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एक बेटी का ईश्वर को पत्र जिसमे उसने अपनी पीड़ा को वर्णित किया

आपने मुझे इस संसार मे भेजा उसके लिए मैं आपका कितना भी गुणगान करूं कम है। आपने इस संसार को सर्वश्रेष्ठ दिया है, आपकी बनाई हर कलाकृति अद्भुत है। चाहे वे पेड़-पौधे हो अथवा जानवर ! हाँ , जानवर से याद आया ईश्वर आपसे रूप गढते समय एक चूक हो गयी । आपने कुछ पुरूषों मे भी भूलवश जानवरों के गुण समाहित कर दिये , जानते है यह गलती आपने जान बूझकर नही की होगी , वेशक आप जब रूप गढ रहे होगे तो आपको किसी ने जरूर आवाज दे दी होगी जिससे आपका मन भटक गया होगा जिस कारण चूक हो गयी ।

और जिस कारण इनका जन्म पुरूष के रूप मे इस पृथ्वी पर हुआ , आपने भी सोचा होगा हो सकता है समाज मे अच्छे लोगों के बीच रहे तो शायद इनकी सोच जानवर प्रवृत्ति से कुछ हद तक बाहर आ जाये पर ईश्वर इन जानवरों ने तो आपको भी गलत सिद्ध कर दिया । हे ईश्वर! जब आप इनके सम्मुख हार गये तो हम तो ठहरे उपभोग की वस्तु हमारा क्या स्तर जो हम इनका सामना करे ।

ईश्वर, आप भी कलयुग मे स्त्री बनकर एक बार आइये और देखिये , इन पुरूषों मे कामोत्तेजना बहुत चरम पर है । पता है प्रभु, ये लोग इतने गिरे हुये और बाहियात सोच के है बताया नही जा सकता । ईश्वर, ये जाहिल पुरूष हमारे शरीर के हिस्से को देखकर इतना उत्तेजित हो जाते है कि इनको खुद पर नियंत्रण नही रहता । हम अगर घुटने तक पहनते है तो इनकी कामुकता इतनी बढ जाती है कि इन जालिमों की आँखों से हवस की सुनामी आती दिखाई देती है । हद तो तब होती है ईश्वर , जब ये लोग 6 साल की बच्ची को देखकर भी अपनी हवस को हवा देते है और उस बच्ची की हंसती खेलती दुनिया जो कि गुड़ियों मे उलझी रहती थी उसको नोच कर खा लेते है । ईश्वर , एक सवाल है क्या उस बच्ची से इनकी प्यास मिटी होगी ?? मै बताती हूँ, इन जाहिल जानवरों की प्यास न मिटी होगी इसलिये तो इन्होने अगला शिकार तलाशना शुरू किया है ।।

पता है ईश्वर, यहाँ लोग कहते है कि लड़कियाँ छोटे कपड़े पहनेगी तो यह तो होगा ही । ईश्वर एक बात बताओ जब आपने जन्म दिया था तब कपड़े पहनाकर दिया था या बिना कपड़े भेज दिया था हमें ? जानते है ईश्वर आपने बिना कपड़े भेजा था हमने तो यह प्रश्न जाहिलो के कारण पूछा । जब आपने बिना कपड़े भेजा था तो हमारे माँ पापा ने बेटी को खूब ढँक कर रखा क्योकि उनको पता था नीचे जानवर ज्यादा रहते है इंसान कम !! हम समझ गये अब , माँ पापा ने कपड़े पहनने को क्यो कहा ।

एक बात पुरूषो से भी कह दो प्रभु ये लोग अपनी नजरो को भी कुछ क्यो नही पहना देते , इनको अपनी माँ को देखकर उत्तेजना नही आती पर हमको देखकर आ जाती है । इनको अपनी माँ के स्तन देखकर इनमे हवस के कीड़े नही रेगते पर हमारे स्तन देखकर जरूर रेंगने लगते है , आखिर क्यों?? जिस योनि से इनकी उत्पत्ति हुयी उस माँ की योनि देखने की इन्होने कभी चेष्टा नही की तो फिर ये हमारी देखने को इतने उतावले क्यों हो जाते है ? क्या जरूरत पड़ जाती है लड़की को देखकर अपने राक्षस को जगाने की और उसका बलात्कार करने की । बलात्कार तो करते ही है पर उससे भी चैन नही पड़ता तो योनि मे राड डाल देने मे इनको एक विजेता जैसा अनुभव होता है । उस समय ये ऐसे खुद की भुजाओ को हवा मे लहराते है जैसे इस संसार मे सर्व शक्तिमान यही हो । सच कहूँ सबसे घिनौने यही होते है !!

ईश्वर जब आप इस धरा पर आओगे कलयुग मे तो जरा संभल कर आना , हम तो सहन कर रहे है पर जब आप सहेंगे तो आपको अपनी कलाकृति पर बहुत पछतावा होगा पर मै नही चाहती कि आप चंद जानवरीय प्रवृत्ति की सोच वाले पुरूषों के कारण खुद पर प्रश्नचिह्न लगाये !!

हे ईश्वर!! हम महिलाएं युगो युगान्तर से उपभोग की वस्तु रही है आगे भी रहेगी इसमे नया क्या है !! कोशिश करना ईश्वर, थोड़े इंसान ज्यादा भेंज देना इन जानवरों के मुकाबले क्योंकि जब ये जानवर हमारा बलात्कार करके सड़क पर फेंके तो कम से कोई इंसान आकर हम पर कपड़ा तो डाल दें । बची खुची आबरू शायद अब खोखले इंसानो से बच जाये जिनके अंदर जानवर छिपा बैठा है ।

………………….करेंगे ना आप ऐसा , क्यो ईश्वर !!

आपकी
बेटी

लेखन – अंकुर त्रिपाठी ‘विमुक्त’

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