बच्चों को शब्दों का ज्ञान हो जाने के बाद स्कूलों में निबंध लिखवाया जाता है। इन निबंधों के कुछ गिने-चुने विषयों में ‘जलवायु परिवर्तन’ का विषय भी एक होता है लेकिन स्वीडन की एक 16 वर्षीय स्कूल की बच्ची, ग्रेटा थनबर्ग ने इस विषय पर पढ़ने और लिखने से आगे कुछ किया है। ग्रेटा ने आगे बढ़कर इस समस्या की गंभीरता को समझा और इसके लिए दुनियाभर में मुहिम शुरु कर दी है।
दुनियाभर की तमाम संस्थाओं के अध्ययनों व उनके आंकड़ों से यह बात साबित हो चुकी है कि जलवायु परिवर्तन चिंताओ और चर्चाओं से निकलकर हम सबकी दिनचर्या और आसपास को प्रभावित करने लगा है।
ग्रेटा थनबर्ग ने जलवायु परिवर्तन के इस व्यवहारिक पक्ष को समझा और अगस्त 2018 में स्वीडन की संसद के बाहर एक तख्ती लेकर खड़ी हो गई, जिस पर लिखा था ‘स्कूल स्ट्राइक फॅार क्लाइमेट’ और देखते ही देखते दुनियाभर में उसकी तस्वीर और उसका प्रभाव फैलने लगा।
कौन है ग्रेटा थनबर्ग?
ग्रेटा थनबर्ग इंटरनेशनल ओपरा सिंगर मैलेना अर्नमैन और एक्टर स्वान्टे थनबर्ग की बेटी है। ग्रेटा का जन्म 3 जनवरी 2003 में स्वीडन के स्टॅाकहोम में हुआ था। वह 8 साल की थी जब उसने पहली बार जलवायु परिवर्तन के बारे में सुना। उसने सोचा अगर यह समस्या इतनी गंभीर है, तो लोग इसके बारे में कुछ कर क्यों नही रहे हैं?
ग्रेटा ने जलवायु परिवर्तन पर दुनिया की सोच बदलने की शुरुआत सबसे पहले अपने घर से की। उसने अपने और अपने माता-पिता के रहन-सहन में कुछ बदलाव किए। ग्रेटा ने अपने माता-पिता का हवाई-जहाज़ से सफर और मीट का सेवन छुड़वा दिया।
बताया जाता है कि ग्रेटा थनबर्ग को एस्पर्जर सिन्ड्रोम है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति को समाज के साथ तालमेल बैठाने में दिक्कत आती है। वे लोगों के साथ जल्दी घुल-मिल नहीं पाते, लोगों के बीच जल्दी नर्वस हो जाते हैं तथा लोगों से आंखे नहीं मिला पाते है। ऐसे लोगों की रूचि किसी एक खास विषय में ज़्यादा होती है, तो वहीं बाकी विषयों में बिल्कुल नहीं होती है।
हालांकि ग्रेटा इसे अपना ‘सुपरपावर’ बताती है। ग्रेटा को इसके साथ सलेक्टिव म्युटिस्म की भी दिक्कत है। इस स्थिति में कई बार व्यक्ति चाहकर भी बोल नहीं पाता है। इसे भी ग्रेटा अपने लिए सकारात्मक रूप में लेती है।
क्यों ज़रूरी है दुनियाभर में ग्रेटा
जलवायु परिवर्तन पर चर्चा, सभाएं और संगोष्ठिया पिछले कुछ दशकों से चली आ रही हैं लेकिन हाल-फिलहाल के कुछ वर्षो में इससे मानव जीवन प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होने लगी है।
समय के साथ दुनियाभर में बढ़ते औद्योगिक क्रिया-कलापों से निकलने वाला कार्बन डाई-ऑक्साइड साल दर साल पृथ्वी का तापमान बढ़ाता जा रहा है। एक लाख वर्षों का आइस डाटा यह बताता है कि औद्योगिक क्रांति के पहले वैश्विक तापमान बढ़ोत्तरी के कोई संकेत नहीं हैं। औद्योगिक क्रान्ति के बाद पृथ्वी के औसत तापमान में 0.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो चुकी है।
