हमारा भारतीय समाज हमेशा से ही बहु-सांस्कृतिक रहा है। यह ना सिर्फ हर धर्म, मत, सम्प्रदाय, संस्कृति और खानपान का सम्मान करने वाला देश है बल्कि अलग-अलद लिंग का भी सम्मान करने वाला देश रहा है। यहां उनका भी सम्मान रहा है जिन्हें हम आज की भाषा में LGBTQ+ कहते हैं। मतलब लेस्बियन, गे, बाय-सेक्शुअल और ट्रांसजेंडर।
हमारा इतिहास तक इनके बारे में कई बातें विस्तार से बताता है। चाहे वह महाभारत में शिखण्डी का ज़िक्र हो या बहुचरा माता का या बात हो भगवान शिव के अर्द्ध-नारेश्वर रूप की। यहां तक कि अर्जुन के बेटे इरावन की मृत्यु का दुख सबसे ज़्यादा भारत के ट्रांस हैजेंडर समाज में ही मनाया जाता है। यही वे लोग हैं जिन्हें हर खुशी के मौके पर बुलाया जाता है ताकि सब शुभ हो।
भारत में महत्वपूर्ण क्रांति थी सेक्शन 377 का हटना
भारतीय दंड संहिता की धारा 377 साल 1861 में भारत के ब्रिटिश शासन के दौरान शुरू की गई थी। 1533 के बगरी एक्ट पर आधारित यह धारा मर्द और औरत के संबंध को छोड़ किसी भी और किस्म की यौन गतिविधियों को “प्रकृति के आदेश के खिलाफ” अर्थात अप्राकृतिक संबंध मानते हुए अवैध बनाता है और साथ में सज़ा का प्रावधान भी रखता है।
पिछले साल ही भारत की न्याय व्यवस्था के सबसे बड़े स्तंभ सुप्रीम कोर्ट में नवतेज सिंह जोहर बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के केस पर फैसला हुआ था। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और सहयोगी जज धनंजय वाई चंद्रचूड़, अजय माणिकराव खानविलकर, इंदु मल्होत्रा और रोहिंटन फली नरीमन को यह तय करना था कि क्या अंग्रेज़ो के ज़माने में बनाया गया कानून भारत के संविधान में कोई जगह रखता है या नहीं?
याचिकाकर्ताओं की याचिका पर चार दिनों तक सुनवाई करने के बाद, अदालत ने 17 जुलाई 2018 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। पीठ ने अपना फैसला 6 सितंबर 2018 को सुनाया। फैसले की घोषणा करते हुए, अदालत ने धारा 377 को बहाल करने के अपने स्वयं के 2013 के फैसले को पलटते हुए कहा,
आईपीसी की धारा का उपयोग करके समलैंगिकों के साथ हिंसा या अत्याचार करना असंवैधानिक था।
इस फैसले के बाद हमारे देश के उन लोगों ने खुशियां मनाई, जो अपने ही लिंग के व्यक्ति से प्रेम करते हैं। जैसे मर्द-मर्द से या औरत-औरत से।
हम सब जानते है कि भारत के संविधान का अनुछेद 21 जीने का अधिकार देता है। जिसमें इंसान को अपनी मर्ज़ी से जीवन जीने का अधिकार है। इसमें वह किससे प्रेम करे या विवाह करे वह भी शामिल है।
कोई भी कानून को मानने वाला कभी भी ऐसे 377 वाले कानून का समर्थन नहीं कर सकता है। मुझे खुद हैरानी होती है कि भारत जैसे एक लोकतांत्रिक और संवैधानिक देश में ऐसा कानून 71 साल तक कैसे रहा? इसको तो संविधान में जगह मिलना ही अपने आप में मैं संविधान की बेइज़्ज़ती मानता हूं।
भारत मे काई मशहूर लोग LGBTQ है
मैं आज ऐसे दो आदमियों का ज़िक्र करूंगा जो होमोसेक्शुअल हैं और मैं उनका फैन हूं। एक है मशहूर लेखक और माईथोलॉजिस्ट डॉ देवदत्त पटनायक।
कुछ साल पहले पेशे से एक डॉक्टर रहे डॉ पटनायक आज तक हिन्दू धर्म ग्रंथो पर 55 किताबें और 1000 से ज़्यादा लेख लिख चुके हैं। जिनमें सीता, जय महाभारत आदि हैं। यहां तक कि डॉ पटनायक ने हनुमान चालीसा पर भी एक बड़ी किताब लिख दी है। अभी इसी साल उनकी एक और किताब आई जिसका नाम है “अमीर कैसे बनें”। यह किताब वेदिक ग्रंथो में पैसे को बचाने और धनवान बनने के तरीकों पर आधारित है।
मैंने खुद उनकी लिखी कुछ किताबें पढ़ी हैं। फेसबुक पर रोज़ उनके रेडियो मिर्ची पेज पर जब वे धार्मिक कहानियां सुनाते हैं, तो उन्हें मैं सुनता हूं। उनके लेख पड़ता हूं, यह जानते हुए कि वे एक गे हैं लेकिन क्या इस बात से कोई फर्क पड़ना चाहिए? कहते हैं इंसान की जो काबिलियत है वह इससे नहीं नापी जा सकती।
किताबों के साथ मुझे और बाकी हिन्दुस्तानियों को फिल्में देखने का बहुत शौक है और जब बात फिल्मों की हो रही हो और करण जौहर का नाम ना आये ऐसा कभी हुआ है? कभी खुशी कभी गम, ऐ दिल है मुश्किल, स्टूडेंट ऑफ दी ईयर और कलंक जैसी और कितनी मूवीज़ हैं जो मैंने देखी है।
इन सब को कामयाब बनाने का जितना श्रेय इन फिल्मों के एक्टर्स को जाता है, उतना ही करण जौहर को भी जाता है। जिन्होंने अपनी फिल्मों के ज़रिए फिल्मी पर्दे पर रोमांस और परिवार के प्रेम को एक नई दिशा दी।
आधे से ज़्यादा भारत करण जौहर द्वारा निर्मित इन फिल्मों को देख चुका है और उसकी कला का कदरदान है। हालांकि करण साहब ने यह खुलकर कभी नहीं कहा कि वे एक गे हैं। पर एक बार अपनी बायोग्राफी अनसूटेबल बॉय की ओपनिंग में अपने गे होने का हिंट दिया था।
जब उन्होंने ये कहा था,
अगर मैं इस वक्त अपने देश में अपनी सेक्शुअल ओरिएंटेशन के बारे में बात करूंगा तो जेल में जाऊंगा
ये बयान उनका बयान धारा 377 हटने से पहले आया था। हालांकि आज भी उन्होंने खुलकर अपनी सेक्शुअल ओरियंटेशन पर बात नहीं की है।
अंत में यही कहूंगा कि दुनिया का हर धर्म हम इंसानों को उस परम पिता भगवान की ही औलाद मानता है और इसमें LGBTQ वाले भी आते हैं। तो ये लोग भी है हमारे जैसे इंसान ही हैं तो क्यों ना हो इनका सम्मान।