Site icon Youth Ki Awaaz

क्या 2030 तक भारत की 40% जनता के पास पीने का नहीं होगा?

भारत में जल संकट एक विकराल समस्या है और यहां जल की उपलब्धता बहुत असामान्य है। मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों के अनुसार, देश में 1994 के बाद से 2019 के मौनसून में सर्वाधिक बारिश दर्ज की गई है, जो सामान्य से 10% अधिक है।

अकेले मुंबई में साल 2019 में 3,669.6 मिलीमीटर बारिश हुई है, जो पिछले 61 वर्षों में सबसे ज़्यादा है। अगर इस मामले में उत्तर भारतीय राज्यों के आंकड़ें देखे जाएं, तो काफी चौंकाने वाली बात सामने आती है।

फोटो प्रतीकात्मक है। फोटो सोर्स- flickr

मौसम विभाग के मुताबिक,

हालांकि, दक्षिण भारतीय और मध्य भारतीय राज्यों की बात करें तो यहां सामान्य से काफी अधिक बरसात हुई है।

घटता जाएगा ग्राउंड वॉटर का स्तर

स्वच्छ जल के लिए लोगों की निर्भरता वर्षा और भूमिगत जल पर ही है और जैसे-जैसे गर्मी बढ़ेगी या समरसिबल पंप से जितना अधिक भूजल का दोहन करेंगे, वैसे-वैसे भूजल या ग्राउंड वॉटर का स्तर भी घटता चला जाएगा। डाउन टू अर्थ मैगज़ीन में छपे आर्टिकल के मुताबिक,

करीब 1.91 लाख लोग जितना पानी (2131 अरब घन मीटर) सालभर में पीते हैं, उतना ही पानी इस वक्त भाप बनकर उड़ रहा है।

बीते कुछ दशकों में हुए जलवायु परिवर्तन की बात करें तो पानी के वाष्प बनकर उड़ने की प्रक्रिया में बढ़ोतरी हुई है, जो सालभर की बारिश के पानी के 50% से भी अधिक है।

फोटो प्रतीकात्मक है। फोटो सोर्स- Getty

20 जुलाई, 2017 को सरकार द्वारा जारी नैशनल कमीशन ऑन इंटीग्रटेड वॉटर रिसोर्स डेवलपमेंट (एनसीआईडब्लयूआरडी) रिपोर्ट के मुताबिक,

बारिश से हासिल होने वाले 4000 अरब घन मीटर सालाना पानी में करीब 2131 अरब घन मीटर पानी भाप बन जाता है, जबकि बचे हुए 1869 अरब घन मीटर पानी मेंं 1123 अरब घन मीटर पानी भूमि जल व पेयजल के रूप में हमारे लिए बचता है।

वहीं, सरकार ने 2018 में नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में एक हलफनामा दाखिल किया था जिसके मुताबिक,

देश में 2009 में जहां 2700 अरब घन मीटर भूमिगत जल था, यह अब 411 अरब घन मीटर ही रह गया है। ये सभी आंकड़ें एक खतरनाक स्थिति की तरफ इशारा कर रहे हैं।

पुणे के बीएआईएफ डेवलपमेंट रिसर्च फाउंडेशन एनजी हेगड़े के रिसर्च पेपर वॉटर स्कारसिटी ऐंड सिक्योरिटी में बताया गया है कि साल 1951 में 3.61 करोड़ की आबादी पर सालाना प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 5,177,000 लीटर थी, जो 2001 में 102.7 करोड़ की आबादी पर 1,820,000 लीटर ही रह गई।

सरकार ने भी अनुमान में बताया है कि साल 2025 तक 139.4 करोड़ की जनसंख्या पर सालाना प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1,341,000 लीटर ही रह जाएगी।

फोटो प्रतीकात्मक है।

अगर ये आंकड़ें ठीक साबित होते हैं तो वैश्विक मानकों के हिसाब से भारत गंभीर जल संकट वाले देशों की सूची में शामिल हो जाएगा। वैश्विक मानक कहते हैं कि ऐसे देश जहां सालाना प्रति व्यक्ति पेयजल की उपलब्धता 1,700,000 घन मीटर है, उन्हें जल संकट वाला देश कहा जाएगा।

सरकारी थिंक टैंक नीति आयोग द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2020 तक दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद समेत 21 भारतीय शहरों से भूजल खत्म हो जाएगा और इससे करीब 10 करोड़ लोग प्रभावित होंगे। नीति आयोग ने इसके समाधान के लिए तुरंत कदम उठाने की ज़रूरत बताई है।

नीति आयोग के अनुसार,

अगर यही हालात रहें तो 2030 तक भारत की 40% जनता के पास पेयजल की पहुंच नहीं होगी। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में भी यही चिंता जताई गई है।

गायब होता सतह का जल और भूमिगत जल का संकट हमारी आने वाली पीढ़ियों के अस्तित्व पर खतरा पैदा कर सकता है। क्या हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को एक ऐसा देश या शहर देना चाहते हैं, जहां उनके मूलभूत अधिकार पानी की उपलब्धता से उन्हें वंचित रखा जाए।

Exit mobile version