अभी कुछ वक्त पहले ही दिल्ली का वातावरण स्वच्छ था, क्योंकि इससे सटे इलाकों में अच्छी बारिश हुई थी मगर अब हालात बदल चुके हैं और लोग फिर मास्क पहनने को मजबूर हो गए हैं। दिल्ली वालों को साफ हवा ना जाने कब मिलेगी? अभी तो दिवाली भी नहीं आई है और हवा का स्तर गिरना शुरू हो गया है।
किसानों का पराली जलाना शुरू
दिल्ली एनसीआर से सटे पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में किसानों ने पराली जलाना शुरू कर दिया है, जिस कारण दिल्ली की हवा प्रदूषित होने लगी है और सुबह धुंध भरी हो रही है।
किसान हर साल अक्टूबर और नवम्बर के बीच धान की खेती के बाद खेतों में आग लगा देते हैं, ताकि वह खेत गेंहू की खेती के लिए तैयार हो सके।
किसानों का कहना है,
पंजाब सरकार उन्हें अपने खेतों के अवशेषों को साफ करने या हटाने का कोई तरीका या मदद प्रदान नहीं करती है, जिस कारण वे पराली जलाने के लिए मजबूर हैं।
हालांकि 10 दिसम्बर 2015 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दिल्ली, राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में पराली जलाने को बंद करने का आदेश दिया था।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की चेतावनी
अभी हाल ही में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने चेतावनी देते हुए कहा था कि दिल्ली की हवा एक बार फिर प्रदूषित हो सकती है, जिसका सीधा असर आम लोगों की जीवनशैली पर पड़ेगा और ऐसा हो भी रहा है।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के साथ कृषि मंत्रालय द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल की तुलना में इस साल दिल्ली के तीनों पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने की घटनाओं में 58% गिरावट दर्ज की गई है।
वहीं, पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक पंजाब में 12 अक्टूबर तक पराली जलाने की 630 घटनाएं दर्ज की गई हैं, जबकि पिछले साल इस अवधि में इनकी संख्या 435 थी।
घटना में हुई है कमी
कृषि मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल अक्टूबर के शुरुआती आठ दिनों की तुलना में इस साल पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में 60%, हरियाणा में 48% और उत्तर प्रदेश में 75% गिरावट दर्ज की गई।
इसके बावजूद भी दिल्ली की हवा की गुणवत्ता में गिरावट ने पर्यावरण संबंधी चिंताओं को बढ़ा दिया है। मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि 9 अक्टूबर के बाद पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में तेज़ी से हुए इज़ाफे के कारण ही रविवार को दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक 245 पर पहुंच गया।
एक पराली कई जानों की दुश्मन है
एक अनुमान में तो यह साबित हो गया है कि हर साल पंजाब में 50 लाख टन पराली जलाई जाती है, जिसमें से एक पराली जलाने से दो किलो सल्फर डाइऑक्साइड, तीन किलो ठोस कण, 60 किलो काबर्न मोनोऑक्साइड और 199 किलो राख निकलती है।
इससे आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि आने वाले महीने दिल्ली के लिए कितने घातक साबित होने वाले हैं।
प्रतिबंधित कार्य कर रहे हैं किसान
पराली जलाना सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया है और पराली ना जलाने पर प्रोत्साहन राशि का भी इंतज़ाम किया है मगर किसान अभी भी पराली जलाने से बाज़ नहीं आ रहे हैं, क्योंकि पराली जलाने से किसानों का व्यय कम होता है।
हालांकि किसान इन तरीकों को अपनाकर पराली जलाने से बच सकते हैं, बशर्ते वे इसका पालन करें-
- किसान गन्ने की पत्तियों, गेंहू के डंठल के अवशेषों द्वारा खाद बना सकते हैं।
- मवेशियों को खेत में चरने के लिए खुला छोड़ सकते हैं, जिससे उनके चारे का भी इंतज़ाम हो जाएगा और खेत की उर्वरता भी बढ़ जाएगी।
- केला या अन्य फसलों के अवशेषों से कम्पोस्ट का निर्माण भी किया जा सकता है।
जैसा कि हम सब जानते हैं आजकल फसलों में रसायन का कितना ज़्यादा इस्तेमाल हो रहा है, जिससे मिट्टी की उर्वरता भी क्षीण हो रही है। किसान अगर पराली जलाने के स्थान पर उन अवशेषों का इस्तेमाल बुद्धिमता से करें, तो उन्हें बहुत फायदा होगा और आम जनता भी प्रदूषण के मार से बची रहेगी।