नोट: यह स्टोरी नोएडा सेक्टर-18 के एक स्पा सेंटर में काम करने वाली रोमा (बदला हुआ नाम) से बातचीत के आधार पर लिखी गई है।
‘स्पा’ शब्द से वास्ता तब पड़ा था जब पहली दफा मैं चकाचौंध भरी इस दुनिया में आई थी। इससे पहले इस शब्द से भी अनजान थी और इन जगहों पर स्पा की आड़ में होने वाले सेक्स वर्क से भी। विरले ही ऐसे लोग होते हैं, जो ये चीज़ें पूछते हैं कि मैं क्यों और कैसे यहां आई? क्योंकि उन्हें लगता है कि सेक्स वर्कर या स्पा गर्ल से बात करना यानी कि वक्त ज़ाया करना।
चलिए अब आपको बताती हूं कि कैसे 5-5 के अंधेरे और दिन-रात जगमगाते नाइट बल्ब्स वाले कमरे में मेरा आना हुआ। मैं उत्तराखंड से हूं मगर वर्तमान में तीन साल के एक बच्चे और मेरी माँ के साथ दिल्ली में रहती हूं। मेरा बेटा भले ही अभी तीन साल का है मगर मुझे डर है कि जब वह बड़ा होगा और उसे मेरे पेशे के बारे में पता चलेगा, तब वह क्या सोचेगा?
मेरी माँ भी नहीं जानती हैं कि मैं हर रोज़ उनसे झूठ बोलकर आती हूं कि मैं ब्यूटी पार्लर में जॉब करती हूं जबकि सच्चाई यह है कि मैं पिछले तीन वर्षों से स्पा लाइन में हूं। मैं ‘स्पा’ पेशे की बुराई नहीं कर रही हूं, बल्कि इसकी आड़ में यहां हर रोज़ होने वाले सेक्स वर्क से मुझे ऐतराज़ है।
उस मनहूस रात की यादें आज भी मेरे ज़हन में ताज़ी हैं जैसे मानो कल ही की बात हो। मैं डोमेस्टिक और इंटरनैशनल बीपीओज़ में काम कर चुकी हूं और वहां मुझे अच्छी सैलरी मिलती थी मगर कहते हैं ना किस्मत हमसे वह काम करवाकर ही रहती है जिन्हें करने से खासकर हम लड़कियां बचना चाहती हैं।
नई-नई शादी हुई ही थी और कुछ ही वक्त के बाद मैं और मेरे पति अलग रहने लगे। मैंने बीपीओ में नौकरी करनी शुरू की मगर उन पैसों से दिल्ली जैसे शहर में रहकर परिवार चलाना काफी मुश्किल है फिर मैंने सुना कि ब्यूटी पार्लर लाइन में काफी पैसे हैं, तो क्यों ना एक नई शुरुआत की जाए और एक सपने के साथ नोएडा सेक्टर 18 के कृष्णा प्लेस में आई, जहां कई सारे स्पा (तब स्पा नहीं जानती थी) हैं।
मुझे आज भी याद है जब पहला क्लाइंट मेरे पास आया, तब मुझे लगा कि इन्हें फेशियल या मसाज़ देनी है। मसाज़ के लिए भी मैं तैयार थी क्योंकि उतना तो स्पा में काम करने से पहले बताया ही गया था मगर मैं उस वक्त सन्न रह गई जब क्लाइंट को स्पा सर्विस देने के बाद उसने मेरे साथ यौन संपर्क बनाने की ज़िद्द की। वह ज़िद्द करता भी क्यों नहीं? उसने बाहर मैनेजर को मेरे साथ सेक्स करने के लिए अलग से पैसे दे रखे थे।
मेरे साथ बहुत अधिक ज़बरदस्ती हुई फिर विवश होकर मुझे उस व्यक्ति की यौन इच्छाएं पूरी करनी पड़ी। आज तीन साल हो चुके हैं स्पा लाइन में मुझे काम करते हुए, खुब सारे पैसे भी कमाती हूं मगर एक दिन छोड़ दूंगी यह पेशा। मेरे साथ अभी लगभग 25 लड़कियां काम करती हैं और उनमें से शायद ही किसी को पता होगा कि स्पा असल में क्या है?
क्लाइंट के तौर पर मेरे पास छड़ी लेकर बुज़ुर्ग भी आते हैं और शादीशुदा मर्द भी। लोग हमें सेक्स वर्कर से कम नहीं समझते हैं! अब प्रश्न यह भी उठता है कि मैं स्पा की आड़ में होने वाले सेक्स वर्क की बुराई कर रही हूं फिर क्यों अब तक इस पेशे में बनी हुई हूं?
सवाल पूछना बहुत आसान होता है मगर हर कोई अपनी जगह पर सही होता है। अगर मैं बीपीओ में होती तो महीने के ज़्यादा से ज़्यादा 60 हज़ार कमा लेती मगर इस लाइन में उतने पैसे कई घंटों में कमा लेती हूं। मसला यह है कि मेरी जैसी बहुत सी लड़कियां शुरू में थेरेपी समझकर इस पेशे में आती हैं और बाद में सेक्स वर्क के जाल में इस तरह फंस जाती है कि निकलना ही मुश्किल हो जाता है।
मैं अपने क्लाइंट्स से बहुत बातें करना पसंद करती हूं। कई दफा कुछ लोग शराब पीकर गाली-गलौच भी करते हैं मगर इस पेशे की एक खूबसूरती यह भी है कि हम उनके साथ बड़े अदब से पेश आते हैं। सुबह से लेकर देर रात तक अपनी ख्वाहिशों को मारकर चेहरे पर झूठी मुस्कान बिखेरेने वाली यह दुनिया सच में बहुत अजीब है।
शायद बहुत सारी बातें मैं आज ना कह पाई मगर अपने बेटे से एक वादा करना चाहती हूं कि उसका कोई दोस्त जब पूछे कि तुम्हारी माँ क्या करती है, तब वो यह ना कहे कि माँ एक सेक्स वर्कर है। मैं यह जानती हूं कि सेक्स वर्कर बनने से पहले लड़कियां ना जाने कितने रिश्तों का कत्ल करती हैं और कितनी भावनाओं का गला घोंट देती हैं मगर हम इस बात पर मंथन नहीं करते हैं कि आखिर कौन सी चीज़ है, जो एक औरत को सेक्स वर्कर बना देती है?
एक उम्मीद के साथ अपनी भावनाओं को समेट रही हूं कि एक रोज़ जब बेटा बड़ा हो चुका होगा, तब मैं इस पेशे में ना रहूं।