बिहार की धरती लोक कला व संस्कृति के लिए बहुत पहले से जानी जाती रही है। बिहार राज्य का भू-भाग विस्तृत होने के कारण अलग-अलग क्षेत्रों की अपनी-अपनी लोक संस्कृति मौजूद है तथा लोक कला के क्षेत्र में बिहार एक समृद्ध राज्य है।
यहां अनेक प्रकार की कलाकारी की जाती रही है। उन्हीं लोक कला में एक मधुबनी कला भी है, जिसे हम ‘मधुबनी पेंटिंग’ के नाम से जानते हैं।
मधुबनी पेंटिंग का इतिहास
त्रेतायुग में सीता-राम विवाह के समय से ही मधुबनी कला का शुरुआती इतिहास मिलता है, जब जनकपुर की राजकुमारी सीता का विवाह अयोध्या के सूर्यवंशी राजकुमार राम के साथ होना तय हुआ था। तब जनकपुर के राजा दशरथ के आदेशानुसार पूरे जनकपुर नगर को एक विशेष कलाकारी से सजाया गया था, जिसमें धरती से लेकर महल को भी अलग-अलग रंगों से रंगकर जनकपुर को एक नया रूप दिया गया, जिसे देखकर सभी अतिथियों का मन मुग्ध हो गया।
इस विशेष तरह की कलाकारी की चर्चा पूरे जनकपुर में होने लगी, जिसके बाद जनकपुर नगर के अलावा उसके अगल-बगल के क्षेत्रों में भी विशेष सुंदरता के कारण कलाकारी की सजावट शुरू हुई।
बाद में इस कला के प्रति लोगों की रुचि कम अवश्य हुई मगर हाल के वर्षों में एक बार फिर से मिथिलांचल क्षेत्र अपनी लोक कला को संवारकर देश स्तर पर अपनी पहचान बनाने में सफल होता दिख रहा है।
मधुबनी पेंटिंग की बनावट
शुरुआती दौर में मधुबनी पेंटिंग बनाने के लिए घरेलू विधि द्वारा तैयार किए रंगों का ही इस्तेमाल किया जाता था। इसके ज़रिये अलग-अलग जगहों पर चटख रंग से रंगकर पेंटिंग की सुंदरता को बढ़ाया जाता था।
घरेलू विधि द्वारा रंगों को तैयार करने में हल्दी, केले का पत्ता, लाल रंग के लिए पीपल की छाल तथा चावल के पानी (चौरेठा) का भी उपयोग किया जाता था तथा चित्र बनाने के लिए बांस की कुंची या कलम का प्रयोग किया जाता था।
आधुनिक समय में रंग तो वैसा ही है मगर कुछ बदलाव ज़रूर हुए हैं। जैसे- अब आधुनिक रंगों को मिलाकर चित्र को बनाया जाने लगा है लेकिन चटख रंग का आकर्षण अब भी बरकरार है।
अनेक प्रकार से बनाई जाती है मधुबनी पेंटिंग
1. भूमि आकल्पन
इस चित्रकला में पेंटिंग को भूमि पर बनाया जाता है। बिहार में चौका-पूरना इसका उदाहरण है, जिसमें पूजा-पाठ के समय कलश स्थापना की जगह बनाना अनिवार्य होता है।इसे मिथिलांचल में आश्विन या अरिपन कहा जाता है। केरल समेत दक्षिणी राज्यों में भी ओणम् त्यौहार के मौके पर अरिपन चित्रकला बनाई जाती है।
2. भिति चित्रकला
इसके अंतर्गत चित्रकारी को दीवार पर उकेरा जाता है, जो अन्य चित्रों की अपेक्षा कलात्मक व रचनात्मक होता है। इसमें चित्रकला को चिकनी मिट्टी तथा गाय के गोबर के मिश्रण में बबूल के गोंद को मिलाकर दीवार पर लिपाई की जाती है, जिससे यह दीवार पर चिपका रहता है।
इसके अलावा भी सीता-राम, राधा-कृष्ण, नैना-जोगिन, समा-चकेवा तथा जट-जटिन के चित्रांकन की प्रथा रही है। मिथिलांचल क्षेत्रों में भिति चित्र को तीन जगहों पर बनाने की परंपरा रही है-
- गोसाईं घर (कुल देवता का स्थान)
- कोहबर घर (जहां नव दंपती पहली बार मिलते हैं)
- कोहबर घर का कोनिया (कोहबर घर का बाहरी हिस्सा)
3. पट चित्रांकन
