वायु प्रदूषण एक ऐसा महत्वपूर्ण और ज़रूरी मुद्दा है, जिसकी गंभीरता को सरकार और आम लोग अब तक नहीं समझ पाए हैं। मूवी चलने से पहले एक विज्ञापन दिखाया जाता है, जिसकी शुरुआत कुछ इस तरह होती है,
इस शहर को हुआ क्या, कहीं राख तो कहीं धुंआ।
हालांकि, यह विज्ञापन स्मोकिंग के खतरों की चेतावनी को लेकर है लेकिन अब यह ऐड दिल्ली के लिए बिलकुल सटीक बैठता है। शोध की मानें तो वायु प्रदूषण के दौरान दिल्ली में एक शख्स अमूमन एक दिन में 15-20 सिगरेट के बराबर धुंआ निगल जाता है। जब भी प्रदूषण की बात की जाती है तो दिल्ली हमेशा हेडलाइन में रहती है, जबकि इस समय दिल्ली से बदतर स्थिति गाज़ियाबाद, वाराणसी, लखनऊ, पटना और मुज़फ्फरपुर समेत कई शहरों की है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के बीते कुछ दिनों के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि पटना और मुज़फ्फरपुर देश के सबसे प्रदूषित शहर हैं।
प्रदूषण रोकथाम की दिशा में सरकार और नेताओं का ठंडा रवैया
भारत में वायु प्रदूषण से लड़ने की बात की जाए तो यहां केंद्र सरकार और राज्यों की सरकारों के बीच कोई तालमेल ही नहीं दिखता है। हमारे चुने हुए प्रतिनिधि वायु प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या के प्रति कितने सजग हैं, इसका पता दिल्ली में हुई संसदीय कमेटी की बैठक में हेमा मालिनी, गौतम गंभीर जैसे सांसदों, पर्यावरण मंत्रालय के संयुक्त सचिव और एमसीडी (MCD) के तीनों कमिश्नर, डीडीए (DDA) के वाइस चेयरमैन की गैर-मौजूदगी से पता चल जाता है। अब इस मसले पर तीसरी बैठक 5 दिसंबर को होगी।
दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को लेकर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था,
कोई घरों के अंदर भी सुरक्षित नहीं है, यह नृशंस है, दिल्ली की वर्तमान स्थिति तो इमरजेंसी से भी बदतर है। वह इमरजेंसी भी इस इमरजेंसी से बेहतर थी।
सुप्रीम कोर्ट ने इससे भी ज़्यादा तल्ख टिप्पणी करते हुए 25 नवंबर को केंद्र सरकार से कहा था,
लोगों को गैस चेंबर में रहने के लिए क्यों मजबूर किया जा रहा है? सभी को एक ही बार में मार देना बेहतर है। एक ही बार में 15 बैगों में विस्फोटक भरकर लाओ। लोग ये सब क्यों भुगते? दिल्ली ‘नर्क’ से भी बदतर है।
नेताओं की हवा में बातें
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बीते शुक्रवार को लोकसभा में कहा था,
बीजिंग को वायु प्रदूषण से निपटने में 15 साल लगे, दिल्ली में प्रदूषण घटाने के लिए हम इससे कम समय लेंगे।
मेरा सरकार के इन दावों पर बिलकुल भी विश्वास नहीं रह गया है, क्योंकि यह समस्या आज की नहीं बल्कि बहुत पुरानी है। मैं जब 2010 में दिल्ली आया था तब इस प्यारे शहर का आसमान इतना गन्दा नहीं था लेकिन आज स्थिति बद से बदतर होती जा रही है।
क्या प्रदूषण से लोगों की उम्र घट रही है?
क्या गंगा नदी के तटीय इलाकों में रहने वाले लोगों की उम्र 10-11 साल तक कम हो गई है? क्या स्मॉग में घुले ज़हर की वजह से फेफड़ों का रंग बदल रहा है? शिकागो विश्वविद्यालय की संस्था ‘एपिक’ (एनर्जी पॉलिसी इंस्टिट्यूट ऐट द यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो) द्वारा किए गए शोध इन बातों की पुष्टि करते हैं।
शोध में विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के आधार पर कहा गया है कि प्रदूषण के कारण दिल्ली के लोगों की औसत उम्र 10.2 साल, उत्तर प्रदेश के लोगों की उम्र 8.6 साल, हरियाणा के लोगों की उम्र 7.5 साल, बिहार के लोगों की 7 साल, पंजाब के लोगों की 5.7 साल और पश्चिम बंगाल के लोगों की औसत उम्र 3.8 साल घट गई है।
अगर इसे लेकर भारतीय मानकों की बात की जाए तो दिल्लीवासियों की उम्र 2.8 साल, उत्तर प्रदेश के लोगों की उम्र 2.4 साल, हरियाणावासियों की उम्र 2.1 साल, बिहार के लोगों की उम्र 2 साल, पंजाब के लोगों की उम्र 1.7 साल और पश्चिम बंगालवासियों की उम्र 1.2 साल घट गई है।
शोध के अनुसार, वायु प्रदूषण के चलते वाराणसी में रह रहे लोगों की औसत आयु करीब 7.55 वर्ष, लखनऊवासियों की औसत आयु 9.45 वर्ष व मेरठ के लोगों की औसत आयु 10.37 वर्ष कम हुई है।
1998-2016 के बीच गंगा के मैदानी इलाकों में वायु प्रदूषण 72% तक बढ़ा है। अगर गंगा तट के कुल राज्यों की बात की जाए, तो वहां लोगों की औसत उम्र 7 साल घट गई है।
शोध में यह भी बताया गया है कि वायु प्रदूषण के कारण वैश्विक स्तर पर औसत आयु तकरीबन 2 साल घट गई है और यह मानव जाति के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है।
दुनिया में वायु प्रदूषण से सबसे ज़्यादा प्रभावित चीन और भारत हैं
बतौर शोध, अगर अन्य कारणों से औसत आयु घटने की बात की जाए तब भी वायु प्रदूषण सबसे पहले स्थान पर आएगा। एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर स्मोकिंग के कारण इंसान की औसत आयु 1.6 साल, शराब और ड्रग के कारण 11 महीने, खराब पानी व स्वच्छ शौचालय ना होने के कारण 7 महीने, सड़क दुर्घटनाओं के कारण 4.5 साल, मलेरिया के कारण इंसान की औसत आयु 4 महीने घट गई है।
ऊपर दिए गए आंकड़ें हमारे सामने एक भयावह तस्वीर पेश कर रहे हैं और इस बात की ओर भी स्पष्ट इशारा कर रहे हैं कि हम वायु प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या को हल्के में ले रहे हैं। सरकार से मेरा बस यही सवाल है कि वायु प्रदूषण जैसे गंभीर संकट को लेकर आपातकालीन कदम क्यों नहीं उठाए जा रहे हैं?
क्यों प्रदूषण जैसे संवेदनशील मुद्दे पर राज्य सरकार और केंद्र सरकार राजनीति कर रही हैं? इतने वर्षों के बाद भी प्रदूषण को कम करने के लिए सरकारें एकमत नहीं हो पाई हैं। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2019 के मुताबिक,
भारत में 2017 में वायु प्रदूषण के कारण 12 लाख लोगों की मौत हुई और यह मौत का तीसरा सबसे बड़ा कारण बन चुका है।
वायु प्रदूषण से भारत में कई लोग मर रहे हैं तो ऐसे में सरकार को हत्यारा क्यों नहीं माना जाए? क्यों ना उन पर हत्या का मुकदमा चलाया जाए?