कल मैं ऑफिस के एक कलीग से बात कर रहा था कि मेरा दशहरे पर घर जाने का कितना मन था लेकिन अभी छुट्टी नहीं ले सकता। बातों-बातों में हम दोनों अपने-अपने घरों में दशहरे पर होने वाली पूजा के बारे में बात करने लगे। मैंने बताया कि हमारे यहां रावण की पूजा होती है तो मेरी इस बात को सुनकर उसे थोड़ी हैरानी हुई।
बचपन में जब मैंने पहली बार साथ के बच्चों को बताया था कि हमारे यहां दशहरे पर रावण की पूजा होती है, तो उन्होंने मेरा खूब मज़ाक उड़ाया था। उन्होंने कहा था,
“वह तो राक्षस और पापी था फिर तुम उसे क्यों पूजते हो?”
मेरे पास उनके सवालों का जवाब नहीं था, ऐसा लगा कि हमारे परिवार वाले कुछ गलत करते हैं। घर आकर पापा के सामने यह सारे सवाल किए तो उन्होंने गोद में बिठाकर, प्यार से समझाया कि रावण बहुत ज्ञानी था। वह तो उसका अहंकार था, जो उसे ले डूबा।
मेरे यहां ऐसे पूजा जाता है रावण
हम ज़मीन पर हल्दी-चावल से रावण बनाते हैं और कामना करते हैं कि हम उसकी तरह ज्ञानी और तेजस्वी बने लेकिन अहंकार से दूर रहें। पूजा में तो हम भगवान राम का ही नाम लेते हैं और उन्हीं की स्तुति करते हैं।
उस दिन मुझे समझ आया था कि एक बात के कितने अलग-अलग पहलू हो सकते हैं। यहां मैं आपको बताना चाहूंगा कि आखिर रावण की इस पूजा में होता क्या है?
नवमी की रात को ही मम्मी खीरे का रायता जमने रख देती हैं। यह सामान्य रायते से अलग होता है क्योंकि इसमें दही जमाते समय ही खीरा डाल दिया जाता है। दशहरे की सुबह की शुरुआत इसी रायते के दर्शन से होती है। माँ रायते के ऊपर चांदी का सिक्का रखकर दर्शन कराती हैं और हम कहते हैं,
“पूजे रायता, तो होए पायता।”
डैडी बताते हैं कि यह वाक्य हमारी दादी कहा करती थीं और तभी से यह दशहरे की रीतियों में शामिल हो गया है। यहां पायते का मतलब है ‘दशहरा’।
इसके बाद शुरू होती है ज़मीन पर रावण महाराज का चित्र बनाने की तैयारियां। डैडी पास की डेयरी से गोबर लेकर आते हैं, जिनसे दस छोटे-छोटे उपले बनाए जाते हैं। इन उपलों पर लगाने के लिए मुझे कद्दू के फूल लेने के लिए भेजा जाता है और वह भी पूरे दस फूल।
माँ चावल और हल्दी को पीसकर एक पेस्ट जैसा बना लेती है। जहां पूजा होनी होती है, उस जगह को अच्छी तरह साफ करके, वहां इस पेस्ट से रंगोली बनाई जाती है। रावण बनाने का एक तय तरीका है और बरसों से यह इसी तरह से बनाया जा रहा है। इस पोस्ट के साथ मैं घर पर बने रावण की फोटो लगाता हूं। उसके बाद इस पर दस सिर रूपी उपले रखे जाते हैं और उन पर कद्दू के फूल और अगरबत्तियां लगाई जाती हैं।
अपने हिस्से का सामान रखना
सभी बच्चे रावण के बीच वाले हिस्से में अपनी किताबें रखते हैं। बचपन में जिस सब्जेक्ट से सबसे ज़्यादा डर लगता था, वही पूजा में रख देते थे और कहते थे,
रावण महाराज, इस सब्जेक्ट की नैया तो आप ही पार लगाओ।
हमारा परिवार मूलतः व्यापारियों का परिवार है, तो डैडी और ताऊजी रावण के बीच वाले हिस्से में अपनी-अपनी दुकानों की चाबियां और बही-खाते भी रखते हैं। साथ ही, इस पर छेनी-हथौड़े जैसे टूल भी रखे जाते हैं।
इस पूरी तैयारी के बाद रावण के इर्द-गिर्द चादरें बिछाई जाती हैं और शुरू होती है पूजा। यह पूजा किसी भी सामान्य पूजा जैसी ही होती है, जिसमें सबको टीका लगाया जाता है और कलाई पर कलावा बांधा जाता है।
इसलिए खास है यह पूजा
रावण के दसों सिरों पर भी रोली और हल्दी के टीके लगाए जाते हैं। एक चीज़ जो इस पूजा को खास बनाती है, वह है इसमें इस्तेमाल होने वाली कॉपी। यह कोई सामान्य कॉपी नहीं होती बल्कि यह दशहरे की खास कॉपी होती है, जो हर दशहरे पर निकाली जाती है।
इसमें सबसे पहले स्वास्तिक बनाया जाता है। फिर पूजा में उपस्थित सभी लोगों के नाम लिखे जाते हैं। इसके बाद, रोज़मर्रा की सभी ज़रूरी चीज़ों के भाव लिखे जाते हैं। जैसे- दाल, पेट्रोल, डीज़ल, सोना, लोहा, सीमेंट, चावल और आटा आदि क्योंकि हर दशहरे की सारी जानकारी एक ही कॉपी में होती है, तो इसके ज़रिये पिछले साल के मुकाबले इस साल के भावों में आई कमी या बढ़ोतरी का भी पता चल जाता है।
पूजा की शुरुआत में देव स्तुति
इसके बाद पूजा की शुरुआत में गणेश की आरती होती है। इसके बाद राम स्तुति, दुर्गा माता की आरती और सरस्वती माता की वंदना जैसी कई आरतियां और भजन गाए जाते हैं।
अंत में सभी लोग गायत्री मंत्र का उच्चारण करते हुए रावण की 5 या 7 परिक्रमा करते हैं और अपनी-अपनी जगह बैठ जाते हैं। इसके बाद घर के सभी बच्चे अपनी-अपनी किताबें लेकर घर के बाहर जाते हैं और माना जाता है कि वह काशी पढ़ने गए हैं। वापस आकर वह सभी बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं।
इसके बाद घर की बेटियां सभी के कानों में नौरते (नवरात्रि के पहले दिन बोई जाने वाली जौ) रखती हैं और इसके लिए उन्हें पैसे मिलते हैं। यानी रक्षा बंधन और भाईदूज के अलावा पैसे कमाने का एक और त्यौहार।
अब पूजा तो हो गई लेकिन प्रसाद का क्या?
पूजा के बाद सभी लोग खीरे के रायते के साथ पूड़े (जिसे पुए और गुलगुले आदि नामों से भी जाना जाता है) खाते हैं। पूड़ों के साथ रायता खाने की रिवायत और किसी त्यौहार पर नहीं होती है। इसके साथ खत्म होता है, दशहरे का रावण पूजन।
भारत कितना कमाल का देश है ना? यहां एक ही त्यौहार मनाने के 100 अलग-अलग तरीके होते हैं। आपके यहां दशहरा कैसे मनाया जाता है?