कभी ‘दिलवालों की दिल्ली’ कही जाने वाली दिल्ली अब सबसे प्रदूषित शहर के नाम से मशहूर हो गई है। अब तो दिल्ली के हालात और भी ख़राब हो चुके हैं। दिल्ली की हर एक गल्ली, सड़क और चौराहों पर धुआं-धुआं है, यहां सांस लेना मुश्किल हो गया है।
स्कूल बंद है इसका मतलब यह है कि प्रदूषण ने अपनी सारी सीमाएं लांघ दी हैंऔर ये हमारे देश की राजधानी के हालात है जहां राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट, नेशनल मीडिया और देश को चलाने वाले प्रमुख संस्थान और लोग रहते हैं (सॉरी पावरफुल और VIP लोग रहते हैं)।
मैं अभी तीन दिन के लिए दिल्ली गया था (1 से 3 नवम्बर), जैसे ही वहां मेरी लैंडिंग हुई, दिल्ली के प्रदूषण ने मेरा स्वागत किया। मैं तीन दिन तक दिल्ली में था और मुझे लग रहा था कि मै कब यहां से जल्द से जल्द निकल जाऊं। हालात इतने बुरे थे कि लग रहा था कि यार लोग यहां पर कैसे रह रहे हैं। इंडिया गेट, राष्ट्रपति भवन, धुंधला दिखने लगा था (लगा था VIP इलाकों में सिक्योरिटी गार्ड ने प्रदूषण को रोका होगा पर अफसोस वे चाहकर भी ऐसा नहीं कर सके )
कुछ फॉरेन टूरिस्ट मास्क लगा कर फोन पर बात करते हुए दिखे। लग रहा था कि वे हमपर हंस रहे हैं और उनके लोगों को बोल रहे हैं कि दिल्ली में हमने आकर गलती की है इसलिए आप मत आना। जो हम दिल्ली में देखने आये थे वह धुंधला दिख रहा है और तस्वीर भी ठीक से नहीं ले पा रहे हैं (जो देखने आये थे वो धुंधला और सही से ना दिखने के बावजूद भी इन्हें कोई डिस्काउंट नहीं मिला। रिफंड तो बहुत दूर की बात)
सही और लॉन्ग टर्म सोच की कमी
देश की राजधानी के स्कूल प्रदूषण के कारण बंद रखे गए। इससे यह तो पता चला कि दिल्ली सरकार को यह अहसास है कि बच्चों के लिए ये हवा हानिकारक है। पर स्कूल बंद करके बच्चों के बारे में आप सोचते हैं, यह दिलासा आप खुद को दे सकते हो पर तसल्ली नहीं दे सकते। आपको भी पता है कि प्रदूषण को लेकर जो पर्याप्त कदम दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार को मिलकर लेने चाहिए थे, वो तो आपने लिए नहीं है और अब स्कूल बंद करके बच्चों के प्रति संवेदनशीलता दिखा रहे हैं।
एक दूसरे को कोसने की बजाय अगर आपने सही और लॉन्ग टर्म की सोच के साथ कदम उठाते तो आज के ये हालात नहीं बनते। अगर हम बच्चों को और लोगों को शुद्ध हवा नहीं दे सकते तो ‘विकास’ की बात करना फिज़ूल है।
शायद नेशनल मीडिया को लग रहा होगा कि हिन्दू-मुस्लिम डिबेट की जगह दिल्ली प्रदूषण के ऊपर बात करते तो ज़्यादा अच्छा होता।
मैं अभी दिल्ली में एक बड़े मीडिया हाउस के इवेंट में गया था वहां पर भी दबे स्वर में दिल्ली के प्रदूषण की बात हो रही थी। उसमें भी येह इवेंट ओपन स्पेस में था, तो सबको प्रदूषण का अहसास हो रहा था। इस मीडिया हाउस के साथ-साथ अन्य मीडिया हाउसेज़ को भी लग रहा होगा कि हमने प्रदूषण को लेकर सही और तीखे सवाल पूछे होते, ‘प्राइम टाइम’ में प्रदुषण के ऊपर ‘हल्ला बोल’ करके सरकार और प्रशासन के साथ ‘सीधी बात’ करते हुए ‘दंगल’ करते, तो आज प्रदूषण की ‘बड़ी खबर’ नहीं बनती।
ज़िम्मेदार कौन?