पट चित्रकला का इतिहास समकालीन राजा शिव सिंह के काल से मिलता है। इसमें चित्र कपड़ों पर बनाए जाते हैं तथा चित्र के चारों तरफ बॉर्डर का होना अनिवार्य होता है।
इन सभी चित्रों में तरह-तरह के चटख रंगों का भी इस्तेमाल किया जाता है। मिथिला चित्रकला को पूजा-पाठ के अवसर पर ही बनाया जाता है।
मिथिला चित्रकला की विशेषताएं
- सामाजिक संस्कृति से जुड़ा होने के कारण इसमें लोक संस्कृति की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है।
- रेखा प्रधान चित्र होने के कारण चित्र में रेखा की प्रधानता स्पष्ट रूप से दिखती है।
- मधुबनी चित्रकला के लिए ऐसा कहा जाता है कि चित्र बनाते समय कहीं भी खाली स्थान नहीं छुटना चाहिए अन्यथा दुष्ट आत्मा का प्रवेश हो जाता है। इसलिए सभी चित्रों को रंग व रेखाओं से भरा जाता है।
- मधुबनी शैली में चित्रित वस्तुओं को मात्र सांकेतिक स्वरूप ही दिया जाता है।
- मधुबनी चित्र को बनाने के लिए घरेलू विधि द्वारा तैयार रंगों का ही इस्तेमाल किया जाता है ताकि विशेषता बरकरार रहे और चमक स्पष्ट दिखे।
- यह पूर्णतः एक महिला चित्रकारी है मगर अब पुरुष वर्ग भी इसे बनाने लगे हैं।
मधुबनी चित्रकला का भविष्य
- सर्वप्रथम 1942 ई. में लंदन की “आर्ट गैलरी” में मधुबनी पेंटिंग की प्रदर्शनी लगाई गई थी।
- आज़ादी के बाद मधुबनी कला की प्रदर्शनी जापान के तोकामाची शहर में आयोजित की गई, जिसके बाद मधुबनी पेंटिंग पर रिसर्च के लिए वहां एक संग्रहालय भी बनाया गया।
- बिहार सरकार ने मधुबनी पेंटिंग की विशेषता को जानते हुए, मुख्यमंत्री आवास को पेंटिंग से सजवाया है।
- पटना चिड़ियाघर के बाहरी दीवार भी मधुबनी पेंटिंग से भरे पड़े हैं।
- भारतीय रेलवे ने भी मधुबनी पेंटिंग को पहली बार किसी क्षेत्रीय कला के रूप में अपनाया है।
- बिहार से होकर दिल्ली जाने वाली सप्त क्रांति एक्सप्रेस के कोच को मधुबनी पेंटिंग से सजाकर पहली बार 22 अगस्त 2018 को दरभंगा से दिल्ली की यात्रा शुरू हुई थी।
- भारतीय रेलवे ने अपनी घोषणा में कहा है कि बिहार से खुलने वाली सभी ट्रेनों पर मधुबनी पेंटिंग का होना आवश्यक होगा, जो मिथिलांचल की लोक कला को दर्शाता हुआ नज़र आएगा।
- मधुबनी रेलवे स्टेशन को पूर्ण रूप से पेंटिंग से सजवाया गया है, जो भारत के सबसे सुंदर व स्वच्छ रेलवे स्टेशनों में शामिल है।
कुछ अन्य आवश्यक पहल की जानी चाहिए
- मधुबनी पेंटिंग द्वारा उत्तर बिहार की ग्रामीण स्तर की महिलाओं की आर्थिक स्थिति मज़बूत हो रही है, जिसे वैश्विक पटल पर लाने की ज़रूरत है।
- पारंपरिक रंगों के साथ आधुनिक रंगों का भी इस्तेमाल किया जाना चाहिए ताकि मधुबनी चित्रकला का विकास तेज़ी से हो सके।
- बिहार के पाठ्यक्रम में पहली कक्षा से लेकर दसवीं तक मधुबनी पेंटिंग की विशेषता को पढ़ाना अनिवार्य किया जाना चाहिए ताकि बच्चे बचपन से ही पेंटिंग के प्रति जागरूक हो सके।
- मधुबनी पेंटिंग की विशेषता पर शोध व अनुसंधान की ज़रूरत महसूस की जा रही है, जिसके लिए विश्वविद्यालय को आगे आने की पहल करनी चाहिए।
- अगर आप उत्तर बिहार के मिथिलांचल क्षेत्रों में नज़र दौड़ाएंगे तो मधुबनी पेंटिंग की झलक हर घर में देखने को मिलेगी।
नोट: लेख में प्रयोग किए गए तथ्य इतिहास की पुस्तक ‘अतीत से वर्तमान’ भाग-3 से लिए गए हैं।