कि वहां मैं पेड बदल पाती। मेरी हालत काफी खराब हो चुकी थी, क्योंकि घर से निकली थी और पीरियड शुरू हो चुका था। ट्रेन में भी मैं पैड नहीं बदल पाई थी जिस कारण काफी अनकंफर्टेबल महसूस कर रही थी।
वहां से ऑटो लेकर मैंने ऑटो वाले से कहा, “यहां आसपास कोई शॉपिंग मॉल है क्या?” उन्होंने ना में जवाब देते हुए कहा कि यहां से काफी दूर है शॉपिंग मॉल फिर मुझे उन्हें कहना ही पड़ा कि भैया किसी शौचालय के पास हमें ले चलिए। उन्होंने इसके बाद मुझसे कुछ नहीं पूछा और सीधे मुझे एक सुलभ शौचालय ले गए।
चूंकि रांची में एग्ज़ाम देने के लिए काफी संख्या में स्टूडेंट्स आए थे इस वजह से वहां काफी भीड़ थी। इस दौरान मैंने वहां बैठी एक महिला से रिक्वेस्ट भी किया कि मुझे पैड बदलना है मगर उन्होंने मेरी एक ना सुनी।
यहां तक कि वहां इतनी गंदगी थी कि एक पल के लिए ठहरना भी मुमकिन नहीं था। यदि उस महिला ने मुझे अंदर जाने भी दे दिया होता तो गंदगी के कारण उल्टी हो जाती। ऑटो वाले भैया को मैं पैसा दे चुकी थी तो वह वहां से चले गए थे। अब मैं पैदल ही आगे की तरफ बढ़ रही थी। दूसरी तरफ मेरा भाई स्टेशन में मेरा इंतज़ार कर रहा था। अब से कुछ ही देर में हमारी ट्रेन थी और इधर यह सब कुछ चल रहा था।
आखिरकार मैंने फैसला किया कि इसी हालत में स्टेशन जाती हूं और वहां जाकर मैं पैड बदल लूंगी। वहां जाने के बाद तो हालत ऐसी थी कि स्टेशन में पैर रखने की भी जगह नहीं हो। सारे स्टूडेंट्स एग्ज़ाम देकर एक-एक करके आ रहे थे। किसी तरह से मैं अपने भाई के पास गई और कुछ ही देर में हमारी ट्रेन आ गई।
ब्लीडिंग की हालत में ही गंदे पैड के साथ मैं किसी तरह ट्रेन में चढ़ गई। गाड़ी खुलने के बाद लगातार कोशिश करती रही कि किसी तरह से मैं वॉशरूम जाऊं मगर भीड़ इतनी थी कि संभव ही नहीं था। मुझे उसी हालत में घर आना पड़ा और वहां मैं पैड बदल पाई।
मैंने इस यात्रा के दौरान यह महसूस किया कि हमारे देश में शायद ही कहीं पर पीरियड फ्रेंडली टॉयलेट्स हैं। यदि होती तो मुझे और मुझे जैसी ना जाने कितनी लड़कियों को हर रोज़ ऐसी परिस्थितियों से नहीं गुज़रना पड़ता। पीरियड फ्रेंडली टॉयलेट से कहीं ज़्यादा लोगों में असंवेदनशीलता भी दिखाई पड़ी। तभी तो उस महिला को यह बताने पर कि मुझे पैड चेंड करना है फिर भी उसने मुझे अंदर नहीं जाने दिया। यह भारत देश का दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है?