इस बढ़ते तापमान को नियंत्रित करने और कार्बन डाई-ऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करने के लिए 2016 में पेरिस जलवायु समझौता किया गया, जिससे दुनिया के कई देश जुड़े हुए हैं। ग्रेटा थनबर्ग दुनिया के कई मंचो से विभिन्न देशों के नेताओं से यह अपील कर चुकी है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए वो इस समझौते की शर्तो का पालन करें।
ग्रेटा की बातों का प्रभाव व अपील वैश्विक स्तर पर इसलिए भी अधिक हो रहा है क्योंकि वह अपने साथ आने वाली पीढ़ी अर्थात भविष्य का प्रतिनिधित्व कर रही है। आज दुनियाभर के स्कूली बच्चे ग्रेटा के समर्थन में उनके द्वारा शुरू किए गयए ‘फ्राइडे फॅार फ्यूचर’ मुहिम में शामिल हो रहे हैं।
अलग-अलग देशों में स्कूली बच्चे अपने देश के नेताओं की जवाबदेही तय कर रहे हैं। ग्रेटा की अपील का प्रभाव वैश्विक स्तर पर देखा जा रहा है इसलिए आज ग्रेटा और उनके जैसे लोगों की इस गर्म होती दुनिया को ज़रूरत है।
बातें नहीं, एक्शन का समय
ग्रेटा थनबर्ग ने पिछले दिनों 26 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलन के दौरान दुनियाभर के नेताओं की जलवायु के प्रति कार्यशैली पर ही प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया। उन्होंने अपने संबोधन में कहा,
मेरा संदेश यह है कि हम सब आप पर नज़र बनाए रखेगें। ये सब पूरी तरह गलत है जो हो रहा है। मुझे यहां नहीं होना चाहिए। मुझे स्कूल में होना चाहिए, समुद्र के उस पार। फिर भी आप सब हम जवान लोगों के पास आते है, उम्मीद के लिए? हिम्मत कैसे हुई आपकी? आपने अपने खोखले शब्दों से मेरे सपने और मेरा बचपन छीन लिया है। मैं कुछ भाग्यशाली लोगों में से हूं। लोग दर्द में है, लोग मर रहे है। पूरा का पूरा इकोसिस्टम बर्बाद हो रहा है। हम सामूहिक विलोपन(एक्सिटिंशन) की शुरूआत में है और आप सिर्फ पैसे और इकॅानोमिक ग्रोथ की परिकथाओं की बात कर रहे हैं? हिम्मत कैसे हुई आपकी?
ग्रेटा ने अपने संबोधन मे इस बात पर भी नाराज़गी ज़ाहिर की कि आज की पीढ़ी और उनके नेताओं के नाकामियों का परिणाम उनको और उनकी पीढ़ी को भुगतना पड़ेगा। ग्रेटा की बातों से दुनियाभर के पर्यावरणविद भी सहमत हैं कि जलवायु परिवर्तन अब प्रत्यक्ष और व्यवहारिक रूप में हमें प्रभावित करने लगा है और इसके प्रभावों से निपटने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो इस नीले ग्रह का भविष्य अन्धकार में चला जाएगा।
जलवायु परिवर्तन किस तरह हमें और आपको प्रभावित करेगा, इसे उसके प्रभावों से समझा जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट बताती है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से 2030 से 2050 के बीच सामान्य की तुलना में 2,50,000 अधिक लोगों की मृत्यु होगी।
2.5 लाख लोग प्रति वर्ष की दर से अतिरिक्त मौतें होंगी। अकेले भारत में प्रति वर्ष 15 लाख लोग वायु प्रदूषण से मरेंगे। शुद्ध हवा, साफ पीने का पानी और भोजन की उपलब्धता चुनौती बन जाएगी।
इसके अलावा मौसम में अतिशय परिवर्तन, वर्षा चक्र में बदलाव, समुद्र तल में बढ़ोतरी इत्यादि शामिल है। यह सभी प्रभाव सीधे-सीधे मानव समाज और उसके वर्तमान के विकास की परिभाषा को प्रभावित करेंगे। इसलिए अब ग्रेटा थनबर्ग भी हम सबके लिए सिर्फ चर्चा का विषय ना होकर ज़मीन पर परिवर्तन लाने की प्रेरणा होनी चाहिए।