‘वैज्ञानिक जी’ के नाम से मशहूर बिहार के महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का आज निधन हो गया है। वह अपने परिजनों के साथ पटना के कुल्हरिया कॉम्प्लेक्स में रहते थे। खराब सेहत से जूझ रहे वशिष्ठ नारायण सिंह पिछले काफी वक्त से पीएमसीएच में एडमिट थे।
कल रात से ही उनकी स्थिति काफी गंभीर हो गई थी जिसके बाद आज सुबह डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। हिन्दुस्तान टाइम्स के कार्टूनिस्ट पवन ने हमें बताया कि पीएमसीएच में उन्हें मृत घोषित करने के बाद उनके पार्थिव शरीर को बाहर निकाल दिया गया जिसके बाद घंटों तक अस्पताल प्रशासन द्वारा उन्हें एंबुलेंस उपलब्ध नहीं कराया गया।
पवन ने वशिष्ठ नारायण सिंह के साथ अपनी यादों को साझा करते हुए बताया कि पिछले काफी वक्त से वह अपने हाथ में अखबार, बांसुरी और गीता रखते थे। एक रोज़ अखबार में प्रकाशित पवन के कार्टून पर उनकी नज़र पड़ी तब उन्होंने पूछा, “ई कौन बनावेला?”
बकौल पवन,
फिर लोगों ने उन्हें मेरे बारे में बताया। इसके बाद किसी ने मुझे फोन कर कहा कि वशिष्ठ बाबू अखबार में प्रकाशित मेरे कार्टून के बारे में पूछ रहे थे। यह बात सुनकर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। उन्होंने मिलने की इच्छा जताई फिर हमलोग पटना में मिले।
पवन बताते हैं कि मैंने एक किताब में उन पर एक आर्टिकल लिखा था कि ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्ति के बारे में हमारे राजनीतिज्ञ क्या सोचते हैं? वशिष्ठ बाबू को उस किताब से ऐसा लगाव हुआ कि काफी दिनों तक उन्होंने अपने साथ उस किताब को रखा। मेरी कई दफा उनसे और उनकी माताजी से मुलाकात हुई थी। पटना में भी उनके जन्मदिन के मौके पर कई दफा उनसे मुलाकात हुई है।
पवन कहते हैं, “जब वह पीएमसीएच में एडमिट हुए थे तब भी मैं उनसे मिलने गया था। उनके भाई साहब ने पूछा कि क्या वह मुझे पहचानते हैं? इस पर वशिष्ठ बाबू उस अखबार को देखते रहे जिसमें उनकी कार्टून प्रकाशित हुई थी।”
पवन के मुताबिक एक कार्यक्रम के दौरान डीएम ने कई दफा जब आंइस्टीन का नाम लिया तो वह काफी भड़क गए और डीएम को बीच में ही अपनी बात खत्म करनी पड़ी। वह नहीं चाहते थे कि बार-बार आंइस्टीन के संदर्भ में उनका नाम लिया जाए।
वरिष्ठ पत्रकार पुष्यमित्र ने कहा, “वशिष्ठ बाबू का अगर ठीक से इलाज होता तो आज इस हालत में उनकी मृत्यु नहीं होती। 1989 में अचानक वह गायब हो गए। साल 1993 में वह बेहद दिनहीन हालत में डोरीगंज, सारण में पाए गए। इसके बाद भी सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिली। उनके भाई ने ही उनका इलाज कराया। मौत के बाद भी सरकार ने उनकी अहमियत नहीं समझी। यह एक उदाहरण है कि हमलोग अपनी प्रतिभाओं का सम्मान करना नहीं जानते हैं।”
गौरतलब है कि वशिष्ठ नारायण सिंह ने आंइस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती दी थी। उनके बारे में एक और किस्सा मशहूर है, वो यह कि नासा में अपोलो की लॉन्चिंग से पहले जब 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए थे, तब कंप्यूटर ठीक होने पर उनका और कंप्यूटर्स का कैलकुलेशन एक था।
यहां तक कि पटना साइंस कॉलेज में गलत पढ़ाने पर वह अपने शिक्षक को टोक देते थे। इस बात की भनक जब कॉलेज के प्रधानाध्यापक को लगी तब उनकी अलग से एग्ज़ाम ली गई जिसमें उन्होंने सारे रिकॉर्ड्स को तोड़ दिया।
पटना साइंस कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही कैलिफॉर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन कैली की नज़र उन पर पड़ी जिसके बाद कैली ने 1965 में उन्हें अमरीका चले गए।
वशिष्ठ नारायण सिंह ने साल 1969 में कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की उपाधि ली। इसके बाद वह वॉशिंगटन विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर बने। उन्होंने नासा में भी काम किया लेकिन वहां उनका मन नहीं लगा और 1971 वह वापस अपने वतन हिन्दुस्तान लौट आए।
आईआईटी कानपुर, आईआईटी मुंबई और आईएसआई कोलकाता में भी उन्होंने नौकरी की। साल 1973 में वंदना रानी सिंह से उनकी शादी हो गई। उनकी भाभी प्रभावती के मुताबिक वह छोटी-छोटी बातों पर बहुत गुस्सा हो जाते थे और कमरा बंद करके दिन भर पढ़ते रहते थे। रात भर जागना उनकी आदतों में शुमार था।
वशिष्ठ नारायण सिंह के असमान्य व्यवहार की वजह से उनकी पत्नी परेशान हो गईं और उन्होंने जल्द तलाक ले लिया। साल 1974 में उन्हें पहला दौरा पड़ा, जिसके बाद उनका इलाज शुरू हुआ। 1976 में बेहतर इलाज के लिए उन्हें रांची में भर्ती कराया गया।
बड़ा सवाल यह है कि वशिष्ठ नारायण सिंह की उपेक्षा ना सिर्फ उनके जीवनकाल में हुई, बल्कि अंतिम सांस लेने के बाद भी जिस तरीके से घंटों उनके शव को बाहर रखा गया यह वाकई शर्मनाक है।