किसी क्षेत्र या उद्योग के स्वामित्व को जब सरकारी हाथों से लेकर निजी हाथों में सौंपा जाता है, तब वह निजीकरण कहलाता है। इसका मुख्य उद्देश्य किसी प्रदेश विशेष की अर्थव्यवस्था को मज़बूत करना होता है। हाल के दिनों में यह प्रयोग भारतीय रेलवे के साथ करने की भी कोशिशें हुई हैं, जिसने कुछ वर्गों को आक्रोशित करने का कार्य किया है, जबकि कुछ एक वर्ग सरकार के इस कदम से प्रभावित भी हुए हैं।
देश की अर्थव्यवस्था से लेकर आम जन-जीवन को यह कैसे प्रभावित करेगा यह समझना ज़रूरी है। देश के लिए यह निजीकरण कितना अच्छा है या कितना बुरा है इसपर विचार करना आवश्यक है।
8 मई 1845 को स्थापित किया गया भारतीय रेलवे आज विश्व का चौथा सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क है। भारतीय अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा सहयोग इसी क्षेत्र का है परंतु आज सरकार को इस क्षेत्र को निजी हाथों में सौंपना बेहतर नज़र आ रहा है। इसकी शुरुआत हाल के दिनों में पूर्ण रूप से निजी कंपनी द्वारा चलाई गई तेजस एक्सप्रेस से हुई, जिसमें दिए गए सुख-सुविधाओं ने लोगों को प्रभावित किया है।
कई लोग इस निजीकरण का कर रहे हैं विरोध
इस बात की समीक्षा भी ज़रूरी है। यह बात निश्चित तौर पर सत्य है कि रेलवे के निजीकरण के बाद साफ-सफाई की सुविधा बेहतर होगी, ट्रेनों के सुचारू रूप से परिचालन के कारण समय की काफी बचत होगी, ट्रेन के अंदर भी बेहतर सुख सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी।
निजीकरण के क्या नुकसान हो सकते हैं-
यदि इस निजीकरण के दूसरे पहलू को देखें, तो यह सारी सुख सुविधाएं फीकी पड़ जाती हैं। निजी कंपनियों का मुख्य उद्देश्य पैसा कमाने का होता है और रेलवे को भी यह उसी नज़रिए से देखेंगे और प्रयोग करेंगे।
- इन सारी सुख-सुविधाओं के बदले किराए में काफी बढ़ोतरी देखने को मिलेगी, जिससे कि गरीब लोगों के लिए यह यात्रा काफी मुश्किल होगी। समाज के जो लोग यात्रा के लिए इसी माध्यम पर निर्भर हैं, वे इस निजीकरण से ज़्यादा परेशान हैं।
- निजीकरण की अन्य समस्या यह है कि इतने बड़े रेलवे क्षेत्र का परिचालन किसी एक निजी कंपनी द्वारा संभव नहीं है। ज़ाहिर सी बात है कि अलग-अलग हिस्सों को अलग-अलग हाथों में सौंपना होगा और तब उन सभी के बीच आपस में सुदृढ़ समन्वय की उम्मीद करना बेहद मुश्किल है।
- किसी दुर्घटना के वक्त तो स्थिति और भी बद्तर नज़र आएगी, जब अपने-अपने क्षेत्रों का हवाला देकर निजी कंपनियां आरोप-प्रत्यारोप का ढोंग करेंगी और इन सभी चीज़ों में नुकसान भुगतना आम लोगों को पड़ेगा।
- निजीकरण के बाद गरीब मध्यमवर्गीय लोगों के लिए रेलवे का यह माध्यम दुर्लभ सा प्रतीत होगा। उपयोग में कम आने वाले मार्गों को निजी कंपनियां सबसे पहले बंद करेंगी, क्योंकि इन क्षेत्रों से उन्हें बहुत कम राजस्व की प्राप्ति होगी। उनके इस कदम से सुदूर हिस्सों में रहने वाले लोग एक क्षेत्र में बंद होकर रह जाएंगे जो कि उनके मौलिक अधिकारों का भी हनन होगा।
इन सभी चीज़ों को ध्यान में रखे बगैर भारतीय सरकार यदि फिर भी रेलवे का निजीकरण करती है, तो यह गरीब तबके के साथ सबसे बुरा होगा। बाकि अर्थव्यवस्था की मज़बूती के लिए सरकार द्वारा उठाया गया हर एक कदम सराहनीय होगा।
रेलवे निजीकरण का यह प्रयास इंग्लैंड जैसे देशों में पहले भी हो चुका है परंतु वहां की सरकार इस क्षेत्र को पुनः सरकारी हाथों में लेने की सोच रही है। अतः भारतीय सरकार को भी इस रेलवे निजीकरण पर पुनः विचार करने की आवश्यकता है। देश की अर्थव्यवस्था को इस निजीकरण से फायदा होगा यह बात सत्य है परंतु इस छोटे से फायदे के लिए आप इतनी बड़ी जनसंख्या का नुकसान नहीं कर सकते हैं।