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झारखंड के इस गाँव के बच्चे कमर तक पानी में उतरकर जाते हैं आंगनबाड़ी केन्द्र

फोटो साभार- सच्चिदानंद सोरेन

फोटो साभार- सच्चिदानंद सोरेन

झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए बहुत अधिक वक्त नहीं रह गए हैं। सूबे के सीएम रघुवर दास पिछले कुछ वक्त से झारखंड के अलग-अलग प्रखंडों का दौरा करने में मशगूल हैं, तो वहीं पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और झारखंड विकास मोर्चा के सुप्रीमो बाबुलाल मरांडी भी अलग-अलग जगहों पर रैलियों में नज़र आ रहे हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो झारखंड की सियासत का तापमान उबाल पर है।

इस चुनावी मौसम में जहां एक तरफ तमाम राजनेता जनता के बीच जाकर अपनी उपलब्धियां गिनाते हुए वोट मांग रहे हैं, तो वहीं झारखंड का एक ऐसा प्रखंड है जहां सालों पहले नेताओं द्वारा किए गए कई वादे अब तक अधूरे ही रह गए हैं।

तालडंगाल पंचायत का वह विद्यालय जहां बच्चों को कमर तक पानी में उतरकर पढ़ने आना पड़ता है।

रानेश्वर प्रखंड के तालडंगाल पंचायत अंतर्गत तारादह गाँव का आंगनबाड़ी और उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय सड़क मार्ग से नहीं जुड़े होने के कारण बच्चों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। तारादह गाँव के बंगाली टोला के ग्रामीणों और बच्चों को अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि इस टोला के लोग जब आंगनबाड़ी केन्द्र या प्राथमिक विद्यालय जा रहे होते हैं, तब इन्हें कमर तक पानी में उतरकर जाना पड़ता है।

ग्रामीणों के समक्ष पानी को पार करने के दौरान कई समस्याएं आती हैं। जैसे-

पानी के साथ-साथ उन्हें पथरीली ज़मीन का भी सामना करना पड़ता है, जिसके कारण कई दफा लोगों के पैर तक में ज़ख्म हो जाते हैं। अकसर देखा गया है कि बच्चे और यहां तक कि बड़े भी गिरकर चोटिल हो गए हैं।

ग्रामीण इलाकों में छोटी नदी के बहाव को जोरिया कहा जाता है। तारादह के ग्रामीणों के लिए वर्षा के दिनों में जोरिया को पार करना बहुत खतरनाक हो जाता है। ग्रामीणों का यह भी कहना है कि इस टोले के अधिकांश खेत जोरिया के पार पड़ता है, जिस कारण मवेशियों को भी उस पार ले जाने और ले आने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

पथरीले रास्ते पर ग्रामीण।

शिबानी हेम्ब्रम कहती हैं कि इस टोला में सिर्फ दो चापाकल हैं, जिनमें एक चापाकल गर्मी के मौसम में करीब सुख ही जाता है। उस समय ग्रामीणों को काफी कठिनाईयों के बाद भी पीने का पानी लाने के लिए जोरिया पार कर आंगनबाड़ी जाना पड़ता है। अभी भी कुछ ग्रामीण जोरिया पार कर आंगनबाड़ी के चापाकल से पानी लाते हैं।

निमायचन्द्र पाल का कहना है कि जोरिया में पुल बनवाने के लिए शिकारीपाड़ा विधान सभा क्षेत्र के विधायक नलिन सोरेन को करीब चार वर्ष पूर्व मौखिक शिकायत की गई थी लेकिन विधायक तो कभी झांकने भी नहीं आए।

उसके बाद ग्रामीणों ने झारखंड सरकार की समाज कल्याण मंत्री डॉ. लुईस मरांडी को लिखित आवेदन दिया फिर भी जोरिया में पुल का निर्माण नहीं किया गया।

शिबू मरांडी का कहना है कि दुमका लोकसभा क्षेत्र के सांसद सुनील सोरेन और झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास से भी मौखिक शिकायत की गई थी लेकिन अब तक जोरिया में पुल का निर्माण नहीं किया गया है। जोरिया में पुल नहीं बनने के कारण ग्रामीण काफी नाराज़ और ठगे हुए महसूस कर रहे हैं।

वोट बहिष्कार का नारा लगाते ग्रामीण।

ग्रामीणों ने यह निर्णय लिया है कि जो भी नेता वोट मांगने आएंगे, उनसे यह सवाल पूछा जाएगा कि आखिर वोट देने के बाद भी जोरिया में पुल का निर्माण क्यों नहीं हुआ? ग्रामीणों का कहना है कि अगर जल्द ही जोरिया पर पुल का निर्माण नहीं किया जाता है, तो चुनाव में वोट का बहिष्कार किया जाएगा।

गौरतलब है कि दूसरे टोले में पुल तो बना हुआ है मगर पुल पार करने के बाद थोड़ी दूरी पर सड़क खत्म हो जाती है और पहाड़ के नीचे जंगल के पगडंडी से चलकर बच्चे स्कूल व आंगनबाड़ी जाते हैं।

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