देशभर में अपनी अकादमिक प्रतिष्ठा का लोहा मनवाने वाला और दुनियाभर में अपने प्रगतिशील विचारों के लिए मशहूर विश्वविद्यालय जेएनयू के छात्र-छात्राएं अपने अधिकारों की लड़ाई के लिए एक बार फिर सड़कों पर उतरे हुए हैं। जेएनयू के स्टूडेंट्स और टीचर्स कैंपस से लेकर देश और दुनिया के किसी भी कोने में होने वाले अन्याय के खिलाफ बेबाकी से अपनी राय रखने और खुलकर विरोध करने के लिए जाने जाते हैं।
स्टूडेंट विरोधी हॉस्टल मैनुअल
हाल ही में जेएनयू प्रशासन के इंटर-हॉल ऐडमिनिस्ट्रेशन द्वारा ड्राफ्ट हॉस्टल मैनुअल पास किया गया। यह हॉस्टल मैनुअल साफतौर पर ब्राह्मणवाद, पितृसत्ता और गैर बराबरी को इंस्टिट्यूशन्लाइज़ करता है। इस हॉस्टल मैनुअल के ज़रिये हॉस्टल फीस में 300% तक की बढ़ोतरी का प्रस्ताव रखा गया है।
- सिंगल सीटर कमरे का किराया 20 रुपए प्रति माह से बढ़ाकर 600 रुपए प्रति माह और डबल सीटर कमरे का किराया 10 रुपए प्रति माह से बढ़ाकर 300 रुपए प्रति माह करने की बात की गई है।
- साथ ही हॉस्टल सिक्योरटी डिपोज़िट अमाउंट को 6000 रुपए से दोगुना कर 12000 रुपए करने का प्रस्ताव रखा गया है।
- इसी मैनुअल के अनुसार स्टूडेंट्स को अपने द्वारा उपयोग की जाने वाली बिजली और पानी का खर्च भी स्वयं वहन करना होगा।
फीस बढ़ोतरी के अलावा यह मैनुअल हॉस्टल में कर्फ्यू टाइमिंग की भी बात करता है-
- सभी स्टूडेंट्स को रात 11 बजे तक हॉस्टल में वापस आना होगा।
- इसी मैनुअल में यह भी कहा गया है कि स्टूडेंट्स को मेस में जाते समय ‘ठीक तरह से कपड़े’ पहनने होंगे।
इससे दुर्भाग्यपूर्ण क्या होगा कि एक पब्लिक फंडेड यूनिवर्सिटी, जहां गैरबराबरी के खिलाफ बोलना और लिखना सिखाया जाता है, वहां मोरल पुलिसिंग और महिला विरोधी सोच को इस मैनुअल के ज़रिये इंस्टिट्यूशन्लाइज़ किया जा रहा है।
पंद्रह दिनों से अपनी पढ़ाई और रिसर्च के काम को ताक पर रखकर संघर्ष कर रहे स्टूडेंट्स की नाराज़गी जितनी इस हॉस्टल मैनुअल के डिस्क्रिमिनेटरी प्रोविज़न्स से है, उतनी ही इस बात से भी है कि इंटर हॉल ऐडमिनिस्ट्रेशन ने अपनी मीटिंग में बिना छात्रसंघ प्रतिनिधियों और हॉस्टल प्रेसिडेंट्स के, गैरकानूनी तरीके से इस मैनुअल को लाया गया है।
अगर यह हॉस्टल मैनुअल पास होकर लागू कर दिया जाता है, तो जेएनयू में अध्ययनरत तकरीबन चालीस प्रतिशत स्टूडेंट्स कैंपस छोड़ने पर मजबूर हो जायेंगे।
कल जब जेएनयू अपना तीसरा दीक्षांत समारोह आयोजित कर रहा था, तब समारोह के अतिथि उपराष्ट्रपति वेंकेया नायडू और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सामने हज़ारों की संख्या में स्टूडेंट्स अपना विरोध जाता रहे थे। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार यह सब अपने नागरिकों तक हर हालत में पहुंचाना सरकार की ज़िम्मेदारी है लेकिन इसके विपरीत शिक्षा को एक कमोडिटी बनाकर सरकार द्वारा बाज़ार में बेचा जा रहा है।
लगातार शिक्षा के बजट में कटौती की जा रही है, सरकार द्वारा यूनिवर्सिटीज़ को मिलने वाले ग्रांट्स को लोन्स में तब्दील कर दिया गया है। विश्वविद्यालयों को पैसा कमाने की फैक्ट्रियों में तब्दील कर दिया गया है। ऐसे में समाज के हाशिये पर बसने वाले तबकों-गरीब, दलित, पिछड़े, आदिवासी और महिलाओं के लिए शिक्षा एक दूर की कौड़ी बनती जा रही है।
जेएनयू शायद देश का इकलौता ऐसा विश्वविद्यालय है, जहां आज भी 283 रुपए में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जाती है, इसलिए समाज के हाशिये से उठकर आने वाले स्टूडेंट्स के लिए इस विश्वविद्यालय के दरवाज़े हमेशा खुले रहे हैं।
आज शिक्षा के निजीकरण के दौर में इसी 283 मॉडल पर सीधा हमला किया जा रहा है। यह ड्राफ्ट हॉस्टल मैनुअल और फीस की 300% की बढ़ोतरी, शिक्षा को जनसामान्य के अधिकार से अमीरों, पूंजीपतियों और कॉरपोरेट के विशेषाधिकार के रूप में स्थापित करने की बड़ी साज़िश का हिस्सा है।
देशभर में ज़रूरी है अफोर्डेबल एजुकेश की लड़ाई
अफोर्डेबल एजुकेशन की लड़ाई किसी एक यूनिवर्सिटी मात्र की लड़ाई नहीं है। आज नहीं तो कल शिक्षा के निजीकरण का दंश सभी संस्थानों में पढ़ रहे स्टूडेंट्स को झेलना पड़ेगा। जेएनयू ने इसके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। ज़रूरी है कि बाकी कॉलेज और विश्वविद्यालय भी इस मुहीम में अपनी भूमिका अदा करें और राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा को बचाने के लिए एक साझी बड़ी लड़ाई खड़ी की जाए।
संघर्षरत जेएनयू स्टूडेंट्स पर दिल्ली पुलिस द्वारा जमकार लाठियां भांजी गईं लेकिन शायद यह लाठी स्टूडेंट्स के हौसलों के आगे कमज़ोर पड़ गईं। मीडिया ने जमकर जेएनयू स्टूडेंट्स के खिलाफ झूठ और फरेब फैलाने की कोशिश की लेकिन यह कहना मुश्किल है कि इस तरह के प्रयास जेएनयू की हिम्मत को तोड़ सकते हैं। यह संघर्ष जारी रहेगा तब तक, जब तक यह ड्राफ्ट हॉस्टल मैनुअल वापस नहीं ले लिया जाता है और स्टूडेंट्स अपने अफोर्डेबल एंड क्वालिटी एजुकेशन के अधिकार को फिर एक बार छीनकर वापस नहीं ले लेते हैं।