सब ज़िम्मेदार हैं चुपचाप सहने वाले दिल्ली के लोग, पर्याप्त कदम और स्थायी इलाज ना लेने वाली राज्य और केंद्र सरकार। सही सवाल ना पूछने वाला मीडिया और दूर से देखकर मज़ा लेने वाली पंजाब और हरियाणा सरकार, बिल्डर्स, सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर्स को सही से इम्प्लीमेंट ना करने वाले अधिकारी और एक घर में तीन चार गाड़ियां रखने वाले लोग।
आपने जनहित याचिका के बारे में सुना होगा जो हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में डाली जाती है। पर यह पेटिशन तो खुद पर्यावरण ने डाली है मानव’ के खिलाफ। जिसकी सज़ा प्रकृति के सबसे बड़े कोर्ट में सबको मिलेगी और आने वाली जनरेशन को बिना गलती किये भुगतनी पड़ेगी।
प्रधानमंत्री जी से निवेदन
हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी ने क्लाइमेट चेंज का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में उठाया पर हमारी राजधानी के आज के जो हालात हैं, इससे दुनिया में गलत सन्देश जा रहा है (आप समझ गए होंगे कि मैं क्या कहना चाहता हूं)।
यह तो हुई देश की राजधानी की बात और देश की आर्थिक राजधानी कही जाने वाली मुंबई में ‘आरे’ में रात में किया गया पेड़ों का कत्ल-ए-आम भी हमारी दुनिया में छवि खराब कर सकता है।
उम्मीद है कि आप (केंद्र सरकार) और ‘आप’ सरकार मिलकर दिल्ली को प्रदूषण मुक्त शहर बनाएंगे। तब हम सब मिलके कहेंगे कि ‘मोदी है तो मुमकिन है’ और फडणवीसजी को (उम्मीद है फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे पर पता नहीं) मुंबई के ‘आरे’ के पेड़ों का रात में किये गए कत्ल-ए-आम के बारे में कुछ सवाल पूछ लेंगे।
केजरीवाल जी का हमेशा खुद को ‘बेचारा’ साबित करना
हमेशा किसी भी चीज़ का ठीकरा दूसरों पर डालने से बात नहीं बनती है। प्रदूषण से निपटने के लिए आपने कौनसे कदम उठाए हैं (ओड-इवन को छोड़ के) जो स्थायी समाधान दे सकते हैं? और अगर उठाए हैं तो बताएं कि मौजूदा हालात क्यों नहीं सुधरे?
आपके मंत्री जो बोल रहे हैं कि प्रदूषण के ऊपर बुलाई गयी मीटिंग में केंद्र सरकार ने सहयोग नहीं किया तो आपने धरना क्यों नहीं दिया और रास्ते पर क्यों नहीं उतरे? कारण देना और राजनीति करना इससे ऊपर उठ कर दिल्ली के बारे में सोच लें, हमेशा ‘बेचारे’ ना बने।
एक सर्वे के अनुसार 40% लोग दिल्ली को छोड़ना चाहते हैं
अभी एक सर्वे के अनुसार यह बात सामने आई की 40 प्रतिशत लोग दिल्ली को छोड़ना चाहते हैं और मौजूदा हालात को देखते हुए उनका ऐसा कहना गलत नहीं है।
ऐसा लोग सोच रहे हैं ये बहुत गंभीर बात है, पर यही लोग, लगभग आधी आबादी पहले सरकार और प्रशासन को कड़े और तीखे सवाल पूछ लें,रास्ते पर निकले, खुद भी प्रदूषण को कम करने के लिए प्रयास करें तो जिस शहर को छोड़ना चाहते हैं उसको रहने लायक बना सकते हैं।
हम यानी कि पूरे भारत के लोगों को यह उम्मीद है कि हमारी राजधानी दिल्ली ‘दिल वालों की दिल्ली’ नाम से ही जानी जाए ना की ‘सबसे प्रदूषित’ शहर कहलाए।